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चूड़ियाँ पहनना- एक मुहावरा

अभी कुछ दिन पहले मेरा बेटा हिन्दी की परीक्षा की तैयारी कर रहा था , वो उस वक्त मुहावरों को याद करने मे लगा था अचानक एक मुहावरे को पढ़ कर दो मिनट को रुक गया और बोला आई ! (मराठी मे माँ को आई कहा जाता है ) “चूड़ियाँ पहनना “ इस मुहावरे का मतलब बताना जरा ? उसके साथ बाकी बच्चे भी पढ़ रहे थे तो मैंने ऐसे बिना उसकी तरफ ध्यान दिए जवाब दिया “ डरपोक होना “ । उसने बिना एक सेकंड गवाए मुझे जवाब दिया पर ‘आप तो डरपोक नहीं हो चूड़ियाँ तो आप भी पहनती हो’ , ये मुहावरा तो गलत हो गया फिर और बस ये कर वो दूसरे मुहावरे याद करने मे लग गया लेकिन मेरे लिए छोड़ गया बहुत सारे सवाल जिनके जवाब कहीं नहीं थे । 

सोचने वाली बात है ये मुहावरा क्या सोच कर कहा गया होगा शायद ये उस पुरुषसत्तात्मक समाज की देन है ,पितृसत्तात्मक इसलिए नहीं कहूँगी क्योंकि कोई भी पिता जानबूझ कर अपनी बेटी या बेटे के  लिए गलत नहीं करता बस उन पर कहीं न कहीं इस समाज का दबाव हावी हो जाता है, जब महिलाओं के लिए कोई अधिकार नहीं दिए गए थे । लेकिन आज भी एक प्राइमेरी कक्षा की पुस्तक उठा लीजिए जिसमे मात्राएं पढ़ाई जाती हैं उसमे भी लिखा होता है “ राधा जा नल से पानी ला” (एक उदाहरण मात्र )  , क्यों इसकी जगह ये नहीं लिखा जा सकता की “ रोहन जा नल से पानी ला”। इसमे बुराई कोई नहीं पर शायद हम आज भी उसी सोच मे जी रहे हैं और हम बिना सोचे समझे अपने बच्चों को सालों से यही पढ़ाए जा रहे हैं , वो तो शायद मेरा बेटा न बोलता तो मैं भी ये सोचने पर मजबूर नहीं होती । 

क्यों ये कहना सही लगता है की ‘यार क्या हमेशा लड़कियों की तरह रोता रहता है’ , रोना तो सिर्फ एक प्रक्रिया है जो किसी भी मनुष्य मे स्वाभाविक रूप से हो सकती है भावनाए या आँसू जेन्डर नहीं देखते ।

 बहुत बार माँ से या आसपास के लोगों से  सुनने मिलता है की ‘लकी हो तुम्हारा पति तो तुम्हें periods मे कामों मे मदद करता है’, ‘लकी हो पति खयाल करने वाला मिला है वरना अकेले के दम पर नौकरी मुश्किल है करना औरतों के लिए’,  हाँ लकी तो हैं पर क्या पति भी उतना ही लकी नहीं है ? क्योंकि पत्नी तो रोज ही उसके सारे काम करके देती है । क्या घर के कामों को औरतों ने ही करना ऐसा किसी किताब मे लिखा है?  अगर किसी का पति घर कामों मे अपनी पत्नी की मदद करे तो बड़े गर्व से सबके आगे कहेगा और पूरे खानदान मे उसकी वाहवाही होने लगेगी । पार्टनर समझदार हो तो दोनों ही लकी हैं फिर वाहवाही एक की ही क्यों? घर तो सबका है तो सबकी बराबर जिम्मेदारी हुई न?

खैर मेरा मुद्दा बस इतना है की हमे अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या सोच देनी है। उन्हे ये मत सिखाईए की औरतों को बराबरी का दर्जा देना चाहिए उन्हे ये बताइए की वो बराबर ही हैं , बहन के दोस्त घर आए तो भाई पानी पिला सकता है, अगर घर मे मेहमान है तो बेटा माँ की मदद किचन मे कर सकता है और ये सब करने मे उसकी कोई महानता नहीं है ये नॉर्मल है, सबके समान हक हैं और समान जिम्मेदारियाँ भी । प्रकृति ने जो अंतर आदमी और औरत मे बनाए हैं उन्हे इज्जत देना ही सही संस्कार हैं। 

और हाँ एक महत्वपूर्ण बात हम मुहावरे या पुस्तक की बाते नहीं बदल सकते पर उन्हे पढाने के दौरान ऐसे मुहावरों या ऐसे किसी भी मुद्दे पर अपने बच्चों को सही गलत जरूर समझा सकते हैं जिससे की हमारे देश का भविष्य कही जाने वाली पीढ़ी समानता और आपस मे इज्जत देना सीखे और सही सोच के साथ आगे बढ़े।

                                             -सुचिता????

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