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सत्संग


गर कुछ मांगना है उस शक्ति से, 
तो मांग जीवन में अच्छे संग सारे.
है न वो व्यक्तित्व अनोखे, 
जो बचपन से है पढ़े-सुने.
जब एक दिन मुनि नारद मिले ;
जंगल में उस खूंखार डाकू से, 
पूछे मुनि उस डाकू से ;
क्या कुटुंब सहभागी है पाप में तेरे ? 
तब वह समझा ज्ञान प्रकाश में, 
कर्मफल मेरे कर्मों के मेरे ही रे.
राम राम ना निकले जब डाकू मुख से, 
तो गजब मंत्र मुनि उसे दियो रे..! 
मरा मरा बस तू कह दे;
फिर कल्याण तेरा निश्चित होवे रे.
मरा मरा मंत्र कहते कहते, 
राम नाम में समाधिस्थ हो गए वे.. 
ना मुनि नारद मिलते वाल्या से, 
ना मिलती दैवी रामायण रे.
नारदजी के संग से देखो वाल्मीकि;
वाल्या से और महर्षि डाकू से बने.
तो मांग प्रभु श्रीराम से प्यारे, 
पाऊँ जीवन में सत्संग ही सारे.. 
पाऊँ जीवन में सत्संग ही सारे.. 

©कीर्ति अडारकर

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