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बून्द से मोती

ज्यों निकली बून्द बन बादलों की गोद से

थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी,


मैं बचूँगी ! 

या मिलूँगी धूल में,

या पड़ूँगी कमल के पत्तों में ,फूल में????

अनमनी सी अनबुझी मैं

बहती चली 


बहती चली गई मैं ,

उस दुनियादारी की एक हवा में,

पहुँची 

समन्दर  की गहराइयों में,


वहीं सीप का मुँह था खुला  

जा गिरी उसी में  

और 

मोती बनी मैं

भावार्थ ☝️.…..????


{ज्यों निकली बून्द बन बादलों की गोद से

थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी}

(बचपन की अवस्था).......


{मैं बचूँगी ! 

या मिलूँगी धूल में,

या पड़ूँगी कमल के पत्तों में ,फूल में????

अनमनी सी अनबुझी मैं

बहती चली }

(बाल्यावस्था से युवावस्था)


{बहती चली गई मैं ,

उस दुनियादारी की एक हवा में,

पहुँची 

समन्दर  की गहराइयों में,}

(ग्रहथाश्रम)


{वहीं सीप का मुँह था खुला  

जा गिरी उसी में  

और 

मोती बनी मैं}


(हर विपरीत परिस्थिति याने सीपी

और विपरीत परिस्थिति को पार कर खुद को स्ट्रांग बनाना याने मोती बनना)

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