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वर्षा रानी

....लो आगई वर्षारानी! ग्रीष्म से जुड़ी यादों की पोटली बन्द,खुल गयी दूसरी की गांठें.

गली की खुली नालियों में बहता अबाध जल और उसमें कागज की नाव तैराना.

बालापन में..आंगन परछाए लौह जालमेंझूला डाल कर पेंग बढ़ाना. उसीझूले में कभी छोटा  सा खटोला फंसा कर,हमउम्र बच्चों के साथ चढ कर,हम नाव में जा रहे हैं..ऐसी सुखद अनुभूति की लहरों पर तैरना.

कॉलिज केदिनों में वर्षा मेंभीगना,विविधभारतीपर गूंजते पुरानेफिल्मीं गीत...रिमझिम के तराने ले कर आई बरसात,या..जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात.., सुन कर बेबात खुश होना या उदास होना.

थोड़े साहित्यिक मूड में हुए तो कालीदास का मेघदूत पढ़ना.

और अब गृहस्थी की नौका ठीक ठाक पार लग जाए सो भागवत का  आश्रय लिया....वहां कृष्ण कीपत्नियां कह रही हैं....देखो,देखो तुम्हारा ह्रदय चिन्ता से भर रहा है..तभी बारबार उनकी याद करके हमारी ही भांति आंसू की धारा बहा रहे हो शयाम घन!सचमुच घनशयाम से नाता जोड़ना घर बैठे पीड़ा मोल लेनी है.

लेकिन मित्रवर !यह आनंद हमारेभाग्य में ही है.स्कॉटलैंड प्रवास के दौरान हर मास हर दिन झरते जल ने बोध कराया कि Rain rain go away ....कविता यहां क्यों लिखी गई.हम बेकार अपने नन्हें बच्चों के मुख से यह लाइनें सुन कर खुश होते हैं.

हमारे बच्चों को तो गाना चाहिए....

बरसो राम धड़ाके से

बुढ़िया मरगई फाके से

बरसो छप्पर फाड. कर बरसो

सबका घर धन धान्य से भर दो.

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