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मेरा सफर

आज से ठीक एक साल पहले मैंने एक नयी दुनिया में कदम रखा था...
करियर की बात की जाए तो इससे पहले भी काफी कुछ ट्राय कर चुकी थी। पर मन कहीं न कहीं अशांत था। ऐसा लगता था जीवन में वो स्थिरता वो ठहराव नहीं है जो मै पाना चाहती थी। बचपन से ही मैंने कामकाजी महिलाओं को देखा था पर मुझे ये हमेशा लगता था की मै एक ऐसे मुकाम को हासिल करूँ जहां सिर्फ पैसा ना हो बल्कि मेरी एक अलग पहचान भी बने। ऐसा नहीं है की मुझे कोई जानता नहीं था पर मेरा काम ही मेरी पहचान बने यही इच्छा थी ,और शायद इसी कारण मै तलाश में थी उस जगह की जहां पैसा और नाम तो हो पर सबसे बड़ी बात इज्ज़त हो।
थोड़ी अजीब बात है न 30-32 की उम्र के बाद मुझे ऐसे विचार आ रहे थे...वरना आजकल तो 23-24 की उम्र में ही किसी बड़ी कंपनी में लाखों के पैकेज वाला जॉब मिल जाता है और 30 पार होते तक तो खुद का घर, गाड़ी सब कुछ हो जाता है। बाहर की दुनिया देखकर लगता था की मैं बहुत पीछे छूट गयी हूँ और अब मेरे पास जो है उसी में मुझे संतुष्ट रहना चाहिए, पर पता नहीं क्यूँ दिल में कहीं कोई उम्मीद थी की मुझे कुछ बेहतर मिल सकता है। ऐसी ही ज़िंदगी बीत रही थी।
बचपन से ही मुझे हिन्दी और मराठी साहित्य पढ़ने का बहुत शौक था, कॉलेज आते-आते मैंने अनेक पुस्तकों का वाचन किया था, और वहीं से मुझे लिखने की प्रेरणा मिली। डायरी लिखने की तो आदत थी ही, पर कभी कोई लेख या कहानी लिखने की कोशिश नहीं की थी। कम शब्दों में बताने जाऊँ तो मेरा चैप्टर क्लोज़ होने की कगार पर था। क्यूंकि जो था उसमे संतुष्टि नहीं थी और क्या चाहिए है वो पता ही नहीं था।
मै अपनी डायरी का कुछ हिस्सा कभी कभी अपने दोस्तों के साथ साझा किया करती थी और वो पढ़कर सभी को बहुत पसंद आता था और मुझसे यही कहा जाता कि तुम अच्छा लिखती हो। जीवन में जो चल रहा था उसमे साहित्य एक महत्वपूर्ण भाग था और इसलिए मेरा दिल कहता था कि मुझे इस क्षेत्र में ही कुछ करना है ।
ऐसे में मेरी बड़ी प्यारी दोस्त निहारिका पोल सर्वटे ने मुझे एक वेबसाइट पर लिखने का मार्ग सुझाया और मेरी काफी मदत भी की, तकनीकी ज्ञान इतना अधिक नहीं था पर प्रयत्न किए और फिर मेरी गाड़ी भी चल पड़ी। कुछ ही समय में मैंने 7 से अधिक वेबसाइटस पर लिखना शुरू कर दिया और मेरे इस सफर में निहारिका ने मेरा साथ दिया और हौसला बढ़ाया, हालांकि हम दोनों की उम्र में काफी बड़ा अंतर है, फिर भी हम दोनों में काफी गहरा रिश्ता है।
लेखन के इस छोटे से सफर में मेरा परिचय एक और हस्ती से हुआ, उसे हस्ती कहना इसलिए जरूरी है क्यूकी वो सबसे अलग और सबसे प्यारी है और आज मै जिस मुकाम पर हूँ वो उसके साथ के बिना संभव नहीं था।
वो थी पहली ही मुलाक़ात में मेरी जिगरी बन चुकी ऋचा कर्पे...
उसे जब पहली बार मिली तभी से वो और मैं बड़े अच्छे दोस्त बन गए। धीरे-धीरे ऋचा और मेरी दोस्ती पक्की होती गयी और उसी ने मुझे अपनी कंपनी शॉपीज़न के बारे में बताया, उसने मुझे शॉपीज़न पर एक लेखिका के तौर पर आमंत्रित किया और इस तरह से मै शॉपीज़न से जुड़ गयी।
करीब एक साल बाद ऋचा ने ही मुझे शॉपिजन पर हिन्दी विभाग के लिए इंटरव्यू देने कहा और यह विश्वास जताया की यदि में इस इंटरव्यू में सिलैक्ट होती हूँ तो विभाग प्रमुख के रूप में काम कर पाऊँगी। जाने क्यूँ उसे ऐसा लगता था की मेरा अनुभव और लोगों से जुडने का स्वभाव इस पद के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
ये दूसरी बार था जब मेरी किसी दोस्त ने मुझे हौसला दिया और मुझे प्रोत्साहित किया। बस...फिर क्या था एक बार फिर मेरी गाड़ी चल पड़ी।
काम कठिन था क्यूंकी इस भागदौड़ और आपाधापी के युग में मेरे जैसी बिना तकनीकी ज्ञान वाली को जॉब मिलना वो भी ऐसी जगह जहां मुझे साहित्य और तकनीक का तालमेल बिठाना था...आसान नहीं था। पर ईश्वर के आशीर्वाद से और आप जैसे मेरे सभी स्नेहीजनों के प्रेम के कारण मै इस कठिन कार्य को उचित रीति से कर पायी और आगे भी करते रहने का प्रयत्न करूंगी। आज एक साल बाद मै खुद को जहां पाती हूँ शायद यही वो मुकाम था जिसे पाने के लिए मै बैचेन रहा करती थी।
शॉपिजन एक साहित्यिक वेबसाइट है जो मूलत: सफारी इंफोसॉफ्ट नामक आई टी कंपनी का भाग है, शॉपीज़न पर हम पाँच भाषाओं में काम करते हैं जिसमे ऑनलाइन और प्रिंटेड पुस्तकों का प्रकाशन किया जाता है। जिसमे से हिन्दी विभाग प्रमुख के रूप में आज से एक साल पहले मुझे नियुक्त किया गया। शॉपिजन पर ना केवल मुझे नाम और पहचान मिली बल्कि वो इज़्ज़त वो सम्मान मिला जो मै हमेशा से चाहती थी। इस एक साल में जितना प्रेम मुझे मेरे लेखकों और रचनाकरों से मिला उतना ही प्रेम और सम्मान मेरी पूरी टीम से भी मिला, इस अपनेपन के लिए मै उमंग सर और सभी सदस्यों की दिल से आभारी हूँ। अनेक अनुभव हैं जो मै आप सबके साथ बाटना चाहती हूँ, पर आज के लिए इतना ही....

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