उसके भी घर दिवाली है
देश की सीमा पर वह
फौलाद- सा खड़ा है
दुश्मनों के वक्ष में
वह तीर- सा गड़ा है
पत्थर-सा मजबूत सही
पर उसका भी एक दिल है
त्योहारों में जश्न मनाना
कहाँ उसे हासिल है?
हाथों में हथियार सही
दिल में घर की यादें हैं
आखें नम भी हो तो क्या
जागी चौकन्नी रातें हैं
भारत माता की धरती को
किया हुआ एक वादा है
उसकी आन बचाने को
जान भी कहाँ ज्यादा है?
कैसी होली क्या दिवाली
वह बारूदों से खेल रहा
वह डटा हुआ है सरहद पर
है अपना लहू उडेल रहा
वह है तो तेरे घर आंगन
उम्मीदें हैं खुशहाली है
पर भूल न जाना इतना तू
उसके भी घर दिवाली है
उसके भी घर दिवाली है....!!!
©ऋचा दीपक कर्पे