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अपनो के लिये

अपनो के लिए
नैना हमेशा मुस्कुराती रहती थी। ज्यादा उम्र नहीं थी उसकी पर कुछ घरो में झाडू पोछे का काम करती थी। एक दिन उसकी मालकिन ने पूछा कि इन पैसो का क्या करती हो तो बोली अपनी मां को दे ेदेती हूं और कुछ पैसे छुपा कर रख लेती हूं। अपने लिए ना - मालकिन बोली। नैना भेालेपन से बोली- नहीं मेरे भाई की स्कूल की फीस के लिए। मालकिन बोली तुम्हारा मन नहीं होता स्कूल जाने का। तो उस पर वह बोली तब मेरे भाई को काम करना पडेगा न और वो तो अभी छोटा है ना। मैं काम पर जाती हूं तभी तो वह स्कूल जा पाता है। मालकिन एक बहन का भाई के प्रति निस्वार्थ प्रेम देख सोच रही थी सच है अपनो के लिए जीना ही असली जीना है।
जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा

 

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