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अमरनाथ महादेव

      ज म्मु कश्मीर के श्री नगर से १३५ कि मी से दूर और समुद्र  सतह से १३६०० फिट उची  पहाड की गुफाओ में अमरनाथ महादेव की गुफा आई हुई है।   गुफा की लंबाई १९ मिटर और चौड़ाई ११ मिटर है।  कुल मिलाकर देढसो मिटर मे गुफा बनी हुई है।  ईस गुफा में   अषाढ माह की पूर्णिमा  से  श्रावण माह ( राखी तौहार) तक  १० मिटर उंची बर्फ की शिवलिंग अपने आप बन जाती है । चंद्रमा की कला के साथ उस में कम ज्यादा होता है।  श्रावण की अमावस्या से धीरे  धीरे  छोटा बनकर पूर्ण पिघल जाता है।   देखने वाली बात यह है कि ईस के आसपास जो बर्फ होती है,  वह कच्ची होती है । पर अपने आप बनने वाला यह शिवलिंग का बर्फ ठोस होता है।  अमरनाथ शिवलिंग से थोडी दूरी पर गणेशजी,  भैरवजी,  माता पार्वती की भी अलग अलग हीमशिला बनती है।
           पुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने पति शिव से एक प्रश्न किया। मुझे ही क्युं हरबार मरकर जन्म लेना पडता है ?  फिर कठिन तपस्या के बाद आप पति के रूप में मिलते है ! आपको मृत्यु या जन्म लेना नही पडता !  आप अजर अमर है।  इस बात का रहस्य मुझे बताओ।  शिवजी ईस गुढ रहस्य को बताना नही चाहते  थे  ।  पर सती की अटलता के पास कुछ नही चला।  इसलिए इस  बात को बताने के लिए तैयार हो गये।  पर यह अमरता की बात दुसरा कोई जान ले तो वह भी अमरता को प्राप्त कर ले।  इसलिए पार्वतीजी को लेकर कोई अनजान जगह पर जाने के लिए निकले।  जिससे कोई मानव,  पशु, जानवर, इसे सुन न ले और पार्वतीजी ठीक से अमरता की कहानी सुन सके।  शिवजी ने अपने सवार नंदी को पहलगांव छोड दिया।  इसलिए अमरनाथ की यात्रा पहलगांव से शुरू होती है।  फिर जटा के चंद्र को चंदनखेत, गले का शृगार नाग को शेषनाग नामक स्थल,  गंगाजी को पंचत्रणी पर छोड दिया।  पिस्सू नाम का जंतु था उसे पिस्सु जगह पर रखा  । जीवनदायी जो पंचतत्व थे उसे भी अपने से अलग किया।  फिर एक गुफा में आ गये।  गुफा मे कोई भी आ न सके इसलिए गुफा के आसपास आग का पहेरा लगा दिया।  फिर शिवजी ने माता पार्वती  को अमरता की कथा सुनाना शुरु किया।  पर कथा सुनते सुनते माता पार्वती को निंद आ गई।   गुफा में सध्योजात शुक का बच्चा पहले से ही था।  वो भी कथा सुनता था।   कथा छुट न जाये इसलिए वह  हाजी हा कर रहा था।  कथा पूर्ण होने पर शिवजी ने देखा तो पार्वतीजी सो रहे थे।  आसपास देखा तो शुक का बच्चा वहां पर हाजिर देखा।  शिवजी उसको मृत्युदंड देने के लिए दौड़ ।  पर कथा सुनकर  वह अमर हो चुका था।   फिर यह बच्चा ऋषि शुकदेवजी  के नाम से अमर हो गये।  कहां जाता है कि,  गुफा मे एक कबूतर का जोडा भी मोजुद था।  कथा सुनकर वह भी अमर हो गये । भगवान शिवजी और माता पार्वती  कभी कभी कबूतर के रुप में भी भक्तो को दर्शन देते है  ।  अमरता की यह कथा गुफा में सुनाई थी,  इसीलिए शिवजी यहाँ  बर्फ के रुप में "अमरनाथ " के नाम से जाने गये।  यहां शिवजी " बर्फानी बाबा " के नाम से भी जाने जाते है। 
  ऐसा कहा जाता है कि १६०० वीं सदी में  अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम गोवाल ने की थी। इसलिए अभी भी अमरनाथ का जो चढावा आता है,  इसमे से चौथा भाग मुस्लिम गोवाल को दिया जाता है। अमरनाथ जाने के लिए दो रास्ते है ।  एक पहलगांव और दुसरा सोनमर्ग बालताल।  यहां तक यातायात मिल जाते है।  फिर इधर से १४ किमी की दूरी पार करके अमरनाथ पहुंच शकते है। 
जय हो बर्फानी बाबा की,  हर हर महादेव। 






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