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किरदार

ट्रेन अपने निश्चित समय शाम के 6बजकर 20 मिनट पर प्रयागराज के लिये रेंगने लगी,फिर धीरे-धीरे स्पीड पकड़ने लगी, माईंड के किसी कोने में सोचने का वायरस अपना रंग दिखाने लगा।आज तक जब भी सफर किया पत्नि अक्सर साथ होती थी,लेकिन दो वर्ष पहले पत्नि साथ छोड़ कर क्या गई जैसे जिंदगी ही वीरान हो गई।जब शादी हुई थी करीब 40साल पहले,तब शायद मै उस नारी से शादी नहीं करना चाहता था लेकिन धीरे-धीरे एक-दूसरे के साथ रहने की आदत हो गई और फिर प्यार।अब अहसास होने लगा कि बिना पत्नी के सब कुछ सूना सूना हो गया।अब याद आ गया कि जब लडका पैदा हुआ पत्नी अन्दर कमरे में डॉक्टर के सामने दर्द से कराह रही थी और मै हॉस्पीटल की गैलरी में बैचेनी के साथ साथ।फिर हम दोनो ने लडके के पालन पोषण में हमने वो सब किया,जो सब माँ बाप करते हैं।ठीक ही तो कहा था एक दिन बहु ने--आपने कोई अलग काम नहीं किया,सभी माँ बाप करते हैं---। लडके को कर्ज लेकर विदेश भेजा पढाई करने के लिए,फिर वहीँ सेटल हो गया।हम दोनो यह सोच कर खुश,चलो हमारी जिम्मेदारी पूरी हो गई।क्या चाहिये हमें।शहर में एक मकान वो भी पत्नी के नाम।पत्नीं ने एक दिन कहा कि "न जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए,मै आपके नाम मकान की वसीयत किये देती हूँ "तब मैने भी कह दिया था।-यह मकान है तो लडके का ही--अब तुम मेरे नाम करोगी मै फिर लडके के नाम करूँगा तुम ऐसा करो लडके के नाम ही कर दो--।यह बात एक दिन मैने फोन पर लडके को भी बता दी।एक दिन लडका आया और हम दोनो को अपने साथ विदेश ले गया।पत्नी और मैं पहली बार हवाईजहाज में बैठकर विदेश गए,पत्नी के चेहरे की खुशी देखने लायक थी,मै भी पत्नी को खुश देखकर खुश हो गया,लेकिन यह खुशी दो दिन में ही काफुर हो गई जब बराबर वाले कमरे में बहु कह रही थी कि ( यहाँ कैसे उठा लाये मम्मी पापा को यहाँ पहले से ही मकान छोटा है और उस पर ये दोनों--देखो ऐसे नहीं चलेगा,इस घर में या तो ये रहेंगे या फिर मै--"।यह सब सुनकर पत्नी की आंखों में आँसू आ गए।मैंने समझाया--दिल छोटा मत करो शारदा,मै कल ही टिकट कराता हूँ--।अगले दिन इंडिया का टिकट करा कर मैने लडके से कहा "बेटे हम कल इंडिया वापस जा रहे हैं--।एक बार के लिए लडके ने कहा-"क्या बात है पापा अभी तो आप और रह लेते--।मैने सच्चाई न बता कर कहा-"बेटे कुछ काम है अभी जाने दो।फिर आ जायेंगे--। वक्त अपनी चाल से चलता गया।एक दिन जब पत्नी अन्तिम सांसें गिन रही थी।मैने लडके को फोन किया।--बेटे अपनी माँ के अन्तिम दर्शन कर ले आकर--"। बेटे जो कहा सुनकर मैं अवाक रह गया।--क्या पापा आप भी--सारा मूड आफ़ कर दिया,मै एक मीटिंग में हूँ फिर बात करता हूँ--"। मै इन्तजार करता रहा लेकिन बेटे का फ़ोन नहीं आया।पत्नी मुझे अकेला छोड़कर चली गई।अब दो साल बाद करीब दस दिन पहले बेटे का फोन आया।-"पापा कहाँ हो--"।मेने कहा--'बेटे मै हरिद्धार में हूँ-" जब घर आया तो एक अजनबी ने गेट खोला।मेरे पूछने पर उसने बताया कि "यह मकान अभी एक सप्ताह पहले एक करोड रुपये में खरीदा है "।मैने अपना शेष समय प्रयागराज में बिताने की सोची। सोचते सोचते अचानक आंखों के सामने अन्धेरा सा छा गया। जब होश आया तब अपने आप को एक हॉस्पीटल में देख कर हैरान और परेशान हो गया।--'मै कहाँ हूँ--"। पास खड़ी नर्स ने बताया-आप कानपुर हॉस्पीटल में हैं--"।यह सुनते ही मुझे याद आ गया कि शायद इसी हॉस्पिटल में मैने अपनी एक किडनी बेची थी जब लडके को विदेश मेडिकल की पढाई के लिए भेजा था।मैने नर्स से पुछा-'सिस्टर इस हॉस्पीटल में एक डॉक्टर नारंग हुआ करते थे।यह सुनते ही नर्स ने गौर करके मेरी और देखा--'आप कैसे जानते हैं उनको--'।मैने वैसे ही पूछ लिया,--'क्या बात है--"। नर्स ने बताया कि डॉक्टर नारंग इसी हॉस्पिटल के इंचार्ज है-'।कुछ सोचते हुवे मैने कहा-'मै उनसे मिलना चाहता हूँ-'। -' अभी--'। कहकर नर्स ने किसी को फोन किया । दस मिनट बाद ही डॉक्टर नारंग ने रूम में प्रवेश किया।--'हाँ क्या बात है-'। डॉक्टर साहब मै आपसे मिलना चाहता हूँ इसलिये मैने आपको---'। आधे अधूरे शब्दों में मैने कहा।-हाँ कहो क्या बात है --'। -' डॉक्टर साहब शायद आपको याद होगा कि आपके इसी हॉस्पिटल में मैने अपनी एक किडनी बेची थी--'। यह सुनते ही डॉक्टर ने ध्यान से मेरी ओर देखा-' अरे हाँ याद आया कि आप यहाँ अपनी किडनी बेचने के लिए आये थे लेकिन इस हॉस्पिटल की मालिक डॉक्टर रेखा श्रीवास्तव ने हमे कहा था इस आदमी को केवल बेहोश करके किडनी निकालने का नाटक करना और जितने रुपये इसे चाहिए दे देना--'।रेखा श्रीवास्तव का नाम सुनते ही मुझे याद आ गया कि जिस लड्की से मै कभी शादी करना चाहता था उसका नाम भी रेखा था।मैने पूछा अब डॉक्टर रेखा श्रीवास्तव जी कहाँ है मै उनसे मिलना चाहता हूँ।"-' चलिये--'। मै अपने आपको संभालते हुए धीरे-धीरे डॉक्टर नारंग के साथ साथ चलने लगा,एक लंबी गैलरी पार करते हुए एक बडे और सुसज्जित ऑफिस में पर्वेश करते ही एक बडी सी चेयर पर एक लगभग पचास वर्षीय लेडी जिसके चेहरे पर अमीरी की चमक। उसने मेरी ओर देखा,मैने उसकी ओर।-' रेखा जी आप "। -' लेकिनज आप यहाँ-'। -' मै कुछ नहीं कह सका -'।और मै तेजी से बाहर की ओर चल पड़ा।बाहर सडक पर आकर एक आटो रिक्शा में बेठ कर रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा। रेलवे स्टेशन के बाहर ही डॉक्टर रेखा श्रीवास्तव अपनी गाडी के साथ खडी है,रेखा को देख मै थोडा हिचकिचा गया,आटो रिक्शा से उतरते ही रेखा मेरे पास आ गई।--रमन मै जानती हूँ कि आज तुम अकेले हो गये हो लेकिन मै शुरु से ही अकेली हूँ क्या जिंदगी के बाकी सफर में मै तुम्हारे साथ चल सकती हूँ '। शायद मुझे भी किसी के साथ की जरुरत है ,मैने भी अपनी बाहें फैला दी,रेखा कटे पेड की तरह मेरी बाहों में समा गई। तभी मौबाइल की घंटी बजी,मैने मौबाइल आन किया,दूसरी ओर से आवाज आई--' आप रमन रघुवंशी बोल रहे हैं '।-- जी बोल रहा हूँ --'। --' आप ने एक कहानी भेजी थी राज्य साहित्य मंच पर---आपकी इस कहानी को पाँच लाख रुपये का पुरस्कार मिला है वैसे तो यह खुश् खबरी आपको टी वी के द्वारा मिल ही गई होगी,और अब हम भी आपको ओथेंटीक खबर दे रहे हैं--'। यह सुनकर मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ,फिर भी मै रेखा की तरफ देख कर धीरे से मुस्करा दिया।पाँच मिनट बाद ही मौबाइल की रिंग दोबारा बजने लगी।--हेलो कौन '।--पापा मै आपका बेटा,अभी अभी टी वी पर आपको पुरस्कार मिलने की घोषणा सुनी सच पापा बहुत बहुत खुशी हुई--'। -- राँग नम्बर--'। कहते हुए रमन ने कॉल कट करते हुए मौबाइल जेब में रख लिया।--------समाप्त

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