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प्रीत

रीति गागर सी हर देहरी
मरुभूमि हर एक शिवाला

कहाँ मिटे यह तृषा अनूठी
कहाँ बुझे अंतस की ज्वाला

कोई पता दे उस पनघट का
छलक रहा हो मंगल घट सा

कोई बताए कहाँ खुली है
कहाँ मिलेगी वह मधुशाला

कल छल सरिता सी बहती हो
जहाँ निरंतर प्रीत की हाला

युगों युगों की प्यास बावरी
हाथों में है खाली प्याला

जन्म जन्म से भटक रहा है
तृषित प्राण योगी मतवाला

कोई पता दे उस पनघट का

छलक रहा हो मंगल घट सा
वह सुरभित जीवन फूलों सा

विमल "निशात"

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