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दिल का कमरा: समीक्षा

"दिल का कमरा" - मन को छूकर अनुभती देने वाली कविताएँ|

   ऋचा यह नाम शॉपिज़न डॉट इन के माध्यम से और "दिल का कमरा" इस पहले प्रकाशित संग्रह से निखरकर सामने आया है| ऋचा की कविता एक अनुभूती का माध्यम है| ऐसे जब कहा जाता है, तब वह कविता पढ़ते समय ध्यान आता है कि, ऋचा की कविता हृदय से निकली हुई एक आहट है|

    ऋचा से परिचय तो कुछ एक साल पहले से हुआ| तब से हम उने ऋचाताई नाम से बुलाते है| जब हमे ऋचाताई 'दस बाय दस' के कमरे मे अपना जीवन व्यतीत कर रही है| ऐसे सुना तो, हमारे ही मुहसे एक चिख निकली| उनकी संवेदना क्या होगी| प्रश्न? मात्र उन्होने अपनी गुजरी हुई जीवनी पर उभरकर एक बडे प्लेटफार्म के माध्यम से आज मराठी भाषा के साहित्य रचनाकारों कों विश्वव्यापी करने का प्रयास किया| आज वह 'दस बाय दस' का कमरा एक विश्व का ब्रम्हांड महसूस होने लगा है| 

   जिनकी चाह आसमान को छूने की होती है, व पीछे मुडकर देखते नही| दुसरों को खुशियों के पल देने के लिये हरदम तयार रहते है| इसी तरह यह ऋचाताई है| 

   अपने खिडकी के झरोके से चाँद को निहारते बैठी हुई ऋचाताई यह मुखपृष्ठ याने उनके संपूर्ण जीवन का सार ही यह कविता का सार है| इन संग्रह में पैंतालिस कविताओं का गुच्छ है| हरएक कविता मन को भा जाती है| 

   ऋचाताई अपने माध्यम से जरूर बताती है कि, "मै कोई कविता की अभ्यासक नही हूँ|" यह जरुरी भी नही है| सुरज की किरण को इस धरा पर आने से रोका नही जा सकता| उसी तरह मन की भावनाओं का काफिला इस कागज पर कलम होकर आने से कौन रोक सकता है| हम तो कहते है कि, रचनाकार होना कोई पढाई या पाठशाला नही है| वह तो अनुभवों की खान है| यही अनुभव ऋचाताई का है| मात्र किताब तक आने का प्रयास बडा लंबा होता है| जो ऋचाताई को उनके अनुभव समृद्ध जीवन से मिला है| ऋचाताई इस प्रकाशन हेतू एक बडी परछाई छोड रही है| जो व्यक्ति माध्यम से पाठकों के दिलों में जरूर नीव बनकर सदा रहेगी|

       "मेरी कविता 

कोई मॅगी नही है, 

जो दो मिनिट मे पक जाए!|" पृ. 25 

   वाह! बहुत खूब ताई, पहिली ही कविता की लाईन पाठकों के दिल को चुराकर ले गई| यह काव्यांश का मुखडा कविता के बारे में इमान दिल मे कितना भरा है, यह सहजता से बतलाती है| सचमुछ बगिया से कुछ ताजा अहसास हो यह उनकी कविता का भाव है| उनकी कविता आसमान को छूने निकलती है| तब वह अपने खुद की मन भावनाओं को आसमान से निहारती है| 

"मै ओढूँगी आकाश तेरा

 गर ओढे तू मेरा आसमान....!" पृ. 28

ऋचा के काव्य में ऐसी प्रतिमाएं आती है| जो अपने मन को गहन बनाती है| 

ऋचा की कविता उनके दिल की बात जरूर है| लेकिन उनमे जीवन का दर्द भरा है, उतना ही उमंग भरा है| लेकिन उस जीवन दर्द की परवाह न करते हुए इस जहान से हर पल, हर वक्त, हर समय खुशियां ढूंढना, उसके मौके तलाशना यही उनकी जीवनी है| इतना मन का अमरत्व जिस मन मे हो, उस मन से निकली हुई कविता पाठकों के दिल को तो जरूर छू लेगी| 

"मेरा कमरा आज भी वैसा ही है| 

और शायद.... नही नही यकीनन....

वैसी ही हूँ मै भी….." पृ.31     

   अपने पारदर्शक मन की बात की सहजता से ऋचा बताती है| यह उनकी ही नही तो हर किसी की भावना लगती है| और काव्यांश पढते समय बारबार यह लाईन को मन मे सजाते हुए पाठक रहते है| ऋचाताई अपने मनसे 'पैमाना' यह काव्यांश में विचार और भावनाओं के साथ चैतन्य और गहनता लिए सुख, आनंद, उत्साह, चाह का पैमान संजोती है| 

   एक विशेष बात करे तो, 'चंद्रयान' कविता का कुछ अंश मेरे मन को तो भा गया...! 

     "जब देखा मैने खुद को तुम्हारी नजरो से 

तब एहसास हुआ 

कि मै सच मे खुबसुरत हूँ| 

बहुत खूबसूरत.....!!!" पृ. 34

   अपने मन को विशाल प्रेरणा प्रदान करने वाली, हरेक मन को समझकर जीवन व्यतीत करने वाली मन की सोच ही यहाँ जीवन का मध्यवर्ती आशय है| जीवनभर हम चांद्रयान को दूर से ही तलाशते रहे है| चांद्रयान याने मन की एक भावना है| जो अपने बहुत करीब व्यक्तित्व से मिलती है| मगर कुछ आदमी "बगल में छोरा गाँव में ढिंढोरा" इस तरह जीवन व्यतीत कर रहे है| इस तरह से हम अपने मन को दूर तक निहारने के लिए नजदीकी व्यक्तित्व को अपने खूबसूरत मन से निहारना चाहिये| यह सीख, तुम्हारे कविता में कितना गहरा भाव भरा है| काश यह गहराई हमारे मन मे, दिल मे आती तो आज हम भी इस दुनिया मे अस्तित्व बना पाते| लेकिन आपकी कविताओं की सीख जरूर साथ लिए आगे प्रयास करेंगे यह विश्वास निर्माण होना ही "दिल का कमरा" काव्यांश का मतितार्थ है| 

   ऋचा अपने काव्य मे रोशनी भरती है| रंग लाती है| उनके काव्य मे एक महक है| जो मानवी मन मे, रिश्ते-नातो के सम्मान के लिये, आस्था और विश्वास के साथ उन की कविता का रोचक भाव सृजन बनकर पाठकों के दिल को छू लेता है| यही तो मन मे खिलनेवाली दिवाली है| जो सदियों से हम अपनी संस्कृती से प्रकट कर रहे है| ऋचा सिर्फ अपने शब्द के भाव से दिवाली सजाती है| इतना गहरा विश्वास शब्दो पर होना, काव्य के प्रति समर्पितता कितनी है, यह विश्वास उनके कविता से मिलता है|

    मन मन की खुशियों का आंगन भरने के लिए, ऋचा 'मकान घर बन जायेगा' इस कविता से शब्दबद्ध होती है| तब "चिडिया का घोसला फिर बन जायेगा..." यह दु:खद भाव से आशावाद की किरणे प्रसारने वाला भाव काव्य के माध्यम से मन मे उजागर हो, तो "मन मे है विश्वास, हम होंगे कामयाब...!" यह पंक्तियों की याद दिलाती है| और यह मकान घर बन जायेगा इस पंक्तियों में मकान और घर शब्द के माध्यमसे सोच, विचारों का बवाल खडा कर, अपने मन को तलाशने के लिए ऋचाताई सबको आमंत्रण दे रही है| 

   वाह खूब! इतना मृदू भाव अगर शब्दों के लय में हो, तो कौनसा पाठक इस गहरे शब्दों के कुएँ मे डूबकर अपनी प्यास नही बुझायेगा| प्रश्न? मुझे खाये जा रहा है| 

   कवयित्री मराठी भाषिक है| परंतु हिंदी भाषा के गंध को निहारते हुए उस भाषा की एक महत्तम वाचक बनकर प्रस्तुत होना एक बडी बात है| उनकी काव्यरचना तो बहुत खूबी से हिंदी भाषा पर जडी हुई उनकी प्रीती, लगाव बताती है| 

   काव्यप्रांत मे आये हुए 'बरकत' इस काव्य मे दो लब्ज है| ध्यान से देखे तो उर्दू भाषा का अभ्यासक व हिंदी भाषा का संगम उनके सारस्वत जीवन मे एक उमंग की तरह के माध्यम से आता हुआ दिखाई देता है| इससे उनकी काव्यप्रति सोच दिखाई देती है| 

"खुदा की इबादत हुआ करते थे 

वो शौक नही, जरुरत नही 

आदत हुआ करते थे..... | पृ.40 

   इन कविताओं का मूल्य क्या करे? मानवी भावों कें प्रति समर्पित कविता का मूल्य नही किया जा सकता| इतनी अमूल्य यह कविता हमारे मन मे गहरी हो जाती है| 

   ऋचाताई चिड़ियों, पेड-पौधे, इस अंतराल मे समावेशित हर चीज से अंतर्मन से बाते करती है| तब उनकी मन की आस्था आशावादी होकर इस प्रकृती को समझकर प्रयास से इस दुनिया में उभरकर आने के लिए नवनिर्माण का नारा चिड़ियों के माध्यम से देती है| ऋचाताई इतनी गहन होकर सीधी सी बात चिड़ियों के माध्यम से संदेश के दायरे में जाकर बताना, यही तो सच्ची प्रकृतीवादी, निसर्गवादी कविता कहलाती है| 

फर्क सिर्फ इतना है 

कि आसमान से बरसने वाली बूंदे मिठी है 

और आँखो से बरसने वाली खारी.... पृ.44 

  बुंदे यह आँखो का धुंद्लापन, मन में पैदा हुआ जहरीलापन निकालने वाली यह बहुत ही शामक कविता है| बुंदे पानी की हो या आँखो की, बूंदे तो बूंदे होती है| उन बुंदो से इंद्रधनुष्य के रंगो का भाव निखारो या रोती हुई दु:खी मन वाली व्यक्ती को देखो| मन मे भाव सच्चा हो, दिल मे मानव जाती के प्रति आस्था हो| किसी के लिये मन मे इर्षा ना हो तो, यह बुंदे भी बडी प्यारी लगती है| यह शब्दों के प्रति ही नही अपने मन की भावनाओं को पारदर्शित्व समर्पित करनेवाली उच्चतम रचना है| जो मुझे आरसपानी संगमरवरी खूबसूरत ताजमहल की खूबसूरती जैसी लगती है| उसके प्रति जो निर्माण भाव है| उसी प्रकार का निर्माण भाव ऋचाताई के शब्दों के माध्यम से कविता में आ रहा है| वह भी 'दिल के कमरे से...' 

   कभी ऋचाताई पहिली बारिश की वही बूंदे अपनी बचपन की सुहानी यादो से निहारती है| अधुरे ख्वाबों को, उनके बचपन की हसी को तलाशती है| वही बुंदो मे हरदम, हमेशा अपने जीवन की आस्था को निहारती है| 

   ऋचाताई प्राकृतिक निसर्गभाव मे रमने वाली एक आस्वादक कवयित्री है| दुनिया मे जो मन की सच्चाई है, उसको इस निसर्ग मूलभूत तत्त्व मे खोजें तो दुनिया का निर्माण का मूलतत्व सामने आता है| यह बहुत खूबी से वह जानती है| और उनकी कविता इस प्रकृती से 'लॉंग ड्राईव्ह...' करने लगती है| जब उनकी शब्दो की ड्राईव्ह देखे तो उनके मन की तरलता और उनके मन का खोया हुआ भाव इस निसर्गतत्त्व मे ढूँडकर मन को हराभरा करनेवाला एक सुजाव पाठकों को सरलता से बहाल करती है| 

   'एक दिन फुरसत का' यह कविता मे अपने मन की चाहत को उजागर करती है| जो चाह आज के गर्दिश मे, दुनिया के हर व्यक्ति के मन का भाव दिखाती है| चिडिया के गीत सुनना, होठों की हसीं को निखारना, किताबों के पन्ने में खोकर जीना, अपने अल्लडपन की कशिश हवा के झरोखे से व्यतीत करना, डूबते हुए सुरज से वापसी मिलने का वादा करना, मंदिर मे मुरली की मीठी तान सुनना, चंदा तारों के जुगनू संग लोरी गाने का मन करना, इस तरह से अविचल बहता मन फुरसत की घडी निहारने वाला पल अपने जीवन में आने की आशंका रखता हो| वही इस दुनिया मे अपने भावों के प्रति बडा आशावादी होता है| यह काव्यपंक्ती का भाव मन में नयी उमंग प्रदान करता है| 

   'ऋचाताई को प्यार होने लगा है....|' थोडा ठहरिये.... मन के भाव एकदम से न खोले! उनके यह वाक्य के प्रति भावनाओं को समझे| उनकी यह प्रीत इस दुनिया में समाई हुई प्राकृतिक रचनाओं का आस्वाद है| जब तक हमारे मन की प्रीत इस प्राकृतिक रचना पर हावी न हो, तबतक मन का भाव हर मन मे सुंदरता नही निहार सकता| कवयित्री का 'प्रेमोत्सव' इस दुनिया की चीजों से प्यार बरसाने वाला प्रेम उत्सव है|

   उनके स्वप्न अपने शब्दों के साथ कल्पनाओं के पंख फैलाकर उडने चले है| एक नया स्वप्नलोक साकार करने का भाव पाठकों को दे, यह काव्य के प्रति आस्था दर्शाती है| 

   कभी वह 'जादू का पिटारा' लेकर बाल व्यक्तित्व को काव्य समर्पित करती है| तब उनकी घर की चीजे, घर की रचना, और नजरों मे आनेवाला निसर्गभाव उनको महसूस करता देख, उनके मन का विशाल दातृत्व पाठक निखारने लगता है| यह कविता मे सबसे बडा भाव महसूस होता है|  

   मासूम बचपन की यादो को तलाशना और आज का बचपन महंगाई की खाई मे मुरझा जाना, इस पर व्यक्त होकर मासूम जिंदगानी मुरझाने से पहिले उनके भावविश्व की समृद्धता कैसे लौट आयेगी यह एक प्रश्नचिन्ह तयार करने वाली सुंदर कविता मन को भा गई| 

       'कविता लिखना न हो पायेगा 

यह तो अंदाज ए इश्क है 

जब होना होगा हो जायेगा....' पृ.62 

'कितने दिन हुए..' इस काव्य के माध्यम से आज की काव्यकारो को एक तमाचा है| 'प्रसूती जैसी वेदनाए, अनुभव ही कलम की खुपिया है| जो रचनाकार कहलाती है| मात्र आज रचना अनुभूती से दूर भागती हुयी, कुत्रिमता से आयी एक बौछार लगती है| जो सिर्फ माहोल को संजोती है| पाठक इस रचना से और रचनाकारो से दूर जा रहा है| कभी कभी इस बात को ध्यान से गौर करे तो रुकना, थमना चाहिये, और साहित्य के सुंदर विधाएँ पहचानने के लिए पढ़ना चाहिये| यह सीख ऋचाताई कलम से देती है| किताबो की दुनिया मे रहनेवाली ऋचाताई अपने मन के भाव इस माध्यम से जब देती है तब स्वाभाविक ही कलम हात मे लेना याने तपस्याव्रत स्वीकारना होता है| यह उपदेश उनके काव्य से मिलता है| 

   नदियों सी बहती, सुखदु:ख के दोनो तीरों से कुछ कहती, सुनती कविता हो| कभी गम, कभी खुशी के आँसूं बनकर उदासिनीकरण की क्रिया शरीर मे निरंतर सहते समय अपने भावनाओ को एक ब्रम्हांड व्याप्त न्याय दे सके इतना महुसुसी भाव उनके काव्य से तरलता है| अपने मन मे एक मूर्तिकार है| इस भावना, कल्पना, विचार को आकार देना अपना काम है| 'ज्वालामुखी' से हर व्यक्ति ने अपनी भिन्न व्यक्तित्व को पहचानना चाहिये| रोशनी, परछाई का जो खेल है| उससे अपने मन में अहसास पैदा करना चाहिए| आंखे भी अजीब होती है, सपने देखना और टूटते हुये सपने देखकर खुद ही रोना| कितनी कमाल की बातें है| उनकी कविता मे ऋचाताई मन के अनन्य भाव बतलाती है| उनकी कविता जीवन का एक उपदेश है| जो सर्वमात्र लागू होता है| इस जीवन से हमे यह काव्यसंग्रह सबके दिलो पर राज करनेवाला, यादगार रहनेवाला, संग्रह बनकर सामने आया है| जो हर एक मानवी मन का पुरस्कृत संग्रह कहलायेगा| 

   अब बस! हम तारीफ तो नही कर रहे है| ऐसा आप को न लगे, हमे जैसे इस काव्य के भाव दिखाई दिये वह तो सरलतासे लिखकर जा रहे है| मात्र इस संग्रह की अनुभूति आप लोगे तब आपको भी यह संग्रह पसंद आयेगा| 

   'तारीख पर तारीख' यह कविता समाज मे स्त्री अत्याचार जैसे निर्भया प्रकरण के भाव को उजागर करनेवाली कविता समाज, राष्ट्रहित की और मानवतावादी नीव रखने वाली अच्छी कविता है| कविता पढ़ते समय 'दामिनी फिल्म' का 'सनी देओल' याद आ जाये तो, इस कविता का नशा कुछ आपके दिल पर छा गया ऐसे ही समझो| 

   अरे यार! हसो मत.... यह सच्चाई है| अंत:त: घोर निराशा के सारे बादल छट जायेंगे, यह भाव उनकी कविता से आता है| महिला सन्मान की पुकार, न्याय की पुकार, कानून के दायरे में होने वाला घटिया दौर पहचानने के लिये स्त्री सन्मान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है| और स्त्री अस्मिता से खेलने वाले को चेतावनी देता है| "देर सही.... अंधेर नही...." 

   जीवन जीना आसान है| फूलों की खुशबू चूमने जैसा ये जीवन सरल है| बस! उसे उस प्राकृतिक नजाकत से नजरिया बदलकर बड़े आशावाद से व्यतीत करे| ऋचाताई व्यथित, दुःखी, पीडीत मन की फुलवारी बनती है| जीने की नयी राह देती है| 

   उनकी कितनी रचना ओ पर लिखे| 

       "बेफिक्र हो जाने दो खुद को जरा 

खुद को जरा... खुद मे ही खो जाने दो" पृ. 85

   ऋचाताई की कविता उनके लिए और आप सभी के लिये है| क्योकी उनकी कविता का हर लफ्ज एक अहसास देता है| उनकी मन की भावनाए चित्रकार की नजरो से मिलती है| कागज की कश्ती से डूलती है| आईने के साथ बदलते अक्स को ढूँढती है| जीवन की पहेली सुलझाने का प्रयास करती है| इतना ही नही अमरत्व का ज्ञान प्रस्तुत करती है| 

   ऋचाताई तो जीवन के साथ खुद सदा क्वांरटाइन है| मगर आज की यह क्वांरटाइन होने वाली दुनिया के भाव को इस काव्य के माध्यम से समझ सके तो..! मन मे होने वाले विशद भाव हर एक को छू जायेंगे| आप उनके लफ्जों को जरूर महसूस करते रहोगे| 

"जीवन एक युद्ध है| 

विराट से अतिसूक्ष्म का.... 

यह युद्ध है दृश्य से अदृश्य का....."

   उस जीवन के भाव को इस व्हेंटिलेटर की बेड़ियों से "मुक्त का रश्मीपुंज सी विलीन हो जाने दो, उस रूह को अनंत प्रकाश मे..." इतना बडा हौसला देने वाली यह कविता है| 

   हिंदी कविता में नया शब्द 'बुद्धबक्सा' यह नया शब्द प्रवाहित करती हुई ऋचाताई की रचना तो राजकीय षड्यंत्र के दायरे में सहती आज के जीवन की सच्ची गाथा है| इस शब्द का अर्थ खोजना याने मन मे आनेवाले असंख्य विचार, भाव को एकत्रित करना है| जितना कविता का भाव गहरा है| उतनेही काव्यमे ऐसे आने अनेक शब्द गहरे है| जो आप महसूस कर सके तो अर्थ बताने से भी आप नही जान सकोगे.... | 

   रचना प्रस्तुतीकरण पर ऋचाताईने इतना ध्यान दिया है की, शिल्प की कलाकारी मे मूर्तिकार जितना मन लगाकर शिल्प सवारता हो| यह संग्रह ऐसा ही है| 

   एक 'विलुप्त होते शब्द' नाम की कविता तो आज के प्राकृतिक रचना मे बदलते जीवनशैली पर व्यंग करती है| वैसे ऋचा के कविता मे जो मन के भाव का गहरा अर्थ है वो व्यंग के साथ तो आनेवाला नही है| मगर इस कविता मे जो रहस्यता, गुप्तता है| जो चेहरे पर मिश्कीली देती है| 

       'सहेलियाँ और दोस्त अब फ्रेंड्स 

इश्क लव और प्रेमी बायफ्रेंड कहलाता है 

अब दिल नही टूटा करते जनाब 

सीधा ब्रेकअप हो जाता है' 

   ऋचा 'मॉ और सोशल मीडिया' कविता संवादहमयी होकर माँ का बेटी प्रति प्यार, रिश्ता जो आज के नव युवतीयो को अंतर्मुख कर उपदेश देती है| 

   उनकी कविता जीवन का एक सफर है| यह सफर बहुत बडे अनुभव की प्रयास से हर किसी को साथ दे सकेगा| सफर तय करना हो तो हर एक को सक्षम होना चाहिए और सक्षम जीवनही आगे इस दुनिया मे अपना नाम साबूत रख पाएगा| उस जीवन की यादे हरपल अपने मन में और दुनिया मे लोगो के 'दिलो के कमरो'मे सरलता से रहेगी| 

    आपकी कविता हमे तो बेहद पसंद आयी| यह कहने के बजाय हम आप की कविता महसूस कर सके| हरपल, जीवनभर मन के यह आशय, भाव जीवन मे हमारा साया बनकर साथ देनेवाला है| हिंदी भाषा को समझकर उसपर बडे शब्दमात्र मे व्यक्त होना पहिला समय है| पाठकों को व्यक्त होते समय कुछ गलतियाँ दिखे तो यह मेरे भाषा माध्यम से आयी हुयी कमियां समझे| 

   आपकी कविता सीधी, सरल है| उतनी ही मन मे गूढता के भाव प्रकट करती है| नाव की तरह मन मे तरलती है| ऋचाताई काव्य के अंत मे कहती है... | 

       "ऋग्वेद की ऋचा हूँ मैं 

अक्षम नही, सक्षम हूँ मैं|" 

   बस! आप के माध्यम से हर किसी को यह सक्षमता प्रदान हो यही आशा करते हुये मन की यह भावनाओं को सीमित करता हूँ धन्यवाद....! 

 

"दिल का कमरा" 

ऋचा दीपक कर्पे 

शॉपिजन प्रकाशन 

पृ.111, मूल्य 184

शब्दप्रस्तुती : संजय येरणे, 

नागभीड मो. 9404121098

 

 

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