कील
तांगे
खो गये इतिहास में
घोडे हो गये
बेरोजगार,
आदमी ने जोड़ लिया खुद को
तकनीक से
घोड़े जो खींच लेते थे
दस दस सवारियाँ
घर के मुखिया वही थे
अब मशीनों की शक्ति में
शामिल हो गये घोड़े।
तांगे
जा चुके नैपथ्य में।
असल घोड़े
अब बेरोजगार है
ठीक अपने बुढा़ गये
मालिकों की तरह.
2
बूढे पेड पुराने सारे
अपना दुख भी
कहते किससे
कहने को बस बडे हुए हैं
छांव बने ही खडे हुए हैं
घुट घुट कर जीते रहते हैं
करके याद
पुराने किस्से
कुछ पंछी शाखों पर बैठे
चहक रहे थे पर अब ऐंठे
तडप तडप कर रह जाते है
देख के घर के
वाटे हिस्से
3.
रोकना था
आसुओं को
बहने से
यादों को आने से
तुम्हें जाने से
खुद को भूलने से
पतझर को आने से
बसंत को जाने से
रोकना था
समय को,
पर समय कहाँ
रुकता था
किसी के लिये
समय को रोकना
समय के साथ
चलना था
और समय
को साधना ही नही आया
रोकना था बहुत कुछ
पर रोक नही पाया।
4.
कविता की पोथी
आज पुरानी कविताओं की
पोथी हाथ लगी
कहने को जो बाकी थी वो
फिर से बात जगी
कविताओं में क्या था उसकी
बात नहीं करना था
किंतु कलम को देखा मैंने
वह तो एक ऐसा झरना था
कागज के पुर्जों पर जिससे
आखर रांग लगी.
अक्षर जैसे सजे हों मोती
माला की लडियों में
हाथ यही थे लिक्खा जिनसे
एक नहीं कई घडियों में
अब कागज तो नहीं किंतु
ये कलम उदास लगी.
तकनीकी के इस युग में भी
अंगूठे का चलन बढा है
लगा रहा अंगूठे वह भी
कहने को जो लिखा पढा है.
माना कि यह चक्र जगत का
5.
अखबार
पडा है
मेज पर निस्तेज
अपनी तमाम
पुरानी हो चुकी
खबरों के साथ
पर खबरें कहीं भीतर
उतर चुकी हैं
किसी के
जो बदलना चाहती हैं
विचार में
विचार से आंदोलन में
खबर सूचना ही हो
तो नही डरता राजा
विचार बनकर
आती है तब
कांपता है राजा
अखबार खबर को
विचार में बदलता है.
सुधीर देशपांडे.
6.
ओ बीते बरस
यह था
कि कितनी ही बातों को
गये थे तरस
ओ बीते बरस
पर यह भी कि
सिखा गये
थोडे में ही सही
जीना कठिन नही
नये अवसरों की
खोज में कहीं कमी नहीं
अपनी जमीं अपना आसमां
काफी है सुकूं से जीने को
7.
लुहार ने लिया लोहा
तपाया और
ठोककर बनाई कील
किसान ने
धूरी पर ठोक दी
थोडी गहरे और पहिये चल पडे़..
बीच रास्ते में राहगीर
रुक कर
टूटी चप्पल के बंद को
एक कील ठोककर
किया ठीक वरना
पैर बचाने वाली
चप्पल भी कहां चलने दे रही थी
ठीक से..
कुम्हार के चक्के
को आधार दे गढ़ती रही
आकार बर्तनों का
बढ़इयों मोचियों ही नहीं
सभी कामगारों ने कीलों से किया जोड़ने का काम..
चुभती भी रहीं कीलें
अंधविश्वास की
जब तब
नासूर की तरह
टीसती रही जैसे कि टीसती है
चप्पलों या जूतियों
में गड़ी कीलें
उनके तलों से मुंह उठाकर हमारे तलवों में।
एक कील ने निकाला
दूसरी कील को
और हथियार बन गई
ऐसे ही
एक कील
कई सभ्यताओं के बीच
चली आई
चप्पलों से चक्कों तक को सम्हाले
हुए
सोचता हूँ
कीलें न होती
तो सभ्यताओं का स्थानांतरण
भी कहां संभव थ
7
अभिलाषा.
मैं
वह किताब हो जाना
चाहता हूं
जिसमें छुपा हो
एक फूल मुहब्बत का
एक टुकडा केंचुली हो
और हो विद्या की कुछ पत्ते
तुम्हारे सिरहाने रहना चाहता हूँ
पढ़ा जाए मुझे
वैसे ही बार बार
जैसे कि रामायण
कि न आता हो
अक्षरों का पहचानना
पर पंक्ति दर पंक्ति
कंठस्थ हो
कि तुम्हारी आंखों में
सपने की तरह बस सकूँ
कर सकूँ कुछ सच भी
मैं किताब हो जाना चाहता हूँ
जिसे पढ़ सके हर कोई.
8.
सुनो,
यह शोर सुन रहे हो
सुन रहा हूँ मैने कहा और
उठकर बाहर जाने लगा
उसने कहा
रहने दो तुम्हें इससे क्या?
मैं बैठ गया
सुनो यह शोर
हमारे ही घर के सामने है
मैं अब नहीं रूका
मैं बाहर भागा
मेरे पीछे वह भी
अपने घर पर आई आफत
पहले जरूर
किसी और के घर थी
अपने घर को बचाने के लिए
दूसरे का घर बचाना
ज्यादा जरूरी था
मैंने कहा
वह चुप थी.
9.
*पहिया*
जिसने बनाया होगा
पहला पहिया
सोचा भी न होगा उसने
इसकी गति को लेकर
नहीं जानता कि
कल्पना भी न की होगी या नही
कि एक क्रांति
इन्ही पहियों पर जन्म लेगी
कुम्हार रचेगा बरतनों के आकार
मशीनों के पहिए
मनुष्य के
एक इशारे पर रचेंगे
निर्माणों का इतिहास
सब याद रखा जाएगा
कि फ्रांस का विकास,
रूस की क्रांति
अमेरिका का उत्थान
जापान की बुलेट ट्रेन
सब के पीछे होगा पहिया ही
कल तक जब पहियों के
बारे में सोच रहे थे
कल्पना ही
कालबाह्य थी कि ठहर जाएं
किसी दिन ये पहिए
क्या होगा
वह दिन भी देख लिया
अब सोचता हूं
पहिए फिर चालू हो जाएंगे
आदमी और आदमियत ही न रही
तो क्या होगा
जाने दो पहियों को
हम आदमी की सोचें।
10
*गंदे हाथ*
उसने कभी
हाथ नहीं धोये
खाना खाने से
पहले
बहुत अच्छी तरह
जैसा कि बताया जाता है
धोए जाने चाहिए
बीस सेकेंड तक कम से कम
उठाकर रोटी
चटनी के संग ही तो
खाना था
और भागना था
मुकादम आवाज लगाए
उसके पहले
बच्चों ने भी कहां किया
परहेज
गंदले हाथों से
पर हम ही
परहेज करते रहे
उन हाथों से
जिन्होंने
हमारे लिए ही
उगाए गेंहूं
बनाए मकान
और अब चले आए
आपद दौर में
अपने घरों की ओर
उन्हीं हाथों के साथ
उन्हीं पर भरोसा कर
पता नहीं किस
जीवनी शक्ति से लबरेज थे
हाथ
कि कभी बीमार न पडे
11.
मन की गांठें खोल सको तो,
जो कुछ है वो बोल सको तो
शायद दूरी मिट जाएगी
अंधियारी भी छंट जाएगी,
सबकी अपनी मजबूरी है
सबके मन में भी दूरी है
छोड़ अगर दूं भाव अहम का
फिर मेरा क्या रह जाएगा
दरमियान है भाव वहम का
क्या वो सारा बह जाएगा
धुल जाएंगी क्या कालिखें
कैसे किसके घर में झांकें
अपना रोना है खुद को ही
ओर किसीके फिर क्यों ताकें
12.
ईयरबड्स
ईयरबड्स
कई काम आते हैं
कान साफ करने के अलावा भी
वे तब ज्यादा मुफीद होते हैं
जब कि
बोर हो रहे हों
किसी की बात से
तब आपकी छिंगुली
ज्यादा काम नहीं आती
और बड्स धीरे धीरे
आपको दूर करते हैं
बोरियत से
और जताते हैं
कि बहुत हो रहा अब
बड्स एक साथ दो काम करते हैं
पर दोनों के एक ही नाम है
कान साफ करना।
13.
बेटे
तूने
सबको धता बताकर
खोज लिया
अपनी खुशी का मार्ग
अच्छा हुआ
नहीं भागा धन के पीछे
कार्पोरेट के
बनाए सोने के पिंजरे
की ओर नहीं भागा
दाना देख कर भी
नहीं दौडा
खाने उसे
जबकि कहते रहे लोग
कि इस शहर में नहीं
भविष्य तेरा
भविष्य का सृजन
हम ही करते हैं
अपनी खुशियों की कीमत पर
तूने बच्चों के भविष्य में
देखी तमाम खुशियाँ
खुशियों की कीमत
तूने समझी
बहुत था यह
14.
चलो तानकर सोयें भाई
अब तो रैन भई
जब तक तब तक
आ ना जाती कोई सुबह नई
इन रातों में कौन देखता
क्या से क्या हो जाता
कौन सुबह की खातिर अपनी
बाकी जान लगाता
खटकर्मों में लगे हुये जन
चलते चाल नई.
अंधियारा हावी ना होये
भय अपनी ताकत भी खोये
कोई पथिक पथ भटके ना
सो एक दीप जलता रहता है
अंधियारे से आँख मूँदकर
बीते साल कई.
15.
बिल्कुल कठिन नहीं है
सोच पाना
कि नाक ही न होती
तो न तुम मेरी नाक में दम करते
न मैं नाक कटने की चिंता में ही
करता रहूं
गलतियों पर गलतियां
न नाक ऊँची रखने को ही
बेटियों के निर्णय के विरुद्ध दे दूं
फतवा
नाक बचाना ही है
तो खडा रहूंगा उन सबके साथ
जो लड रहे हैं
लगातार उन मूर्खताओं के विरुद्ध
जो अंततः नाक को
एक अंग से बढकर बहुत कुछ
मान लेते हैं
बेशक कि नाक
एक खूबसूरत सा जरूरी अंग है
शरीर का
जो चेहरे के सौंदर्य का
एक मापदंड है
कि बेढब नाक नहीं चाहता कोई
और ये भी नहीं चाहता कि
शूर्पनखा की नाक कटे
और पूरा खानदान
खत्म हो जाए
प्रतिशोध की ज्वाला में
16.
चम्मच
उपेक्षित रहा हो
कभी नहीं हुआ
बाजरूरत
काम आता रहा
बर्तनों से
निकालने घी, मुरब्बा
या सब्जी ही
बचाता रहा हाथों को
जलने से
खीर, रबडी या और चीजें
जो कि खाई जा सकती हैं
चम्मच से
दवाइयों की मात्रा
तय होती है चम्मच से ही
या कि चाय में चीनी
अलबत्ता संस्कार भी हैं
नये जमाने के
कि
चम्मच से ही खाया जाए
दोसा या इडली या ऐसा ही कुछ
जिन्हें हाथों से ही खाना
आमतौर पर सुविधाजनक
माना जाता रहा
पर वह कहां आ बैठा
किसी व्यक्ति में
कि तिरस्कृत होता रहा
वही.
।।इति।।