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प्रेम रंग

मिठीत  तुझ्या  येताना  सजना
शहारले रे अंग  अंग
भिजून चिंब  झाले 
मनाला  भावला  प्रेमरंग 

मिरा  भजनात  नहाली
राधिका  रासात  दंग  
अवघे गोकूळ  रंगले  
प्रेमरंगी  अनंग  

चोळी  रूतली रे दंडात 
झाले  पुलकित  अंग अंग 
ओलेती ही  काया 
त्यावर  कृष्ण सख्याचा  संग 

प्रेमरंगाची ही पंचमी 
नाचले  गोकूळ  वेगळाच  ढंग 
ज्याच्या  त्याच्या  मनात  ठसला 
मुरलीधर  शाम  श्रीरंग 

      अरविंद  कुलकर्णी पुणे 
      (मंजिरी  या  काव्यसंग्रहातून)






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