पुस्तक तपशिलाकडे परत अहवाल पुनरावलोकन

तारी ज्ञाना I

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    तारी "ज्ञाना"*

               ( अभंग )


महती नामाची |कळो माझ्या मना 

वेगळी कामना | नको चित्ता ॥१॥


नाम मुखी राहो | राहो सदा मनी |

विकल्प जो मनी | होवो दुर ॥२॥


शुद्ध व्हावे मन | शुद्ध आचरण |

असे पुण्य स्थान | गुरू भावे ॥३॥


पुण्याचा संचय | सच्छील वर्तन |

असे काया मन | गुरुप्रिय ॥४॥


गुरू भेट होणे | लाभणे दर्शन I

गुरू मनी स्थान | भाग्यवंता ॥५॥


वाटे ऐसे भाग्य |मना लाभो कधि l

गुरु पायी कधि I मिळो स्थान॥६॥


माझे सर्व काही Iठाऊक तुम्हालाl

तुम्हीच साक्षिला |कृत्याकृत्ती॥७॥


मनी माझ्या भाव|भक्तीचा तुझ्याच 

"प्रदिपा" सदैव |तारी "ज्ञाना" ॥८॥


                      ....... प्रदिप राजे 

                            माणिकनगर

                   २२ / ०८ / २०२१

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