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सत्य

सत्य का मार्ग, 

सत्य पर चलना कठोर राह पर चलने के बराबर होता । अक्सर सत्य के साथ कोई नही अकेले ही चलना पड़ता। सत्य को चारो और से असत्य घेर कर वार करता। पर सत्य  कहा आज तक हारा , कुछ देर के लिए तो असत्य बहुत उछलता मानों हरा बैठा हो सत्य को। 

सत्य के साथ अकेले और धेर्य के साथ ज्ञान प्राप्त करते हुए आगे बड़ना चाहिए। शालीनता का गहना पहनकर सत्य को सवारा जाता। 

सत्य की राह पर कभी कभी सब कुछ के खोना पड़ता है रिश्ते, नाते, दोस्त, भाई, बहन यहाँ तक की कभी कभी माँ बाप भी अपने विरोध मे खड़े मिलते । 

गीता के अध्याय दो में अर्जुन ने प्रश्न रखा, 'गोविंद! कुलधर्म सनातन है, कुलधर्म शाश्वत है। जाति धर्म ही सत्य है। ऐसे नरसंहार के पश्चात संसार का विनाश हो जाएगा।' अर्जुन सामाजिक जीवन, खान-पान, रहन-सहन, कुल, जाति, वर्ण को सनातन मानकर युद्ध से विरत होना चाहते थे। भगवान ने हंसते हुए कहा, 'अर्जुन! इस विषम स्थल में यह अज्ञान तुझे कहां से उत्पन्न हो गया। यह न कीर्ति बढ़ानेवाला है और न ही कल्याण करने वाला है। न ही पूर्व के वरिष्ठ महापुरुषों ने भूलकर भी इसका आचरण किया और न प्रत्यक्षदर्शी महापुरुषों ने ही ऐसा आदेश दिया।' अर्जुन धर्म की रक्षा के लिए प्राण देने को तैयार हैं। वह कुलधर्म, जातिधर्म को शाश्वत सनातन धर्म मानते थे, पर भगवान ने सामाजिक व्यवस्थाओं को अज्ञान कहकर संबोधित किया। आज की प्रचलित स्मृतियों में भी इतना ही कुछ लिखा है-जीने-खाने की पद्धतियां, नश्वर शरीर और उसके जीवनयापन की व्यवस्थाएं। तब अर्जुन ने पूछा, 'भगवन, आप ही बताएं कि सत्य क्या है?'

भगवान बोले, 'सत्य वस्तु का तीनों कालों में अभाव नहीं है, उसे मिटाया नहीं जा सकता है। असत् का अस्तित्व नहीं है, उसे रोका नहीं जा सकता है। वह है ही नहीं। आत्मा ही सत्य है और भूतादिकों के शरीर नाशवान हैं। प्राणीमात्र के शरीर नाशवान हैं।'


अपने आस पास सत्य को खोजो, सत्य के साथ डटकर खड़े रहो फिर चाहे कोई भी क्यों ना सामने हो। 

सत्य जब अपना न्याय सुनता है तक असत् कहीं दूर एक कोने मे खड़ा नज़र आता है और सत्य सूर्य बनकर सारी दुनिया को रोशन करता। 


सत्य पर चलने वाला इंशान तप कर सोना बन जाता है 


सुन्देशाभरत  (राज) 


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