होली है!
वसन्त में ही सुन
फागुन की आहट
क्यारियों में बिछ
जाती है रंगों
की सुंदर चादर
बहुरंग उड़ते गुलाल
पिचकारी की
फुहारों से तर
धूल भरी गलियाँ
बन जाती हैं उपवन
डोलने लगती है देह
सुन, आता दूर से
ढोल, बंसी का स्वर
जाता है मार बाण
प्रेम का वाहक वसंत
मुक्त कंठ से निकले
उल्लासित स्वर
बार -बार कहें
होली है!हो जाता
है मन वृन्दावन
रसिया वृन्दावन का
बड़ा ठग है
खेलो होली कह
वीरों को रंगता
है लहू से
भस्म करने छल
को, प्रवेश करो
अग्नि में
संदेश यह देता
सत्यान्वेषी है
उमंगित प्रकृति लेती
धरा को अँकवार
नवान्न की गंध में
डूब कर बोलती
है वो विभोर-
नृत्य है, उन्मुक्त है
आज सब मित्र हैं
लाल रंग रक्त है
लाल रंग अनुराग है
यही बस होली है!
मुक्त उल्लासित रहो
मदांध मतवाले नहीं
सजग प्रहरी हो
अपने जीवन के
हर क्षण होली है!
वीरों की होली है !
सत्य की होली है!
प्रेम की होली है!
भीग कर हर जन
बोले -होली है!!!!