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बता ऐ मुहब्बत कौन है तू

यूं किया करते हैं बातें,लोग प्यार की
प्यार ना हो जैसे कोई,जिंस हो बाज़ार की

जिसने कदम बढ़ाए हैं,प्यार की राहों में,
पाया है उसे अक्सर,दुख दर्द की बाहों में

काजल सा खिच गया है,आंखों में इंतज़ार
कहती है धड़कनों से,हर सांस बेक़रार

तुम दर्द को समझाओ,दम-भर तो ठहर जाए
नाज़ुक है जमीं दिल की,आहिस्ता गुज़र जाए

पर प्यार के लिए तो,यह ज़िंदगी ही कम है
इक हाथ में सेहरा है,इक हाथ में कफ़न है

महके हुए लम्हात का,गजरा ना बिखर जाए
उम्र-ए-रवां से कह दो,कुछ और निखर जाए
दुल्हन सी संवर जाए

जहाँ अल्फाज़ खो जाएं,जुबां ख़ामोश हो जाए
बता दे ए मोहब्बत कौन है तू,और क्या है तू

नहीं जिस्माें का,ये तो रूह से है रूह का रिश्ता
जहाँ कुछ भी कहे,अपने लिए तो बस ख़ुदा है तू!!


शब्दार्थ

जिंस = वस्तु

उम्र-ए-रवां = बीतती उम्र

लम्हात का = क्षणों का


विमल "निशात"
Vimalnishaat10@gmail.com

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