दो प्रेम कविताएँ .
ध्रुव वत्स की कविता -
जब फुर्सत हो तब आना
दोबात दिल की कर जाना
हम तो बैठे हैं छाँव उदासी की
तुम धूप हँसी की ले आना
तुम आओगे तो मौसम
थोड़ा खुशनुमा हो जाएगा
कुछ अलग सी खुशबू ले
झोंका बयार का बह जाएगा
तुम आओगे तो ये सांझ
कुछ और सुनहरी हो जाएगी
सुन कर खनकती हँसी तुम्हारी
ढलती शाम भी ठहर जाएगी
सुनकर बात तुम्हारी ये
रात नशीली हो जाएगी
तुम जो आओ,तुम जब आओ
फुर्सत से बस आना
अपनी कहने आना
बस अपनी कहते जाना .
**********
चाँद और मैं !
मेरी खिड़की के ठीक सामने
चमकते चाँद को जब तब
मैं निहारती हूँ
पाया मैंने -
कभी पेड़ के झुरमुट से
तो कभी किसी मकान
पीछे से झाँकता है
कभी रास्ते पर चलते चलते
पीछे पीछे आताहै चाँद
मेरे आंगन में डेरा डाल कर
बैठने के उत्सुक दिखाई देता है चाँद!
सोचती हूँ -
मुझसे इश्क़ तो नहीं कर बैठा ये चाँद!!!!
(खुशफ़हमी)
कविता -.रश्मि पाठक