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ये रास्ते !

ये रास्ते.....!
एबरडीन के इन रास्तों पर चलते हुए मुझे मोदीनगर की सड़क याद आती है. दिल्ली से हरिद्वार, देहरादून जाता रास्ता और इस पर बसा हमारा मोदीनगर.
पहले एबरडीन की बात करते हैं. साफ सुंदर सड़कें, ग्रेनाइट की बनी इमारतेंऔर मकान. इन सड़कों पर नियमों का पालन करके चलते सभ्य स्वस्थ लोग. हॉर्न का शोर,आपाधापी,कुछ भी तो नहीं. पैदल चलता कोई आपसे आगे निकलना चाहता है तो एक्सक्यूज़मी और थैंक्स बुदबुदा कर निकल जाता है. सिटी सैंटर में शाॉपिंग के लिए आए लोगों की भीड़ भी भीड़ नहीं लगती. अजब सा सन्नाटा!!
और हमारा मोदीनगर, क्यों सुधरें हम? कुछ इस अंदाज से चलते हुए लोग. ऑटोरिक्शाओं की खड़खड़ाहट, बसों, ट्रकों के तेज हॉर्न, धूप, धूल-धुएं की भरमार.जहां चाहा वहीं गाड़ी किनारे लगाना. ठेले लगा कर रास्ता रोकना. यहशोभा और अधिक बढ़जाती है सीकरी के देवी मेलेऔर कांवरियों के कारण मानो एक केसरिया नदी इस रास्ते पर पूरे शोर शराबे केसाथ बहने लगती है.गन्ने की बुग्गियों का अलग अंदाज है. मेरे विचार में दिल्ली और पश्चिमी उ. प्र. के सभी लोग इस रास्ते के सिर दर्द से परिचित होंगे.
पर पता नहीं क्यों जब मोदीनगर की सड़क याद आती है तो अंदर एक अल्हड़ आवाज़ उठती है-कुछ भी कहो जिंदगी यहां ही है !!!!
मानो तीखे पानी वाला गोलगप्पा फच्च से मुंह में रख लिया हो, कुछ भी नहीं है, जो है बहुत तीखा है पर मजा .......वाह!!

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