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क़ातिल दिलबर

उसके नाज़-ओ-नखरे ही काफ़ी हैं

मुझे हलाक कर देने के लिए

मेरा दिलबर क़त्ल बड़े सलीक़े से करता है

 

देता है ज़ख़्म बला के गहरे

और आह तक भरने नहीं देता

मेरा दिलबर क़त्ल बड़े सलीक़े से करता है

 

यूँ नज़ाकत से चलाता है ख़ंजर

कि सीना खुद-ब-खुद सामने कर दूँ

मेरा दिलबर क़त्ल बड़े सलीक़े से करता है

 

ऐसी नफ़ीस नश्तर-ए-नज़र

कि खुद से क़ुर्बां हो जाऊँ

मेरा दिलबर क़त्ल बड़े सलीक़े से करता है

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