गर्वोन्नत भारत
गर्वोन्नत है भाल देश का
अखिल विश्व में गूंज रहा है
अविरत देखो गान देश का.
हर पल हर क्षण बढता जाता
दुनिया में है नाम देश का.
प्रतिभाएं क्या छुपी रह सकीं बोलो आगे आने मे
एक किरण ही काफी है रे, तम को दूर हटाने में
फिर से उत्तिष्ठत होता है
पुलकित होता प्राण देश का
उत्तर में हिमगिरी सन्नध है, दक्षिण मे सागर विकराल
पूरब पश्चिम में सन्नध हैं फौजी, बन के दुःअरिकाल.
पर खेतों में हर्षित होता
पुलक पुलक किरसाण देश का
ज्ञान और विज्ञान, कलाएं, दिन प्रतिदिन विस्तार पा रही
कल कल करती सरिताएं भी, गर्वित हो कर गान गा रही.
पवन उडाकर ले जाता है
मानों सारा क्लेश देश का.
सुधीर देशपांडे