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लोगों का काम है कहना

हमारे जीवन में कुछ लोग चंद लम्हे हमारे साथ गुजारते हैं पर कई बार ऐसा लगता है कि वह चंद लम्हे, या कहें तो वह लोग कभी जीवन में वापस ही ना आएं। 


कुछ लोग हमें हमारे जीवन के कुछ पन्ने (जो हम पढ़ना ही नहीं चाहते) वह बार-बार खोलने की याद दिलाते हैं । ऐसे लोगों को हम यादचंद कहते हैं, कुछ लोग हमें हमारी मजबूरी देखकर बिना मांगे राय देना शुरू कर देते हैं। कुछ ऐसी बातें जो शायद हम अपने आप को भी कहना ना चाहें ऐसी बातें वह राय के स्वरूप हमें देना शुरू कर देते हैं । ऐसे लोगो को  हम रायचंद कहते हैं। 


आज की मेरी लघु कथा जीवन में मिलने वाले ऐसे ही कुछ रायचंद और यादचंद के बारे में हैं।


इस कथा में एक छोटा सा परिवार है, जिसमें एक पिता है, एक मां है और उन दोनों का एक कालेज जाता इकलौता बच्चा है । 


पिता दिन रात मेहनत कर,  मेहनत पसीने की कमाई से घर और परिवार का गुजारा सही से हो इसके लिए बहुत प्रयास करता है। एक किसान जैसे खेत की सिंचाई में जुड़ कर अनाज उगाता है, ठिक उसी तरह यह पिता भी मेहनत करते रहता हैं। सुबह सवेरे काम पर निकल जाता और देर रात घर आता है। हमेशा प्रयास करता है कि वह इतनी कमाई करें कि घर और परिवार दोनों बड़ी खुशी से रह सके। अपने इकलौते बेटे को बढ़िया शिक्षा दे सके। 


इस परिवार में जो एक मां हैं, जो खुद पढ़ी लिखी होने के बावजूद भी अपने करियर के बारे में ना सोचकर , बेटे की परवरीश सही हो इसमें ध्यान देते रहतीं हैं।  हमेशा पति ने कमाई हुई, पाई पाई बचाकर,  वक्त आने पर (अपनी खुशियों को चूल्हे में ढकेल कर) अपने बेटे एवं परिवार को सवारने में लगी रहतीं है।


अपने माता-पिता को मेहनत करते देख और उनकी पीड़ा समझ बच्चा भी काफी हद तक (कम उम्र में ही) समझदार हो जाता है। दिन रात वह बहुत डटकर पढ़ाई में मेहनत करता है, ताकि वह अच्छे नंबर ला सके और बड़ा हो कर अपने माता-पिता को (बुढ़ापे मे) एक अच्छी जिंदगी दे सके। 


उस बेटे के पिताजी, जब भी उन्हें समय मिलता वह अपने बेटे को समय देने का प्रयास करते। उनका यह मानना था कि जब बेटा बड़ा हो जाएगा और ऊंचाई में उनके कंधे के ऊपर आ जाएगा तो वह उनका दोस्त बन जाएगा । एक कल्पनाओं में देखने मिले ऐसा उनका परिवार था। सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा था, मानो वैसा ही जैसा किसीने जीवन गाथा लिख रखी हों।


पर तकदीर की परिभाषा कुछ और ही थी। दिन रात मेहनत करने के कारण और अपनी सेहत का खासा ख्याल ना रखने के कारण एक दिन उस बच्चे के पिताजी को दिल से जुड़ी बीमारी हो जाती है और वह अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हो जाते हैं। 


डाक्टर बायपास सर्जरी की सलाह देते है और मानो कुछ पल के लिए,  बच्चे की मां की धड़कन जैसे थम सी जाती है। इतना पैसा लायेंगे कहांसे यह सवाल आना शुरू हों जाता हैं।  बच्चे की पढ़ाई का खर्च और  कमाई का जरिया अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा...एक अजीब सी कश्मकश हो जाती हैं उस मां के लिए।  


कुछ दिन अस्पताल में रहकर उसके पिता फिर नौकरी शुरू कर देते हैं, परंतु उनकी स्थिति धीरे-धीरे गंभीर होते जाती है और एक डेढ़ साल के अंतराल बाद उनका उनका देहांत हो जाता है।


ऐसे समय बेटे को अपने पिता का जाना और उस मां के लिए अपने पति का जाना बड़ा दुखदाई और परेशानी वाला हो जाता है । उनके ऊपर मानो परेशानियों का पहाड़ ही टूट पड़ता है।  


बच्चा कॉलेज की पढ़ाई कर रहा होने के कारण आमदनी लाने के लायक नहीं होता और वह मां जो अपने बच्चे के लिए अपने करियर को एक तरफ रखकर उसकी पढ़ाई पर ध्यान देती होती हैं वह भी कुछ कमाने की स्थिति में नहीं होतीनैया अगर गहरे पानी में आएं भंवर में फस जाएं तो जो महसूस होता है शायद वैसा ही कुछ यह परिवार भी महसूस कर रहा था। 


ऐसे मंजर में जब रिश्तेदार भी उस परिवार की मदद करने से थोडा दूर रहते हैं, तब वह मां एक साहसी निर्णय लेकर पूरे परिवार की जिम्मेदारी खुद पर ले लेती और यह लघुकथा उसी वीरांगना की है।


पति के जाने के बाद कई महीनों तक मातमपुरसी के नाम पर कई यादचंद बनकर इस परिवार को मिलने आते थे। मिलने पर हर व्यक्ति उन्हें यहीं जताता था कि हम आपके साथ हैं , आप निश्चिंत रहें आप जब चाहे हमें फोन करिए हम आपकी सेवा में हाजिर हो जाएंगे। 


पर इन आश्वासनोंमे वास्तव कुछ और ही होता। कई लोग उन्हें पति की याद दिलाकर जख्मों को कुरेद ने का भी काम करते। जब वे लोग मिलकर निकल जाते तो वह बच्चा और मां फिर से नम आंखों से एक दूसरे को सम्हालने का प्रयास करते। 


मिलने आने वाले कई लोग उस बेटे को भी सलाह देते की वह आगे पढ़ें, पर कभी कोई यह नहीं कहता कि बेटा अगर आप पढ़ना चाहो तो आपको अर्थ सहायता लगेगी वह हम देंगे, ऐसे खोखले वादे और खोखली सहानुभूति से वह बेटा भी ऊब चुका था


उसे ऐसे लोगो से और उनके जरिए दी गई सहानुभूति से नफरत हो गई थी। कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया की आपके पिताजी नहीं है तो आपको पढ़ाई छोड़ कर नौकरी शुरू करनी चाहिए, आप अपने पिता की जगह पर ही कंपनी में काम कर सकते हो। पर कभी किसी ने यह नहीं सोचा कि उस बच्चे को क्या लगता होगा जब वह पढ़ना चाहते हुए भी लोग उसे ना पढ़ने की सलाह दे।


बेटे की मां का हाल भी कुछ अलग नहीं था, पति गुजर जाने के बाद कैसे मानसिक स्थिति में है वह औरत जिंदगी गुजार रही थी इसका अनुमान लगाना बड़ा मुश्किल था। त्योहारों पर, जन्मदिन पर यह मां बेटा जैसे मुरझाए हुए फूलों जैसे नजर आते।  कुछ लोगों ने उस मां की इस मानसिकता का भी कई बार गलत इस्तेमाल करना चाहा। 


कई बार (बिना वजह) उसे सहानुभूति दिखाकर यह जताने की कोशिश की, कि वह बड़े उनके काम आ सकते हैं । पर वह वीरांगना अपने इरादों पर अटल थी,  शायद यही कारण था कि कोई व्यक्ति उनसे दुर्व्यवहार नहीं कर पाया। थोड़े से आमदनी वाली एक प्राइवेट नौकरी कर इन मां बेटों ने गुजार बसर शुरू किया। धीरे धीरे नौकरी और पढ़ाई करते करते बेटा भी कमाने लगा। जो त्योहार पहले बेजान लगते थे उनमें जान आने लगी और फिर भंवर में फसी नैया अपना किनारा करीब आता देखने लगी।


धीरे धीरे हालत सुधरे। बेटा बड़ा हुआ, खूब पढ़ाई कर एक अच्छी कंपनी में बड़े ओहदे पर काम करने लगा। अपनी मां को हर खुशी देने लगा और कुछ साल बाद अपने पारिवारिक जीवन में भी सफल हुआ।


कहानी के अंत मे, मैं यह कहना चाहूंगा के जीवन में ऐसे यादचंद और रायचंद से दूर ही रहना चाहिए। कुछ लोग सृष्टि में आते ही इस लिए हैं की उनके बरताव के कारण अच्छे लोगो पर और भगवान पर सबका विश्वास बना रहे। 


मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं के वह मुझे कभी इन यादचंद और रायचंद के श्रेणी में ना रखें। और हो सकें तब तक मैं हमेशा किसको भी मदद कर सकूं।


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