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पं.कुमार गंधर्व -सादगीपूर्ण व्यक्तित्व

*सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के धनी कुमारजी*
आज 12 जनवरी की तारीख।हम देवासवासी भला कैसे भूल सकते हैं?
आज ही के दिन सन 1992 को सुबह सुबह रेडियो पर एक दुःखद समाचार सुनने को मिला कि "देश के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित कुमार गंधर्व नहीं रहे।" पहले, तो जो सुना उसपर विश्वास नहीं हुआ।तुरंत ही "भानूकुल" की तरफ निकल पड़ा।बंगले के आसपास ही एकत्रित भीड़भाड़ देख दिल की धड़कनें तीव्र हो चुकी थी। बंगले में जाने के बाद तो एक अनहोनी का प्रत्यक्ष सामना करना ही पड़ा।
प्रत्येक वर्ष आज के दिन उनकी पुण्यतिथि पर देश के ख्यात विख्यात संगीतकार, गायक आकर उन्हें स्वरांजली/संगीतांजली अर्पित करते हैं।कोरोना के कारण अवश्य ही इसमें अवरोध उत्पन्न हुआ है।इस बार होने वाला कार्यक्रम भी अभी चार दिवस पूर्व ही निरस्त करने में आया है।
आज आ.कुमारजी की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें स्मरण करते हुए दो संस्मरण आपके लिए प्रेषित करना चाहता हूं।
*1.सादगीपूर्ण व्यक्तित्व*
बात सन 1983 की है प्रतिदिन की भांति मैं बैंक मेंअपने सेविंग काउंटर पर कार्य कर रहा था।
तभी एक विशिष्ट स्वर ने मेरा ध्यान उधर आकृष्ट किया। स्वाभाविक था कि उस तरफ मेरा ध्यान गया। मेरे पीछे बैठे अधिकारी के सामने कोई सज्जन विराजमान थे।
अधिकारी ने मुझे बुलाकर कहा कि इस पासबुक में एंट्री कर दो। मैंने हाँ कहकर पासबुक पर नाम पढ़ा।पढ़कर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वह खातेदार देश के ख्यात शास्त्रीय गायक पंडित कुमार गंधर्व थे। मैंने तुरंत ही उसमें आवश्यक प्रविष्टियां कर दी। वे चले गए।
शाम को बैंक बन्द होने के समय अधिकारी श्री चिंतामणि किरकिरे से उनके बारे में और विशेषकर मिलवाने का आग्रह किया। कारण श्री किरकिरे उनके शिष्य थे और प्रतिदिन उनका वहां आना जाना था।
एक दिन सुबह बैंक आते ही श्री किरकिरे(प्रख्यात गीतकार स्वानंद किरकिरे के पिता)ने कहा कि आज शाम हम बंगले पर साथ जायेंगे।एक पुष्पहार ले चलना।आज उनका जन्मदिन है। मेरी तो खुशी की सीमा ही नहीं रही।
शाम 6 बजे हम दोनों उनके बंगले "भानुकुल" पर पहुंचे।मुझे बाहर बैठाकर वे बंगले में चले गए।मेरा मन कई प्रकार की आशंकाओं से भर उठा। कारण सामने वाली संगीत की एक महान हस्ती और मैं रेडिओ के फिल्मी गीत सुनने और गाने वाला। कुछ संगीत के विषय मे पूछ लिया तो क्या उत्तर दूंगा?
तभी पंडितजी का स्वर सुनाई पड़ा,
"या कर्पे या" (शायद किरकिरे जी ने उन्हें मेरे बारे में बताया होगा) मैंने सादर उनके चरण स्पर्श किये। जन्मदिन की शुभकामनाएं दी,और सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। नाम,पता,शिक्षा ,निवास और पारिवारिक माहिती आदि के बारे में बातचीत हुई। पश्चात मैं इन्हीं विचारों में खोया घर आ गया।
अगले दिन मैंने श्री किरकिरे साहब को धन्यवाद दिया ,उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा वह अधिक महत्वपूर्ण था मेरे लिए।
"मैंने तुम्हारा औपचारिक परिचय करवा दिया है,अब आगे समय समय पर उनसे मिलते रहना और आगे संबंध संभालना।"
मैंने भी कहा कि "आप निश्चिंत रहें,संबंध निभाना मैं भली भांति जनता हूँ"
बस फिर क्या था।होली हो या दिवाली।
जन्मदिन उनका हो या मेरा। वहाँ आने जाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया।बैंक के उनके कार्य जो किरकिरे जी करते थे वे उन्होंने मुझे दे दिए
बात दिसंबर 1987 की है।मेरे नवीन मकान परिश्रम की "वास्तुशांती" दिनांक 28 दिसंबर 87 को होने वाली थी, और मेरी प्रबल इच्छा थी कि श्री कुमारजी
उस अवसर पर पधारें।मैंने अपनी मंशा पहले तो किरकिरे जी के सामने व्यक्त की। उनकी अनुमति मिलने पर शाम को बैंक से सीधे "भानूकुल" चला गया।अब वह पहले दिन वाली झिझक भी नहीं रह गई थी। बाबा ( आ.कुमारजी को घर पर सभी उसी नाम से पुकारते थे) के सम्मुख मैंने अपनी ईच्छा व्यक्त कर दी।
उन्होंने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी।मैंने खुशी खुशी घर पर सभी को बात बताई। अब काका,मामा या भाई ,बहन आने वाले हों तो ऑटो या तांगे से ला सकते हैं।अब इतने बड़े सम्माननीय व्यक्ति को कैसे लाया जाये? बड़ा प्रश्न था। उस समय चौपहिया तो अधिक थे नहीं। एक दिन यही समस्या उनके सम्मुख व्यक्त कर दी। तो बड़ी सहजता से उन्होंने कहा कि "ऑटोनी येऊन जाऊ" ।यह सुन
मेरे तो सिर का भार ही उतर गया।
नियत समय एक ऑटोवाले को एडवांस
किराया देकर वहाँ उपस्थित रहने को कहा।मैं अपनी साईकल से वहाँ पहुंचा।
ऑटो वाला आ चुका था।
तभी सुयोग से मुझे बंगले से बाहर आते हुए श्री नारायण खड़के जी दिखाई दिए।वे ट्रेवल एजेंसी वाले थे, और श्री कुमारजी तथा आ.वसुंधरा ताई के कार्यक्रम हेतु(देवास से बाहर) टैक्सी का इंतजाम किया करते थे। उनसे नमस्कार चमत्कार किया,अपने आने का उद्देश्य बताया।तो तपाक से बोले अरे आपके यहाँ मैं उनको अपनी टैक्सी में ले आता हूँ। मैंने ऑटो वाले को धन्यवाद देते रवाना किया और आ.कुमारजी सपरिवार मेरे घर की "वास्तु शांति" में पधारे।
चाय -पान,प्रसाद ग्रहण किया।मेरे परिवार के अतिरिक्त इस अवसर पर पधारे सारे मेहमानों से मुलाकात की।
सभी के आग्रह को स्वीकारते हुए एक ग्रुप फोटो भी खिंचवाया। मेरे सहित सभी मेहमान भी प्रसन्न तो हुए साथ ही उनकी सादगी से प्रभावित भी हुए।
*2- समय के पाबंद, कुमारजी*
अक्सर देखा गया है कि कार्यक्रमों में श्रोता और वक्ता तो समय पर या समयपूर्व उपस्थित हो जाते हैं लेकिन अतिथि या कलाकार ही समय पर आते नहीं है।
पं.कुमार गंधर्व के इस कार्यक्रम ने मेरी इस धारणा को गलत सिद्ध कर दिया।
पंडितजी का एक कार्यक्रम देवास के मल्हार स्मृति मंदिर में सायं 7 बजे होना था। मैं अपनी आदत के अनुसार सही समय पहुंच गया था।
सभागृह रिक्त था।5-7 संगीत प्रेमी या यूं कहना अधिक योग्य होगा कि कुमारजी प्रेमी,उपस्थित थे। इसके अलावा एक तिकड़ी भी सभी के आकर्षण का केंद्र थी,और वह तिकड़ी थी कुमारजी के अभिन्न मित्र श्री राहुल बारपुतेजी(संपादक ,नईदुनिया),श्री बाबा डीके साहेब(नाटककार),और श्री विष्णु चिंचालकर (गुरुजी)।
ठीक 7 बजे कुमारजी अपने संगतकारों के साथ मंच पर पधारे और कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए तैयार हुए।प्रस्तुति पूर्व उन्होंने कहा कि- "सभागृह में उपस्थित ये 8-10 श्रोता ही मेरे लिए असली श्रोता हैं। मैं हमेशा समय पर आने वाले श्रोताओं का सम्मान करता हूँ।मैं हमेशा संख्या की बजाय ऐसे कम लेकिन संगीत प्रेमी श्रोताओं का मान रखना पसंद करूंगा। मैं और श्रोताओं के आने का इंतजार करने के स्थान पर समय पर आए इन सुधि श्रोताओं का अपमान करना नहीं चाहता हूं"
इतना कहकर अपना गायन प्रारंभ कर दिया।
आज भी "कुमार गंधर्व प्रतिष्ठान "के कार्यक्रम निर्धारित समय पर ही प्रारंभ होते हैं।इस बात का मुझ जैसे समय के पाबंदों के लिए सदा गर्व महसूस होता है।
*आ.कुमारजी को विनम्र श्रद्धांजलि*
धन्यवाद
दीपक कर्पे
देवास
12 जनवरी 2022

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