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मैं खुश हो जाती हूँ

मैं खुश हो जाती हूँ...

जब रात की खामोशी में रेडियो पर

कोई प्यारा सा गाना आ जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब डायरी के पन्ने उलटते पुलटते

उसमें रखा सूखा पीपल का पत्ता मिल जाय...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब पढा पढ़ा के थक जाने के बाद 

कोई प्यारा सा दोस्त मिलने आ जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब कपडों की अलमारी जमाते वक्त 

चॉकलेट के वो रैपर्स मिल जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब महीनों बाद किसी अपने का 

एक प्यारा-सा संदेश आ जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब कोई बचपन का साथी मेरे साथ 

आज भी वक्त बिताए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब मासूम से नन्हें चेहरों पर 

मेरी वजह से मुस्कान आ जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब अचानक से बादल गरजे 

और बारिश आ जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब बहुत ढूंढने के बाद 

कोई प्यारी-सी किताब मिल जाए...


मैं खुश हो जाती हूँ...

जब कोई किसी छोटी सी बात को सराहे और मेरा हौसला बढ़ाए...


जिंदगी के छोटे-छोटे पलों में ही 

बडी़ बडी़ खुशियाँ छिपी हैं.. 

तो फ़िर.....

किसी खास पल का इंतजार क्यों किया जाए?


-ऋचा ...

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