रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

गुलाब का फूल


वह कितने समय से वहां रूक कर लोगों को गुलाब खरीदते देख रहीं थी उस के चेहरे पर कितने ही हाव भाव आ रहे थे कभी किसी को देख कर मुस्कुरा देती और कभी उदास हो जाती | जब वह अकेली रह गई तो उस ने भी एक फूल गुलाब का लिया और उसे देखने लगी उसे देख कर कितने ही भाव उस के चेहरे पर आ रहे थे|
" अंकल इसे पैक करना है "
" फूल पैक करना है? "
" हां ... एक ओर बात आप के पास कटर है? "
"कटर का क्या करो गी "
" मैंने इस के कांटों को काटना है"
" वह गुलाब का ही तो हिस्सा है "
" गुलाब तो प्यार है , खुशियाँ है, खुशियों के साथ यह कांटे...? नहीं अंकल मै उन्हें सिर्फ खुशियाँ देना चाहतीं हूं
सिर्फ प्यार ....सिर्फ प्यार.... "
मै उस का चेहरा देख रहा था जो भावनाओं में खोया हुआ था
" अंकल यह कांटे मै अपने लिए रख लू गी |"
वह मेरे से कटर लेकर उन कांटों को एक एक कर के काट रही थी.... उस के चेहरे से ऐसे लग रहा था जैसे वह उस के सारे दु खों को अपने में समेट रही हो.....
******

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु