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सार्थक दीपावली

रिंकी जन्म से ही अंधी थी। उसके माता पिता दिये बनाकर घर का खर्चा चलाते थे। रिंकी के आपरेशन के लिए उनके पास रूपए नहीं थे। उन्होने सोचा इस बार दिवाली पर ज्यादा से ज्यादा दिये बनाऐंगे व उन्हें बेचकर रूपये जमा कर रिंकी का आपरेशन करवा लेंगे। पर इस बार उनकी बिक्री नहीं हुई। वे उदास बैठै थे तभी उनके पडोसी बाबूजी आए व बोले इस बार अपने मोहल्ले वालो ने बिना पटाखे व मिठाई की ग्रीन दिवाली मनाने का विचार किया है। इससे जो पैसे बचेंगें उससे हम रिंकी के आंखो का आपरेशन कराऐंगे। इस तरह रिंकी के आंखो का आपरेशन कराया गया। दिवाली के दिन रिंकी के आंखो की पट्टी भी खुल गई व उसे सब दिखाई देने लगा। रिंकी व उसके माता पिता के साथ पूरा मोहल्ला खुश था। आज उनका मोहल्ला असली रोशनी से जो जगमगा रहा था।
जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा

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