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ठकुराइन


मोहल्ले में ठकुराइन के नाम से वह मशहूर थी। ठकुराइन नाम उसके रौबदार व्यक्तित्व से पड़ा। हर किसी से वह रौब से बात करती थी। औरों की बात छोड़ो, अपने पति को भी वह कुछ नहीं समझती थी। उसका पति भी उसकी जीहजूरी करता था। ठकुराइन की हाँ में हाँ मिलाता था।

बस एक कमी उसके जीवन में थी। शादी के बीस वर्ष बाद भी कोई बच्चा नहीं था। अब दो जन कितना खर्चा, न के बराबर, लगभग सारी आमदनी बच जाती थी। एक मोटी रकम बैंक में जमा थी। अब चालीस वर्ष की उम्र में ख्याल आया कि कोई तो वारिस होना चाहिए। अब अपना बच्चा नहीं हुआ तो अनाथालय से एक छोटा एक वर्ष के बालक को गोद ले लिया।

सारी खुशियाँ बच्चे पर लुटा दी। बड़े प्यार से बच्चे को पाला। मोहल्ले में उसके बच्चे से किसी बच्चे का झगड़ा हो जाता तब ठकुराइन दूसरे को कच्चा चबा जाती। बच्चे का नाम हैप्पी रख दिया। हैप्पी लाड़ प्यार में बिगड़ने लगा। मोहल्ले के दूसरे बच्चे हैप्पी से दूर ही रहते अब ठकुराइन का क्या पता कि कब लड़ने आ जाए। गलती हैप्पी की और डांट खाए कोई दूसरा।

लाड़ प्यार से लदा हैप्पी का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। हर दूसरे वर्ष स्कूल वाले स्वयं फेल हैप्पी को पास सर्टिफिकेट देकर अपने स्कूल से विदाई करते थे। अब लाखों रुपये किस काम आएंगे। हैप्पी की खुशी में ठकुराइन की खुशी। स्कूल बदल जाता था। अब दसवीं कक्षा तक आते-आते हैप्पी के छः स्कूल बदल गए।

एक दिन हैप्पी के पिता का निधन हो गया और ठकुराइन अकेली रह गई। कुछ दिन के शोक के पश्चात ठकुराइन का बाकी बचा प्यार भी हैप्पी पर न्यौछावर हो गया। हैप्पी की हर बात पूरी होती जिस कारण वह पूरा बिगड़ गया। बाइक पर घूमना, सिनेमा देखना और रुपयों से दोस्तों पर रौब डालना उसकी दिनचर्या थी

बोर्ड की परीक्षा के लिए स्कूल के प्रिंसिपल ने हैप्पी को मना कर दिया कि स्कूल की प्रीबोर्ड परीक्षा में हैप्पी का रिजल्ट एकदम खराब है, स्कूल अपनी प्रतिष्ठा धूमिल नहीं करना चाहता है इसलिए हैप्पी को बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

ठकुराइन ने स्कूल में और स्कूल के बाहर हंगामा कर दिया कि एक विधवा को परेशान किया जा रहा है और मासूम बच्चे को उसके हक से वंचित किया जा रहा है। ठकुराइन के हंगामे से प्रिंसिपल ने भी हार मान ली और हैप्पी को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी। हैप्पी परीक्षा में फेल हो गया और स्कूल से निकाल दिया गया।

आज पहली बार ठकुराइन का रौब कम हुआ और उसकी जुबान पर ताला लग गया जब मोहल्ले वालों ने जमकर मजाक उड़ाया और मुँह पर थू-थू हुई। आज ठकुराइन की बोलती बंद थी और मोहल्ले के हर व्यक्ति के मुख पर मुस्कान थी।

हैप्पी को इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ा कि उसकी माँ की बेइज्जती हो गई या वो दसवीं फेल है। हैप्पी को माँ का बैंक बैलेंस नजर आता था, जब जितने रुपये चाहता था मिल जाता था। सारा दिन बाइक उठा कर एक किस्म की आवारागर्दी ही करता रहता था।

ठकुराइन को अब ठोकर लगी और सोचने लगी कि अब कबतक ऐसे चलेगा। हैप्पी फेल हो गया और सारा दिन आवारागर्दी करता रहता है, कोई काम धंधा भी नहीं है, ऐसे अनाप शनाप खर्चो से तो सारी जमापूंजी समाप्त हो जाएगी। एक दिन जब हैप्पी ने खर्चे के लिए रुपये मांगे तब ठकुराइन ने कह दिया "हैप्पी अब पढ़ना नहीं है तो कुछ काम करो, नहीं तो सारी जमापूंजी समाप्त हो जाएगी।"

"ठीक है दुकान खोल लेते हैं।"

ठकुराइन ने परचून की दुकान खोल ली। हैप्पी दुकान पर बहुत कम बैठता और अधिकतर बाइक उठाकर घूमता रहता। दुकान पर ठकुराइन को ही बैठना पड़ता। अब ठकुराइन सोचने लगी कि काश हैप्पी को सिर पर नहीं चढ़ाया होता लेकिन अब क्या हो सकता है?

एक दिन शाम को ही हैप्पी दुकान से निकल पड़ा। ठकुराइन की तबियत भी ठीक नहीं थी उसने दुकान जल्दी बंद कर दी और घर पहुँच कर उसके होश उड़ गए।

हैप्पी एक लड़की के संग लगभग नग्न अवस्था में रंगरेलियां कर रहा था। अचानक ठकुराइन को देख कर हैप्पी और लड़की दोनों अचम्भित हो गए। ठकुराइन ने माथा पीट लिया कि अभी छोटी उम्र में पढ़ाई छोड़ कर लड़कियों के संग गुलछर्रे उड़ा रहा है। कमाई की कोई फिक्र नहीं है। ठकुराइन ने हैप्पी को आज पहली बार डांटा और एक थप्पड़ भी रसीद कर दिया। थप्पड़ खाते ही वह ठकुराइन से उलझ गया कि उसे मारा क्यों?

"हैप्पी अगर बचपन में दो चार थप्पड़ रसीद किए होते तब तू इतना बिगड़ता नहीं। न काम का, न काज का, ढाई मन अनाज का।"

रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद हैप्पी और अधिक बिगड़ गया। अब तो उस लड़की जिसका नाम शिप्रा था हर रोज घर ले आता और बंद कमरे में रंगरेलियां करते रहते।

एक दिन सुबह-सुबह चार हट्टेकट्टे युवक दनदनाते हुए ठकुराइन के घर में घुसे और हैप्पी को लात घूसों से पीटने लगे। ठकुराइन ने हैप्पी को नहीं पीटने की विनती की लेकिन असफल रही।

ठकुराइन ने घर से बाहर निकल कर पड़ोसियों से मदद मांगी लेकिन कोई पड़ोसी मदद को नहीं आया। ठकुराइन की अकड़ से सभी दुखी रह चुके थे और गुंडे बदमाशों के मुँह कोई नहीं लगना चाहता था। थक कर ठकुराइन घर की चौखट पर बैठ गई।

"बुढ़िया अंदर आ, तेरे से बात करनी है।" मारपीट करने वाले ने आवाज दी।7

ठकुराइन चुपचाप अंदर आई।

"लौंडे की करतूत देखी है?"

ठकुराइन सिर्फ मुँह ताकती रही।

"तेरे लौंडे ने हमारी भोली भाली बहन को बहला फुसला कर गर्भवती कर दिया है। हम इसको छोड़ेंगे नहीं।"

"कोई भोली भाली नहीं है खुद अपनी मर्जी से रंगरेलियां करती थी। मेरे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया।" अब ठकुराइन बोल उठी।

"ओ बेटे तो इसका मतलब है कि बुढ़िया भी इस कांड में सम्मिलित है।" एक मुस्टंडे ने जोर से ठकुराइन के बाल पकड़ कर पेट में लात जमा दी। दर्द से ठकुराइन कराह उठी।

"बुढ़िया उठ, कोई नाटक नहीं चलेगा, कान खोल कर सुन ले, अब तो बिना शादी के बात नहीं बनेगी। हैप्पी और शिप्रा की शादी जितनी जल्दी हो कर दे वरना पुलिस में बलात्कार का केस दर्ज करवा दूँगा।"

मुस्टंडों ने ठकुराइन को दो-चार लात घूंसे और जमा दिए। ठकुराइन की अब बोलती बंद थी। हैप्पी की शादी शिप्रा से हो गई। ठकुराइन हैप्पी और शिप्रा की शादी पर मानसिक रूप से टूट गई। शादी के बाद हैप्पी और शिप्रा अपने में मस्त रहते। ठकुराइन दुकान पर बुझी सी बैठती और एक दिन दुकान पर बैठे-बैठे शरीर त्याग दिया।

ठकुराइन की मृत्यु के पश्चात हैप्पी ने दुकान बेच दी। काम करने की उसकी आदत नहीं थी। रोज खर्च होने हैं, थोड़े दिन बाद घर भी बिक गया। हैप्पी और शिप्रा कहाँ गए? मोहल्ले में किसी को नहीं पता था।

 

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