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इश्क़ परिंदा

इश्क परिंदा खुले आसमां उड़ने को तैयार था
इस ज़माने की हकीकत से वो कितना अनजान था,

जाल बिछाए राह तकते शातिरो से उलझ गया
इश्क परिंदा पर कटा कर बेबस सा बस रह गया।

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