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आंखों से झलकते हैं

कुछ दर्द हैं ऐसे भी जो मुस्कान में झलकते हैं

ऐसे भी सुख हैं जो आंखों से छलकते हैं


कैसा अटूट बंधन सा सुख दुख का नाता है

इनके बिना जीवन में आनंद कहां आता है


ऐसा ही अपनापन  हर मन में समा जाए

हम क्या तुम क्या सारा ही विश्व धन्य हो जाए


फूलों की महक भी है  कांटों की चुभन है

स्वीकार कर लो इसको ऐेसा ही जीवन है


मुश्किलें तो जीवन में आती हैं जाती हैं

पर जाते-जाते भी कुछ तो सिखलाती हैं


इसां ही नहीं "निशात''  पशु पक्षी पेड़ पौधे भी

इस प्रेम भावना को समझते हैं लहकते हैं


विमल "निशात"

vimalnishaat10@gmail.com

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