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मानसिक अवसाद

#मानसिकअवसाद #बाते बढ़ाइए दूरियां नहीं#

अभी कुछ दिन पहले खबर मिली की मेरी पुरानी मेड ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की और वो कोशिश ऐसी वैसी नहीं थी उसने खुद को आग लगा ली । सुनते ही सबसे पहले यही सवाल निकल कर आया की यार आग क्यों लगाई ?कितना दर्द होता है जब जरा सी उंगली जल जाती है ऐसे मे खुद से अपना शरीर आग के हवाले कर देना ! फिर शुरू हुआ मन का मंथन - कितना अजीब है सोचा जाए तो एक व्यक्ति जो खुद को आग लगा रहा है वो कमजोर तो कतई नहीं रहा होगा क्योंकि ये आसान तो नहीं खुद को तकलीफ देना लेकिन अगर खुद की जान की फिक्र नहीं कर रहा तो इतना कमजोर हुआ कैसे ? कैसे ? सवाल बस यही है की कैसे? 

आज हम वर्चुअल लाइफ को रियल लाइफ से जोड़ने में इतने ज्यादा व्यस्त हैं जो दिख रहा है बस उसे ही सच मान भी लेते हैं और ये मान लेते हैं की ये जो दिख रहा है सच मे सामने वाले की ज़िंदगी यही होगी।  लोगों का छोड़िए हमारे अपने भी जो देखते है उसे सच मान लेते हैं और ठीक भी है कहाँ किसी को इतनी फुरसत जो सोचे की सामने वाले का क्या हाल  है , क्योंकि सच ये है की हर इंसान खुद मे इतना उलझा है की सामने वाले से सिर्फ इतना ही जानने की अपेक्षा रखता है की वो पूछे “कैसे हो ?” और सामने वाला कहे  “ सब बढ़िया “ और फिर कान ने जो सुना उसके बाद प्रश्न करने वाला व्यक्ति अपनी बाकी सोचने समझने वाली इंद्रियों पर विराम लगा देता है । हम जानना ही नही चाहते की उसने जो कहा सच था भी या नहीं । खैर फिर सवाल आया - क्या उसने अपने घरवालों से अपनी परेशानी नहीं बांटी होगी ? मजे की बात देखिए उसने आग अपने मायके मे ही जाकर लगाई । किन परिस्थितियों से गुजरी होगी पता नहीं की अपने ही घर मे उसे सुकून नहीं मिला और उसने खुद को खत्म करने का निश्चय कर लिया वो भी दो बेटों की माँ होते हुए।  लोग कहते हैं की माँ अपने बच्चों के लिए सारी दुनिया से लड़ सकती है तो क्या वजह होगी की वो खुद के तनाव से नहीं लड़ पायी ? बाद मे पता चला की वो मानसिक अवसाद मे थी । 

‘मानसिक अवसाद’ जिसे आज के जमाने मे भी एक बीमारी तो माना जाता है लेकिन छूत वाली । ये शब्द इसलिए क्योंकि इस बीमारी को कोई भी सुनना या समझना नहीं चाहता । कितना अच्छा होता उसे परिवार वाले उसे सुनते उसकी परेशानी समझने की कोशिश करते शायद वो बच जाती । सिर्फ वो ही नहीं कोई भी जिसे हम अपना कहते हैं चाहे परिवार का सदस्य हो या दोस्त, क्या कभी हम उसे जानने की,उसे समझने की कोशश भी करते हैं की वो सच मे है कैसा ? एक ज्यादा बोलने वाला मिलनसार व्यक्ति अचानक से खुद को अकेला कर लेता है लोग चार दिन पूछते हैं फिर भूल जाते है लेकिन अगर कोई उससे सच मे जाकर उसकी परेशानी सुने ,समझे तो हो सकता है की उसके चेहरे की रौनक फिर वापस आ जाये और वो फिर खिलखिला दे । मानसिक अवसाद किसी को भी हो सकता है भगवान से हमें मनुष्य बनाया है, हमें सोचने समझने की क्षमता भी दी है वो इसलिए ही है की हम एक दूसरे को समझ सकें, वरना हमारे और जानवरों मे फर्क ही क्या रह जाएगा । परिवार का मतलब यही हुआ न जिस पर व्यक्ति भरोसा कर सके की मुझे कुछ भी हो मेरे अपने संभाल लेंगे । इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए की हम ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार, दोस्तों से बात करे जितना बाते होंगी उतना ही लोगों का एक दूसरे पर भरोसा बढ़ेगा । मानसिक अवसाद सिर्फ बात करके ही कम किया जा सकता है , दूरियाँ बढ़ा कर नहीं ।

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