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होली आयी रे

होली आयी रे (कविता)

 

होली आयी रे, प्यार के रंगो से

ढेर सारी खुशियो से, उमंगो से

आशा के दिप जलाकर घर घर

महक उठी हर किलकारी से

 

मौसम का ये रंग अनोखा देखो

बोले रे पपीहा, आम की डाल देखो

चुन चुन करती चिडीया का तान देखो

रंगबिरंगी फुलवारी मे तितलिया भी देखो

 

भेद नही किसी काम के मजहब अपना अपना

नन्हे नन्हे आँखो मे देखा कई रंगो का सपना

लाल, हरा, निला, पिला सभी रंग है प्रकृती के

इन्सानियत का रंग देखो कृया खोना क्या पाना

 

मिठास हो जीवन मे तो रंग ही रंग बिखरे है

बैर भाव सब सिक्के झुठे, प्रेमरंग ही सच्चा है

पशु, पंछी सभी जगत का रिश्ता चारो ओर

स्वागत करो सद्गुणों का, दुर्गुणो की होली है

 

प्रज्ञा हंसराज बागुल

कसारा ठाणे

8080453480

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