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चोगे वाला भूत और घुंघरू वाली भूतनी


          चोगे वाला भूत और घुंघरू वाली भूतनी


आज से करीब पचास साल पहले की बात है। जून महीने की भरी गर्मी के दिन थे। राजस्थान  के अजमेर शहर की बात है। दिन भर भीषण गर्मी से पूरा अजमेर शहर तपता था मगर अजमेर की आबोहवा इतनी अच्छी होती थी कि कितनी भी भीषण गर्मी पड़ जाए मगर शाम को बहुत अच्छी हवा चलती थी जिससे गर्मियों की शाम बहुत बहुत सुहानी हो जाती थी। दिन भर की भीषण गर्मी के बाद रात में ठंडी हवाएं चलने लग जाती थी जिससे रात में ओढ़ने के लिए चादर बहुत जरुरी हो जाती थी और रात को तेज हवाएं चलने से चादर उड़ने का ड़र भी  रहता था। रात में पीने का पानी भी बिलकुल ठंडा हो जाता था। अजमेर की स्वच्छ आबोहवा होने और गर्मी में यहां की शामें और रातें सुहानी होने के कारण अंग्रेजों ने भी अपने शासन में अजमेर को महत्वपूर्ण स्थान दिया। 


आज भी अजमेर की आबोहवा बहुत अच्छी है। दिन भर प्रचंड गर्मी के बाद रोज शाम को ठंडी हवा चलती है जिससे गर्मी से राहत मिल जाती है। आज से करीब पचास साल पहले की बात है। गर्मी के दिनों में मौहल्ले के अधिकांश लोग छतों पर ही सोते थे। वे रोज शाम को छत पर पानी का छिड़काव करके गर्मी की दिन भर की तपन को कम करते थे।


अजमेर शहर के कायस्थ मौहल्ले के बीच में प्रसिद्ध बीजासन माता का मंदिर है जहां लाला मिट्ठनलाल जी की बहुत बड़ी तीन चौक की एक हवेली है जहां वे अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहते थे। लाला मिट्ठनलाल जी के दो पुत्र थे। बड़े पुत्र मदनगोपाल रेलवे में टिकट प्रिंटिंग प्रेस में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत थे। दुर्भाग्यवश उनका पेट दर्द के कारण असामयिक निधन हो गया था। उनके तीन पुत्र और चार बेटियां थी और दूसरे लड़के का नाम बसंतीलाल था जो डॉक्टर थे तथा उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थी। 

 

 

हवेली के एक छोर पर बड़ का घना पेड़ था तथा दूसरे छोर पर नीम और पीपल का पेड़ था। घर के दोनों तरफ बड़े और घने पेड़ होने से और रोज शाम को हवा चलने से रात में हवा और वातावरण में ठंड़क हो जाती थी। भरी गर्मी में भी छत पर सोने के लिए चादर ओढ़ना जरूरी हो जाता था। रात में बहुत मीठी मीठी नींद आती थी।


छत पर रोज शाम को मिट्ठनलाल जी की सबसे बड़ी पोती निर्मला अपनी छोटी बहनों बेबी, मंजू, बीना और छोटे भाई रमेश, गोपाल और राजा के साथ मिलकर छत पर पानी का छिड़काव करते थे। खाना खाकर सब छत पर रात को देर तक गप्पे मारते और बाद में थक हार कर सो जाते थे।


पूरे मौहल्ले भर में गर्मी में शाम को छतों पर रौनक रहती थी। शाम को मौहल्ले के सभी लोग छतों से पतंग उड़ाते थे। सब बच्चे शाम का आनंद लेते थे। पडौस में ही भगवान जी कम्पाउंडर कबूतर वाले रहते थे। वे खुद और उनका लड़का गोपाल रोज सुबह शाम कबूतर उड़ाते थे और दूर दूर तक अपनी कबूतर की टोली को भेजकर दूसरे कबूतरों की टोलियों से भिड़ंत कराते थे जिसे देखने के लिए शाम को मौहल्ले की छतों पर रौनक रहती थी। उनका नाम अजमेर के प्रसिद्ध कबूतरबाजों में था।


गर्मी के दिन थे सभी स्कूलों में छुट्टियां थी तथा मौहल्ले के कई लोगों के बाहर से रिश्तेदार भी छुट्टियां मनाने आये हुए थे। कुल मिलाकर उन दिनों खूब मौज मस्ती और रौनक रहा करती थी। मौहल्ले के लोग छत पर रात में खाना खाने के बाद दरियां और सुराही में पानी भरकर सोने जाते थे। शाम होते ही सभी घरों की छतों पर पानी का छिड़काव होता था और सभी छतों पर दरियां बिछ जाती थी। सब मौज मस्ती करते हुए सो जाते थे।


एक दिन की बात है रात के करीब दो बजे थे। बच्चे छत पर सो रहे थे। रात में मंजू को पानी की प्यास लगी। वो नींद से उठी और सुराही से पानी पीने लगी। तभी उसे दूर कहीं से घुँघरू बजने की आवाज आयी। उसने सोचा किसी के यहां शादी हो रही होगी इसलिए नाच गाने का फंक्शन देर रात तक चल रहा होगा इसीलिए वहीं से आवाजें आ रही होगी और वो निश्चिंत होकर सो गयी। 


दूसरे दिन सुबह मंजू ने सबको बताया की आधी रात को रात में पास में कहीं शादी वालों के घर से घुंघरू पहनकर किसी के नाचने की आवाज आ रही थी। किसी ने भी उसकी बात पर ज्यादा गौर नहीं किया क्योंकि शादी ब्याह वालों के घरों में कई दिनों पहले से ही शादी के गीत और नाच गाने शुरू हो जाते हैं।


दूसरे दिन रात में रोज की तरह बच्चों ने शाम को छत पर पानी का छिड़काव किया और खाना खाकर सब बच्चे गप्पे मारकर सो गए। रात के करीब एक बजे थे। बीना को पानी की प्यास लगी उसने उठकर पानी पिया। पानी पीते ही उसे घुंघरू बजने की आवाज सुनायी दी। उसने सोचा ये आवाज इतनी रात में कहां से आ रही है? उसने सोचा आस पास कहीं शादी हो रही होगी इसलिए वहां नाच गाने चल रहे होंगे और वो वापिस सो गयी।


सुबह उठकर बीना ने रात में घुँघरू बजने वाली बात सबको बतायी। मंजू ने बताया की उसने भी कल रात को घुंघरू बजने की आवाज सुनी थी। सबने यही कहा शायद आसपास शादी हो रही होगी इसलिए वहां नाच गाने चल रहे होंगे। राजा ने बताया की पास ही के मौहल्ले में उसके दोस्त की बहन की अगले हफ्ते शादी है उनके बहुत से मेहमान आ भी गए हैं इसलिए  हो सकता है उनके यहां रात भर डांस गाने का प्रोग्राम चल रहा होगा और वहीं से ही आवाज आ रही होगी।


दिन में सिविल लाइंस से बच्चों की बड़ी बुआ शकुंतला बुआ के बच्चे कमलेश, मंजू, राकेश, रजनी और मुकेश आये थे। वे भी सब बच्चों के साथ शाम को छत पर पानी का छिड़काव करने चले गये। रोज की तरह पानी का छिड़काव करके और खाना खाकर सब बच्चे छत पर चले गए।


रात में सब बच्चे मिलकर मजे से अंतराक्षरी खेल रहे थे। अंतराक्षरी खेलकर सब सो गये मगर बेबी को रात में नींद नहीं आ रही थी। अचानक देर रात में करीब तीन बजे की बात है बेबी को अचानक कुछ ही दूरी से घुँघरू बजने की आवाज आयी। उसे मंजू और बीना की बात याद आ गयी। बीती रातों में उन्हें भी ऐसे ही घुँघरू बजने की आवाज आयी थी। घुँघरू की आवाज बिलकुल ताल से ताल मिलती हुई आ रही थी।  


उसने सोचा की किसी के शादी में गाने बजाने की आवाज होगी मगर साथ ही जब उसने समय देखा की उस समय रात के ढ़ाई बज रहे थे। रात में तीन बजे तक रोज किसके यहां नाच गाने होते है, वह सोच में पड़ गयी। उसने ध्यान से आवाज सुनी तो वह आवाज कहीं नजदीक से ही आ रही थी मगर आसपास किसी के यहां शादी नहीं थी। बस इतना सोचते ही उसके पसीने बहने लगे। उसने बैठे बैठे ही गर्दन ऊँची करके चारों और देखा मगर उसे कोई नजर नहीं आया। शादी की कहीं लाइट वगैरह भी जली हुई नहीं दिख रही थी। उसका पानी हलक में ही अटक कर रह गया। उसे एक अजीब सा ड़र लगने लगा। घुँघरू की आवाज ऐसी लग रही थी जैसे कोई छैल छबिली इठलाती हुई चल रही हो।


बेबी सोच में पड़ गयी की आखिर कौन होगा? इतनी रात को कौन औरत घुँघरू पहनकर नाच रही है। ड़र के मारे बेबी की घिघ्घी बंध गयी। उसने अपनी बड़ी बहन निर्मला दीदी को उठाया।


बेबी बोली, ‘दीदी... दीदी… जल्दी उठो, देखो घुँघरू की आवाज आ रही है।‘


निर्मला दीदी ने नींद में ही कहा, ‘रात में सपने में बड़बड़ाना बंद कर और सो जा।‘


बेबी ने कहा, ‘दीदी आपकी कसम मैं बड़बड़ा नही रही हूं। आप उठकर सुनों सच में अभी भी

घुँघरू बजने की आवाज आ रही है।‘


तब तक मंजू की नींद भी खुल चुकी थी। वो भी चौक कर उठी और उसे भी घुँघरू की आवाज सुनायी देने लगी। अपनी बड़ी बहन बेबी के चेहरे पर पसीना देखकर वो भी घबरा गयी।


मंजू ने पूछा, 'क्या हो गया बेबी जीजी? आस पास किसी के यहां शादी होगी इसलिए वहां से नाच गाने की आवाज तो आएगी ही। यह आवाज तो रोज ही आ रही है, इसमें आप इतनी घबरा क्यों रही हो?


बेबी ने कहा, 'तूने समय देखा है? अभी रात के तीन बजे हैं, इतनी देर रात तक कहां नाच गाने होते हैं? और कोई लाइट भी किसी के यहां जलती हुई नजर नहीं आ रही, मुझे तो कुछ दाल में काला नजर आ रहा है।‘


मंजू ने समय देखा वास्तव में तीन बज चुके थे। अब मंजू पसीने से लथपथ हो गयी थी। अपना होश हवास खोते हुए बैठकर छुपकर इधर उधर देखने लगी मगर उसे कोई नजर नहीं आया। उन लोगों की उठकर देखने की हिम्मत नही हुई।


घुँघरू की आवाज दूर जाती हुई साफ सुनायी दे रही थी जैसे कोई औरत इठलाकर चल रही हो। धीरे धीरे वो आवाज गुम हो गयी।


अब तीनों की सिटीपिट्टी गुम हो गयी। रमेश भाई साहब को सब लोग आर एन साहब कहते थे। बेबी ने धीरे धीरे हिम्मत करके आर एन साहब और अपने छोटे भाई गोपाल को उठाया। उन्हें सारी बात बतायी मगर तब तक घुँघरू बजने की आवाज बंद हो चुकी थी।


आर एन साहब नाराज होते हुए बोले, ‘रात के तीन बज गए हैं, ना तुम खुद सोते हो और ना ही दूसरों को सोने देते हो। बस हमेशा भूतों की बातें करते रहते हो इसलिए रात में भी भूतों की बातें दिमाग में रहती है और नींद में भूतों के ही सपने आते रहते हैं। चलो सो जाओ वरना अभी सबकी नींद उड़ जायेगी फिर रात भर नींद नहीं आयेगी।‘


थोड़ी देर में आर एन साहब और गोपाल दोनों वापिस सो गये मगर निर्मला दीदी, बेबी, मंजू

और बीना को अब नींद नही आ रही थी। वे सब ड़र के मारे कांप रहा था। शकुंतला बुआ के बच्चे कमलेश, मंजू, राकेश, रजनी और मुकेश गहरी नींद में सो रहे थे इसलिए वे नींद से नहीं जागे। रात भर तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर हनुमान चालीसा का पाठ करते रहे और सुबह का इंतजार करते रहे। जब सुबह हुई तब वे तीनों उठकर जल्दी से नीचे कमरे में दादा दादी और मम्मी के पास जाकर सो गयी।


थोड़ी देर बाद सुबह होने पर बाकी सब भी जाग गये और छत से नीचे आ गये। मम्मी ने सबके लिये चाय बनायी और सब नीचे बरामदे में धूप में बैठकर चाय पीने लगे। बेबी ने ड़रते डरते सबको रात की अपनी आप बीती सुनायी। भुआ के बच्चे कमलेश, मंजू, राकेश, रजनी और मुकेश घबरा गए। मंजू, बीना और राजा भी घबरा गए थे मगर उन्हें भी घुँघरू की आवाज सुनने की इच्छा हुई। उन्होंने कहा हमको क्यों नहीं जगाया हमें भी घुँघरू की आवाज सुननी थी।


दादा जी दादी जी ने बेबी को पास बुलाकर उससे सारी बात सुनी।


दादा जी ने कहा, ‘जैसा तुम बता रही हो मैंने तो ऐसी कोई आवाज नही सुनी। मेरी नींद रात में साढ़े ग्यारह बजे खुल गयी थी फिर वापिस मुझे रात को लगभग तीन बजे बाद नींद आयी थी। मैं भी रात को उस समय जाग ही रहा था।‘


बेबी ने कहा, ‘हो सकता है घुँघरू की आवाज नीचे तक नही आई हो।‘


दादा जी ने बेबी को डांटा, ‘ऐसी डरावनी कहानियां सुनाकर बच्चों को क्यों डराती है?’


मम्मी ने कहा, ‘मैं भी रात को पानी पीने उठी थी फिर बहुत देर एक नींद नहीं आयी मगररात में घुंघरू की आवाज तो मैंने भी नहीं सुनी थी। अपने आस पास मौहल्ले में किसी के यहां शादी भी नहीं है। मगर मैंने तो सुना है रात में तो भैरु जी ही घुँघरू पहनकर नाचते हैं। अपने तोपदड़ा वाले मकान के बाहर ही नीम का पेड़ है और उसके नीचे भैरु जी का मंदिर है। वहां पेड़ से रोज घुँघरू बजने की आवाज आती है। मैंने तो कई बार ये आवाज वहां सुनी है। वहां आस पास के सब लोगों को मालूम है की यहां रात को भैरु जी आकर साक्षात नाचते है। हो सकता है ऐसे ही अपने यहां भी पीपल और नीम के पेड़ पर भैरु जी नाचते हो।‘ 


दादी जी ने कहा, ‘बहू जी बात तो सही कह रही है। अपने तोपदड़ा वाले मकान के बाहर भैरु

जी का जो मंदिर है उसकी बहुत महिमा है। वहां रोज भैरु जी नाचते है यह तो मैंने बहुतों से सुना है और बहू जी ने मुझे पहले भी बताया था। इन सभी से प्रेरित होकर ही वहां गिरिजा शंकर जी के बेटे राजू ने भैरु जी के मदिर की चारदीवारी बनवा दी और वे हर साल उसकी साफ सफाई और पुताई करवाते हैं। साथ ही वहां आस पास रहने वाले लोग मिलकर हर साल भैरु जी के घुँघरियों का भोग भी करवाते हैं।‘


सभी ने भैरु जी का जयकारा लगाया।


बेबी तो बुरी तरह ड़री हुई थी। उसने सोचा इसका मतलब ये रोज घुंघरू पहनकर नाचने की आवाज किसी शादी में से नहीं आती है बल्कि भैरु जी रोज रात में यहां नाचते हैं। उसने यह भी सुन रखा था भैरु जी को अगर कोई नाचते हुए देख लेता है और उनके नाच में विध्न पड़ जाता है तो वे नाराज हो जाते हैं और बहुत अनिष्ट हो जाता है।


धीरे धीरे घुँघरू वाली भूतनी की बात पूरे मौहल्ले में फैल गयी। फिर तो बहुत से लोग कहने लगे की उन्हें भी रात में घुँघरू की आवाजें सुनायी देती है।


बेबी के मकान के पड़ौस में ही उसकी सहेली शांति रहती थी। उसकी छत उनके घर की छत से जुड़ी हुई थी। वह बेबी की पक्की सहेली थी। वे दोनों कॉलेज साथ ही जाते थे। दोनों अपनी अपनी छतों पर खड़े होकर रोज घण्टों बातें करते थे।


शांति ने आर एन साहब से कहा, ‘अरे भाई साहब आपको पता है यहां रात में घुँघरू पहने भूतनी घूमती है और नाचती है। मेरी छोटी बहन सरोज कह रही थी की उसने आपके घर के पीछे वाले पीपल के पेड़ पर और उसके पीछे वाली हवेली में कोई साया देखा है। हो सकता है वहां भूत भूतनी रहते हो। पूरे मौहल्ले के लोग कह रहे हैं उन्होंने भी इन दिनों आधी रात में घुंघरू की आवाजें सुनी है।‘


बेबी ने कहा, ‘अगर वहां कोई भूत भूतनी रहते हैं तो वो दिन में क्यों नहीं दिखते हैं?‘


शांति ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है दिन में दोनों भूत भूतनी खंडर सुनसान हवेली में चले जाते होंगे इसलिए नहीं दिखते।‘


बेबी ने कहा, ‘शांति, क्या तू सच कह रही है?’


शांति ने कहा, ‘अरे मैंने रात में दो तीन बार एक भूत को पेड़ पर देखा है। तू ने कल जो घुँघरु की आवाज सुनी थी वो शायद घुंघरू बांध कर भूतनी के नाचने की आवाज होगी जो देर रात को भूत से मिलने आयी होगी।‘


बेबी, मंजू, बीना, राजा और सब बच्चों की घिघ्घी बंध गयी। सब ड़र गये और दादा जी के पास जाकर उनके इर्दगिर्द खड़े हो गए और उन्हें सारी बात बतायी। 


दादा जी ने गुस्से में डांटते हुए कहा, ‘अरे ये सब बकवास बंद करो। कोई भूत भूतनी नहीं होते। एक तो तुम सब मिलकर देर रात तक छत पर मटरगश्ती करते हो फिर जब नींद नही आती है तो भूतों की कहानियां सुनते सुनाते हो। फिर बाद में तुम्हारे दिमाग में बस ऐसे ही विचार आते रहते हैं। आज से तुम सब अगर जल्दी नही सोये तो मैं कल सबकी बेंत से पिटाई करूँगा।‘ 


भुआ के बच्चे कमलेश, मंजू, राकेश, रजनी और मुकेश बुरी तरह घबरा गए। और वे वापिस अपने घर सिविल लाइंस जाने की जिद करने लगे। दादा जी ने गोपाल को बच्चों को सिविल लाइंस छोड़कर आने के लिए भेज दिया।


सब बच्चे दादा जी के पास से भाग गये। बच्चों को ड़र तो लग रहा था मगर उनको भूत कैसा होता है भूतनी कैसे नाचती है सब देखने की इच्छा भी थी। सब बच्चों को शाम की इंतजार थी। शाम होते ही बेबी के साथ मंजू और बीना छत पर पानी का छिड़काव करने चले गए। थोड़ी देर में आसपास के लोग भी अपनी छतों पर पहुंच गए। कोई पानी का छिड़काव कर रहा था तो कोई पतंगबाजी के मजे ले रहा था तो कोई कबूतरों की टोलियों को उड़ता देख रहा था। 


शाम ढ़लने के बाद सब नीचे खाना खाने चले गए और खाना खाकर थोड़ी देर बाद सब वापिस छत पर आ गए। भूत की अफवाह फैलने के बाद रात में सभी छतों पर अच्छी खासी हलचल दिखायी देने लगी थी। सब लोग कौतहुल वश पेड़ पर नजर मार रहे थे मगर उस समय वहां कोई भूत नजर नही आया और ना ही उन्हें कोई घुँघरू की आवाज सुनायी दी।


बड़े भाई आर एन साहब ने सबको समझाया, ‘ये भूत भूतनी सब तुम लोगों के मन का बहम है और कुछ नहीं। कोई भूत भूतनी नहीं होते। तुम लोग रात को देर से सोते हो और आपस में ऐसी ही डरावनी बातें करते हो इसलिए रात में ऐसे ही सपने आते हैं। आज रात को अगर तुम में से किसी को घुँघरू वाली भूतनी की आवाज सुनायी दे या कोई भूत दिखे तो मुझे और गोपाल को जगा देना।‘ और कहकर सोने लगे।


बेबी की सहेली शांति भी रात में खाना खाकर छत पर सोने के लिए आ गयी थी। वह और बेबी आपस में बतियाने लगी थी। शांति ने बताया की सच में पिछली दो रातों में उसने दो बार पेड़ पर भूत देखा है। यह सुनकर मंजू बीना जो पहले से ही डरी हुई थी और ड़र गयी। शांति की बहन सरोज उन्हें डरा हुआ देखकर हंसने लगी। थोड़ी देर बाद सब दरियों पर बैठ गये और बातें करने लगे। रात में धीरे धीरे सबको नींद आ गयी। 


रात करीब दो बजे की बात है। थोड़ी ही दूरी से अचानक घुंघरू बजने की आवाज आने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई कभी तेज तो कभी धीरे नाच रहा है। बेबी ने अपने बड़े भाई आर एन साहब और छोटे भाई गोपाल को उठाया। वे दोनों हड़बड़ाकर उठे। उन्हें भी घुँघरू की कभी तेज तो कभी धीरे आवाज आ रही थी फिर अचानक आवाज आना बंद हो गयी।


उन्हें शांति की बातें याद आ गयी की उसने भूत को पेड़ पर बैठे हुए देखा है और भूतनी उससे मिलने आती है। वे सब घर के पीछे की तरफ के पीपल के पेड़ की तरफ देखने लगे। वह बहुत घना पेड़ था। अब तक निर्मला दीदी भी उठ चुकी थी। उन्हें भूतनी के घुँघरू बजने की आवाज तो सुनायी नही दी मगर उन्हें भी एक आकृति पेड़ पर नजर आ रही थी। उस आकृति को गौर से देखने पर उन्हें भूत नजर आया। निर्मला दीदी की मुंह से आवाज निकलनी बंद हो गयी। बहुत कोशिश करने पर भी उनके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। उन्होंने घबराकर सबको इशारों से पेड़ पर दिख रहे भूत को बताया। 


सब लोग उस तरफ देखकर घबरा गये और छत से नीचे की तरफ भागे। पास की छत पर शांति भी खड़ी थी वह भी घबरायी हुई थी उसने भी पेड़ की तरफ ऊँगली से इशारा किया की वहां भूत है। मगर किसी की भी वापिस मुड़कर भूत की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हुई। भागते हुए सीढ़ियां उतरने के चक्कर में राजा गिर गया और उसके पांवों में थोड़ी सी चोट आयी। सब बच्चे घबराकर दादा जी दादी जी और मम्मी के पास जाकर उनसे चिपट कर रोने लगे।


मम्मी ने समझाया, ‘कोई बंदर पेड़ पर बैठा होगा और उसे तुमने देख लिया होगा बस उसे तुम भूत समझ गए होंगे। आज तक कोई भूत नहीं दिखा आज ही ये भूत कहाँ से आ गया? तुम सब मिलकर रात को डरावनी बातें करते हो इसलिए तुम्हारे दिमाग में वहीं घूमता है फिर जो दिमाग में घूमता है बस वैसा ही दिखता हैं’।


दादा जी ने बच्चों को शांत किया। सब बच्चों को दादी जी ने समझाया, ‘कोई भूत नहीं होता तुम्हें डराने के लिए किसी ने घुंघरू बजा दिए होंगे और तुम घुंघरू की आवाज सुनकर घबरा गए।‘


उसी दिन सुबह बसंतीलाल चाचा जी और चाची जी जैसलमेर से बच्चों नीलू, नीता, बबलू और दीनू को लेकर उन्हें गर्मियों की छुट्टियों मनाने के लिए अजमेर छोड़ने आये थे। बसंतीलाल चाचा जी, चाची जी और बच्चों को देखकर सब बच्चे बहुत खुश हुए। नीलू, नीता, बबलू और दीनू भी बहुत खुश दिख रहे थे।


बेबी ने बसंतीलाल चाचा जी चाची जी को भूत भूतनी वाली सारी बात बतायी। उन्होंने सब बच्चों को सम्भाला और उन्हें ढाढ़स दिया।


बसंतीलाल चाचा जी ने कहा, ‘बच्चों कोई भूत वूत नहीं होता। अब मैं आ गया हूं तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं खुद आज रात भर जागकर देखूंगा। मुझे लगता है कोई तुम्हें

डराता है।‘


भूत भूतनी की बातें सुनकर नीलू, नीता, बबलू और दीनू भी घबरा गये और वापिस जैसलमेर

चलने को कहने लगे। चाचा जी की आवाज सुनकर पडौस की शांति भी वहां आ गयी थी।


शांति ने चाचा जी से कहा, ‘नहीं, चाचा जी सच में भूत होता है और मैंने रात में दो बार उसे

पीपल के पेड़ पर देखा है।‘


चाचा जी डॉक्टर थे इसलिए उन्हें भूत भूतनी वाली बात पर इतना आसानी से यकीन नहीं हो रहा था। चाचा जी को वैसे भी रात में नींद कम आती थी इसलिए वे जब भी अजमेर आते देर रात तक छत पर ही घूमते रहते थे। 


चाचा जी ने कहा , 'तुम कोई भी घबराओ नहीं और सब छत पर जाकर आराम से सो जाना,    मैं रात को जागकर भूत भूतनी को देखूंगा।‘


अब दिन भर मौहल्ले में भूत भूतनी की चर्चा होने लगी। आस पास के मौहल्लों नला बाजार, सरावगी मौहल्ला, पुरानी मंडी सभी जगह ये बात फैल गयी की आजकल कायस्थ मौहल्ला नीम चबूतरे में पीपल के पेड़ पर भूत और घुँघरू वाली भूतनी रहती है और भूतनी रात में घुंघरू बांधकर नाचती है। 


लादू गुर्जर के लड़के कैलाश ने बताया की उस हवेली में कई सालों पहले एक नयी नवेली दुल्हन और उसका पति जिन्होंने भागकर शादी की थी इस हवेली में रहने आये थे। वो औरत हमेशा घुंघरू वाले पायजेब पहनकर और बन ठन कर घूमती थी। एक दिन वो दोनों ही सुबह मरे हुए मिले। पता नहीं उनका मर्डर हुआ था या उन्होंने आत्महत्या की थी। हो सकता है उन्हीं की आत्मा भटक रही हो।  


अब तो दिन भर उस पेड़ पर भूत देखने के लिए लोगों का तांता लगा रहता मगर दिन में किसी को कोई भूत नहीं दिखा। अब तो सबको पक्का यकीन हो गया की पीपल के पेड़ और खंडर हवेली में प्रेत आत्माएं रहती है। राजा के दोस्त गोपाल स्वरूप, बाबू, सुभाष और गणेश भी पीपल के पेड़ और खंडर हवेली में भूतों के होने से घबरा गए थे। 


मोहन ने कहा, ‘अपने मौहल्ले में चारों तरफ भैरु जी विराजमान हैं, वे ही रात में घुंघरू पहनकर नृत्य करते होंगे।‘


रोज की तरह रात को सब घर वाले और पडौसी लोग अपनी अपनी छतों पर सोने के लिये पहुंच गये थे। दिन भर तो निकल जाता था मगर शाम होते ही रात का ड़र बैठ जाता। अंधेरा होते ही घर के आस पास के बड़, नीम और पीपल के बड़े और घने और ऊंचे पेड़ थे वो बड़े ही डरावने लगते थे। जरा सी हवा से पेड़ के पत्ते हिलते हिलते तो बच्चे क्या बड़े बड़े लोगों को ड़र लगने लग जाता था। 


इधर शांति को भी अब अकेले छत पर जाने से ड़र लगने लगा था इसलिये वो अपनी छोटी बहन सरोज के साथ छत पर जाने लगी। रात में खाना खाकर शांति अपनी छोटी बहन सरोज के साथ छत पर टहल रही थी। बेबी को छत पर देख रोज की तरह शांति बेबी से बातें करने लगी। वे भी भूत भूतनी की ही बातें कर रहे थे। सबको भूत देखने का कौतहुल भी था और सब जानना चाहते थे की भूत दिखने में कैसा होता है।


फिर सब अपने अपने छतों पर दरियों पर जाकर लेट गए और रात बारह बजे तक गप्पे मारते

रहे। थोड़ी देर बाद नीलू नीता को नींद आ गयी। बाकी सब बच्चे आपस में बतियाते रहे। चाचा जी को नींद नहीं आ रही थी वो छत पर घूम रहे थे। चाचा जी के छत पर होते हुए सब निश्चिंत थे। धीरे धीरे सभी को नींद आ गयी मगर निर्मला दीदी और बेबी को नींद नहीं आ रही थी। चाचा जी की डांट के ड़र से दोनों चुपचाप लेटी हुई बातें कर रही थी।


देर रात में शीतल हवा चलने लगी थी। पेड़ मानों झूम रहे थे। अचानक बेबी को सामने पीपल के पेड़ पर नीचे उतरता हुआ भूत नजर आया। उधर पडौस की छत पर शांति और सरोज भी नींद नही आने से आपस में बातें कर रही थी। अचानक शांति और सरोज दोनों को भी पेड़ पर भूत नजर आया और वो दोनों डरकर चिल्लाते हुए छत से उतरकर नीचे कमरे की और भागी। 


शांति और सरोज की आवाज सुनकर निर्मला दीदी और बेबी घबराकर बैठ गयी। बाकी सब बच्चे भी तेज आवाज सुनकर हड़बड़ा कर उठ गये। सबको ड़र लगा और घबराकर नीचे दादा जी के पास भागकर जाने लगे मगर सबके पांव कांप रहे थे एक कदम भी आगे वढ़ाना भी मुश्किल हो रहा था। चाचा जी ने बच्चों को धीरे धीरे सीढियाँ उतरने को कहा। सब बड़ी मुश्किल से चीखते चिल्लाते हुए नीचे उतरे और घबराते हुए दादा जी दादी जी के पास चले गए। नीता सीढ़ियों में फिसलने ही वाली थी गनीमत रही कि राजा उसके पीछे था उसने उसे संभाल लिया।


बसंतीलाल चाचा जी को भी घुंघरू पहनकर किसी के लय में चलने की आवाज सुनायी दी और पेड़ पर कुछ आकृति हिलती हुई नजर आयी। चाचा जी भी थोड़ा घबरा गए। आखिर उन्हें भी आज अंधेरे में चोगा पहना हुआ भूत दिखायी दे ही दिया। उन्हें भी कांटों तो खून नहीं। मगर कहीं बच्चे ड़र ना जाये इसलिये सब बच्चों को सीढ़ियों से उतारकर फिर आखिर में वे खुद नीचे सीढ़ियां उतरे। सब ड़रकर कोई दादा दादी तो कोई मम्मी तो कोई चाची जी से जाकर लिपट गये। सब को उन लोगों ने सांत्वना दी।


थोड़ी देर बाद सुबह होने पर सब चाय पीते हुए रात में भूत देखने की बातें कर रहे थे। 


चाचाजी ने जैसे ही कहा, ‘उन्होंने भी चोगा पहने हुए भूत को पेड़ पर देखा था। अंधेरी रात होने से उसका चेहरा साफ नही दिख रहा था और वैसे भी पेड़ पत्तों और मोटे मोटे डालों से लदा होने और झुरमुट बहुत ज्यादा होने से उन्हें साफ देखने दिक्कत हो रही थी।‘


चाचाजी के मुंह से जब यह सब सुना की उन्होंने भी चोगा पहने हुए भूत को पेड़ पर देखा था तो सब लोग ड़र गये और हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे। अब सब घर वाले क्या मौहल्ले में भी सभी लोग घरों में रोज सुबह शाम हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे।


गोपाल साहब ने कहा, ‘अब क्या करें। अब तो भूत भूतनी को भगाने के लिए किसी साधु बाबा या तांत्रिक बाबा को बुलाना पड़ेगा।?’


दादा जी ने कहा, ‘मैं पुष्कर के काली कमली वाले बाबा और बंगाली बाबा के साधु संतों को जानता हूं अब मुझे ही उनके साथ पुष्कर में सुधाबाय जी जाकर किसी पहुंचे हुए तांत्रिक को बुलाकर लाना पड़ेगा।‘


सब बच्चे दादा जी को जाने से मना करने लगे और कहने लगे आप चले गए तो रात तक आओगे हमें आपके बिना बहुत ड़र लगेगा।


तभी पडौस में ही रहने वाला एक लड़का जिसका नाम बाली था वह दादा जी के पास आया।


बाली ने कहा, 'दादा जी मैं एक तांत्रिक बाबा को जानता हूं जो बहुत पहुंचा हुआ तांत्रिक है। एक बार मेरे दोस्त सत्येंद्र जो भजनगंज में रहता है उसके पीछे एक भूतनी पड़ गयी थी। उस भूतनी से उसे उसी ने छुटकारा दिलाया था। अगर आप कहो तो मैं उससे बात कर तांत्रिक बाबा को यहां बुलाकर ले आऊं।‘

'

नीता बहुत डरी हुई थी। वो ड़रते हुए कहने लगी, ‘भैया आप अभी के अभी जाकर उसे बुलाकर

ले लाओ।‘


बाली ने कहा, ‘अरे भाई मैं उस तांत्रिक बाबा का घर नहीं जानता। अगर आप कहो तो मैं अभी थोड़ी देर में मेरे दोस्त सत्येंद्र और सतीश जो भजनगंज में रहते हैं उनके साथ जाकर तांत्रिक बाबा को बुलाकर लाता हूँ।‘


थोड़ी देर में मौहल्ले के सब लोग मिठ्ठनलाल जी दादा जी की हवेली की बैठक मे जमा हो गये। सब दादा जी से ही कुछ करने को कहने लगे।


सरोज ने कहा, ‘मैंने और शांति जीजी ने भी रात में पेड़ पर भूत को देखा था। उस भूत ने एक लंबा सा चोगा पहन रखा था। मेरी तो बस जान ही निकल जाती अगर शांति दीदी नही होती और वो मेरा हाथ नही पकड़ती तो मैं तो ड़र के मारे मर ही जाती।‘


सब बच्चें ड़र गये। राजा, नीलू, बबलू, दीनू और नीता सभी कांपने लगे। लेकिन बच्चों में भूत कैसा होता है उसे देखने का कौतूहल भी था।


दादा जी ने बाली से कहा, ‘अगर तू तांत्रिक बाबा को जानता है तो उसे बुलाकर ला जो भी खर्चा होगा वह मैं दूंगा।‘


बाली ने कहा, 'दादा जी  मैं सबसे पहले भजनगंज जाऊंगा। मेरे दोस्त सत्येंद्र और उसके चाचा का लड़का सतीश जो भजनगंज में ही रहता है उनको साथ लेकर जाऊंगा।'


राजा ने कहा, 'बाली भाई कौन सी भूतनी आपके दोस्त सत्येंद्र के पीछे पड़ गयी थी, पूरी कहानी सुनाओ।'


सबको भूतनी की कहानी सुनने की बड़ी उत्सुकता थी मगर सबको ड़र भी लग रहा था।


बाली ने कहा, 'रहने दो यार, तुम सब डरपोक हो ड़र जाओगे। भूतों की कहानी सुनने के लिये जिगर होना चाहिए।'


दादा जी ने बाली को डांटते हुए कहा, 'बाली, तू क्यों सबको भूत की कहानी सुना सुनाकर डरा रहा है?'


दादा जी ने उस समय बाली और सब बच्चों को डांटकर भगा दिया मगर थोड़ी ही देर बाद सब बच्चे वापिस मौहल्ले में बीजासन माता के चबूतरे पर इकट्ठे हो गये। बाली ने बैठक में झांक कर देखा कहीं दादा जी तो नही बैठे हैं। जब उसने देखा कि दादाजी वहां नहीं है फिर वह भी वहां अंदर आ गया था।


दीनू ने धीरे से बाली से कहा, 'बाली भाई, सच बताऊं मुझे तो ये भूतों की डरावनी कहानियां सुनने में बहुत मजा आता है। बाली भाई वो भूतनी वाली कहानी जो आप सुना रहे थे वह सुनाओ ना।'


बाली ने कहा, 'सब दिल थामकर रखना। तुम में से अगर कोई कमजोर दिल वाला हो तो अभी यहां से चले जाना नही तो थोड़ी देर में यहीं उनका निकर खराब हो जायेगा और फिर तुम्हारे दादा जी मुझे छोड़ेंगे नही।'


सब बाली से जिद करने लगे। थोड़ी देर बाद उसने कहानी सुनानी शुरू कर दी। सब उसे तन्मयता से सुन रहे थे।


बाली ने बताया कि उसका दोस्त सत्येंद्र जो भजनगंज में रहता है वो एक बार परबतपुरा किसी शादी में गया था और वहां से लौटने में वह बहुत लेट हो गया था। रात के लगभग एक बजे होंगे। वह अकेला ही अपनी साईकिल पर परबतपुरा से अपने घर जा रहा था। 


वह साईकिल पर आदर्शनगर के ग्रेवयार्ड के पास तक पहुंचा ही था कि उसे सड़क के किनारे एक औरत खड़ी दिखायी दी। वह गहनों से लदी हुई सजी धजी थी। ऐसा लग रहा था शायद वो औरत भी किसी शादी से अकेले ही लौट रही थी।


उस औरत ने घूंघट कर रखा था। उसने सत्येंद्र को रुकने का इशारा किया। सत्येंद्र ने अकेली औरत को देखा। उसकी गोद में एक छोटा बच्चा भी था जो लगातार रोये जा रहा था। उसके साथ कोई आदमी भी नहीं था। उसे अकेला और बेबस देखकर सत्येंद्र के दिल में दया आ गयी और उसने उसकी सहायता करने की मंशा से अपनी साईकिल रोक दी।


उस औरत ने कहा, 'बाबू जी, क्या आप मुझे अलवर गेट तक छोड़ दोगे। मुझे बहुत ड़र लग रहा है। मैं अकेली हूँ साथ में मेरा छोटा बच्चा है देखो ड़र के मारे बहुत रो रहा है।'


सत्येंद्र ने उससे पूछा, 'तुम यहां इतनी रात अकेली सुनसान सड़क पर क्या कर रही हो?'


सत्येंद्र के पूछते ही वो औरत फूट फूट कर रोने लगी। वह रोते हुए कहने लगी, 'मैं अकेली नही थी साहब। मेरे पति भी मेरे साथ ही थे। हम दोनों माखुपुरा से किसी शादी से लौट रहे थे मगर हमारी साईकिल यहां आदर्शनगर के बाहर पंचर हो गयी थी। हम वहां से पैदल ही आ रहे थे। पीछे से कुछ मनचले लड़के आ रहे थे वे मुझे छेड़ने लगे। वे शराब के नशे में लगे रहे थे। मेरे पति ने उन्हें रोका मगर वो उनसे मारपीट करने लगे।  


वे उन्हें मारते हुए गली में घसीटकर ले गये और हमारी साईकिल नाले में फेंक दी। थोड़ी देर बाद वे लड़के मुझे ढूंढ़ने आये थे। मैं उन लोगों से डरकर झाड़ियों के पीछे बच्चे के मुंह को दबाकर छुप गयी। फिर वे मुझे ढूंढ़ते हुए आगे चले गए। मैं यहां करीब एक घण्टे से खड़ी हुई अपने पतिदेव का इंतजार कर रही हूं मगर वे अभी तक नहीं आये। मुझे लग रहा है कहीं उन्होंने मेरे पति को जान से तो नहीं मार दिया। मैं बहुत घबरा गयी हूं। मैं गली में भी थोड़ी दूर जाकर अपने पति को ढूंढकर आयी मगर उनका वहीं कोई अता पता नहीं लगा।‘ 


वो रोते हुए आगे बोली, ‘मैंने इधर से गुजरते कई लोगों से सहायता मांगी मगर किसी ने भी मेरी सहायता नहीं की। सब बिना रुके चले गये। प्लीज आप मेरी थोड़ी सी सहायता कर दीजिए। मुझे बस अलवर गेट तक छोड़ दीजिए।' 


सत्येंद्र ने कहा, 'तुम अलवर गेट कहाँ जाओगी? तुम्हें तो पहले थाने जाकर उन लड़कों के विरुद्ध पुलिस रिपोर्ट लिखानी चाहिए।'


बाली कहानी सुना ही रहा था तभी दादा जी वहां आ गये।


उन्होंने बाली से पूछा, 'अरे तू फिर आकर इन्हें भूतों की कहानी सुनाकर ड़रा रहा है। तुझे मना किया था फिर भी तू नहीं मान रहा है। चल जाकर उस तांत्रिक बाबा को बुलाकर ला।' 


बाली ने कहा, 'दादा जी अभी थोड़ी देर में जा रहा हूं। मैं खुद उस तांत्रिक बाबा का घर नहीं जानता। मेरे दोस्त सत्येंद्र और सतीश मेरे दोस्त भजनगंज में रहते हैं वे उसका घर जानते हैं। वे करीब दो बजे घर पहुंचते हैं, मैं उन्हें उनके घर से साथ लेकर ही जाऊंगा।'


दादा जी ने बाली को बेंत दिखाकर डांटते हुए कहा, 'मैं कुछ नहीं जानता बस आज की तारीख में तांत्रिक बाबा आ जाना चाहिये।'


दादा जी ने सब बच्चों को डांटकर घर के अंदर जाने को कहा और खुद अपने दोस्त मुरली मनोहर जी के साथ सिविल लाइंस अपने दोस्तों वर्धभान जी और डॉक्टर मोहनलाल जी से मिलने चले गये। उनके जाने के बाद सब बच्चे और बाली दादा जी की बैठक में इकट्ठे हो गये।


दीनू ने कहा, 'बाली भाई वो भूतनी वाली कहानी तो अधूरी ही रह गयी। दादा जी अभी अपने दोस्तों के साथ बाहर चले गए हैं और दो घंटे पहले नहीं आएंगे अब वो कहानी जल्दी से पूरी सुना दो।'


बाली ने कहा, 'दादा जी अभी तो मुझे डांटकर गये हैं। तांत्रिक बाबा को ढूंढकर लाना है नही तो आज दादा जी अपनी बेंत से मेरी पिटाई कर देंगे।'


नरेंद्र भाई ने कहा, 'अबे क्यों नखरे दिखा रहा है? अगर तू नही सुना रहा है तो मैं अपनी आप बीती सुनाऊं।'


बबलू ने कहा, 'नरेंद्र भाई साहब आपकी भी कोई कहानी है क्या?


नरेंद्र बिहारी ने कहा, 'अरे मेरे साथ भी एक बार एक खतरनाक घटना घटी थी। एक बार एक भूतनी मेरे साथ थोड़ी देर साथ साईकिल पर बैठी थी।'


बाली ने कहा, 'चलो पहले मैं आगे की कहानी सुनाता हूं।' और बाली आगे की कहानी सुनाने लगा।‘


उस बेचारी औरत ने सत्येंद्र से कहा, 'मैं अकेली औरत क्या कर सकती हूं। मैं अलवर गेट थाने ही जाना चाह रही हूं पर इतनी रात को अगर कहीं पुलिस वालों ने ही मेरे साथ ही कुछ दुर्व्यवहार कर दिया तो फिर मैं कहीं की भी नहीं रहूंगी। मैं तो किसी को मुंह भी नहीं दिखा पाऊँगी। मेरा घर वहां नजदीक ही है। मैं पहले घर जाकर वहां से अपने देवर को साथ लेकर फिर थाने जाऊंगी।'


सत्येंद्र ने कहा, 'चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूं।'


वह औरत बोली, 'आप कितने अच्छे और भले इंसान हो। आपके अलावा मेरी किसी ने भी सहायता नहीं की।'


सत्येंद्र ने साईकिल के पीछे की सीट पर उस औरत को बैठाया और अलवर गेट की तरफ चल पड़ा। रात को अंधेरे में पेड़ बहुत बड़े साये की तरह दिख रहे थे और तेज हवाओं से झुमते हुए अजीब सी दहशियत पैदा कर रहे थे। सत्येंद्र का रोम रोम ड़र के मारे खड़ा हो गया। सड़क पर उनके अलावा और कोई भी नहीं था। वो अकेले जा रहे थे। रास्ते का पेट्रोल पंप बंद पड़ा था। रास्ते में कुत्ते उन पर लगातार भौंक रहे थे। थोड़ी दूर जाकर सत्येंद्र की साईकिल पंचर हो गयी। मजबूरी में वे पैदल ही आगे चलने लगे।


थोड़ा पैदल चलने के बाद उस औरत ने कहा, 'भैया आप इस बच्चे को गोद में ले लो, मैं साईकिल पकड़ लेती हूं। आप थक गये होंगे।'


सत्येंद्र ने नजदीक से बच्चे को देखा वह बहुत सुंदर बच्चा था।


सत्येंद्र ने कहा, ‘नही भाभी बच्चा आप ही गोद मे रखो मेरी गोद में आते ही रोने लग जायेगा। साईकिल पैदल चलाने में मुझे कोई दिक्कत नही है।‘


उस औरत ने कहा, 'तुमने मुझे भाभी बोला है, क्या तुम मुझ से देवर वाला रिश्ता हमेशा निभाओगे? बताओ देवर जी।‘ और उसके कमर पर उँगलियों से चुटकी काट ली।


सत्येंद्र के शरीर में एक अजीब सा कम्पन पैदा हो गया और वो शरमा गया।


दोनों फिर अलवर गेट की तरफ चल दिये। अब वह औरत सत्येंद्र से काफी खुल गयी थी। वह  बीच बीच में उससे मजाक करने लग जाती और अधिक से अधिक उसके नजदीक आने का प्रयास करती और मजाक में उसे छूने लग जाती। सत्येंद्र को भी उसकी नजदीकी अच्छी लगने लगी थी। सत्येंद्र को अपने आस पास के वातावरण में कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था।  


मगर सत्येंद्र को यह भी ड़र लग रहा था कहीं वे बदमाश लड़के इस औरत को ढूँढ़ते हुए यहां  आ गये तो उसे लेने के देने पड़ जाएंगे। वह औरत घूंघट में से तिरछी नजरों से बार बार सत्येंद्र को देख रही थी। सत्येंद्र नजरे मिलते ही झेंप जाता। थोड़ी देर में वे अलवर गेट के नजदीक पहुंच गये। 


उस औरत ने कहा, 'देवर जी मुझे यहीं छोड़ दीजिये, अब मैं चली जाऊंगी। आप बहुत भले आदमी हो अगर कोई गलत आदमी होता तो अभी तक ना जाने मैं किस मुसीबत में फंस जाती।'


सत्येंद्र ने कहा, 'मगर इतने अंधेरे में अकेली घर कैसे जाओगी। अगर तुमने मुझे देवर मान लिया है तो कम से कम घर तक तो छोड़ने दो।'


उस औरत ने मुस्कराते हुए कहा, 'अच्छा देवर जी कहीं इस बहाने मेरे घर तक तो नहीं पहुंचना चाहते हो।'


सत्येंद्र बोला, 'जब आपने मुझे देवर और मैंने आपको भाभी मान लिया है तो अपने देवर को उसका फर्ज निभाने के लिए आपको आपके घर तक छोड़ने जाने देने में क्या दिक्कत है?'


उस औरत ने शर्माते हुए तिरछी नजरों से देखा और सत्येंद्र की कमर में चकोटी भरते हुए कहा, 'बड़े नटखट हो देवर जी, घर छोड़ने के बहाने घर का पता मालूम करके ही रहोगे। कहीं बाद में बार बार मुझसे मिलने आने का प्लान तो आपके दिमाग में नहीं चल रहा है?'


सत्येंद्र ने कहा, 'नहीं भाभी अगर आपको ये देवर अच्छा नहीं लगा तो कोई बात नहीं। मैं आपको घर नहीं छोड़ने जाऊंगा मगर इतनी रात में आप अपने घर तक अकेली कैसे जाएँगी, क्या आपको ड़र नहीं लग रहा है?


औरत इठलाती हुई बोली, 'अरे देवर जी आप तो नाराज हो गए। अरे देवर जी आप तो पहली मुलाकात में ही नाराज हो गए फिर जिंदगी भर देवर भाभी का खेल ओह सॉरी देवर भाभी का रिश्ता कैसे निभाओगे? 


सत्येंद्र ने कहा ,'ड़र मुझे नहीं आपको लग रहा है ऐसे में मुझे देवर का धर्म निभाने दो।'


वो औरत सत्येंद्र का हाथ पकड़कर बोली, 'सच में ड़र तो मुझे बहुत लग रहा है मगर क्या करूँ मुझे कुछ सूझ भी तो नही रहा है देवर जी।'


थोड़ी दूर चलने के बाद उस औरत ने कहा, 'आपकी साईकिल पंचर है इसे पैदल घसीटने में आपको दिक्कत हो रही है। आप साईकिल यहीं छोड़ दो। इस बच्चे को गोद में ले लो। बस थोड़ी दूर ही मेरा घर है, आप मुझे घर तक छोड़ देना और मेरा घर भी देख लेना ताकि फिर बाद में आपको जब भी अपनी भाभी से मिलने की इच्छा हो मिलने आ जाया करना।'


सत्येंद्र ने हां भर दी। उसने साईकिल एक तरफ खड़ी कर दी फिर बच्चे को गोद में लिया और उसके साथ पैदल चल दिया।


थोड़ी दूर जाकर सत्येंद्र ने पूछा, 'अब और कितनी दूर है?'


उस औरत ने जवाब दिया, 'देवर जी बस अब थोड़ा और आगे है।'


थोड़ा आगे चलकर उस औरत ने सत्येंद्र का हाथ पकड़ लिया मगर सत्येंद्र ने शरमा कर उससे अपना हाथ छुड़ा लिया।


वो औरत कहने लगी, ‘देवर जी अब तो सचमुच मुझे बहुत डर लग रहा है।‘


सत्येंद्र ने बच्चे को उस औरत को दे दिया। सत्येंद्र ने देखा सचमुच वो औरत कांप रही थी। उस औरत ने डरकर सत्येंद्र का हाथ फिर पकड़ लिया। हाथ पकड़ते ही सत्येंद्र के शरीर में सुरसुरी छूट गयी। पहले तो वो शरमा गया और पसीने से लथपथ हो गया। वह औरत कहती जा रही थी मुझे बहुत ड़र लग रहा है। धीरे धीरे उसका हाथ सख्त होने लगा था। 


उस औरत के हाथ का दवाब उस पर लगातार बढ़ता ही जा रहा था। धीरे धीरे उसके हाथ की  पकड़ बहुत सख्त होती जा रही थी। उसे लगा अगर अब उसने उस औरत से हाथ नही छुड़ाया तो उसके हाथ की हड्डी ही टूट जायेगी। धीरे धीरे उस औरत ने उसके गले में हाथ ड़ाल दिया। उसे लगने लगा जैसे उसकी गर्दन टूटने वाली है। उसकी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया। 


उसे अचानक ध्यान आया की जिसके पति के साथ इतनी मारपीट हुई और जो लापता हो गया हो और बहुत चिंतित होने की जगह यह औरत तो रोमांटिक होती जा रही है, जरूर दाल में काला है। उसे समझ आ गया कि वह किसी बड़ी मुसीबत में फंसने वाला है। वह उससे हाथ छुड़ाकर भागने लगा। औरत का सख्त हाथ कोमल हो गया।


वह औरत से हाथ छुड़ाकर भागा। भागते हुए उसकी नजर उसके पांव की तरफ चली गयी। उसके पांव उल्टी तरफ थे। वह समझ गया की वो किसी चुड़ैल या भूतनी के चंगुल में फंस गया है। उसके शरीर में झनझनाहट होने लगी। उसे लगा वो बेहोश हो जाएगा। उससे भागा भी नहीं जा रहा था। उस औरत ने झट उसके सिर के बाल पकड़ लिए और उसे खिंचने लगी। सत्येंद्र के कुछ बाल उसके हाथ में आ गये। बालों को आसमान की तरफ देखते हुए वो जोर  जोर से अट्टहास करने लगी। 


वह औरत गुस्से और सख्त लहजे में आंखें बड़ी करके ऑंखें तरेरते हुई बोली, ' ले भाग कितना दूर भाग सकता है? अब तू मेरे वश में है और जो मैं कहूंगी तू वही करेगा। तूने ही मेरे पति की जान ली है अब तुझे जिंदा नहीं छोडूंगी।'


सत्येंद्र हांफते हुए कह रहा था, ‘नहीं, मुझे जाने दो मैंने किसी की जान नहीं ली है मैं तो आपके पति को जानता तक नहीं।‘


उस औरत की आँखों में आग धधक रही थी। वो गुस्से में बोली, 'कैसे छोड़ दूं, हर कोई यही कहता है की मैंने उनका खून नहीं किया। मैं तुझे छोडूंगी नहीं, मैं तुझसे अपने पति की मौत का बदला जरूर लूंगी। अब तेरे बालों का गुच्छा मेरे हाथों में आ गया है, तू अब मेरे वश में है। अब तेरा हाल भी वही करूंगी जैसा मैंने तेरे साथियों का किया है।‘


सत्येंद्र अप्रत्याशित रूप से उसका बदलता चेहरा देखकर बेहोश होने लगा। बड़ी मुश्किल से वह वहां से भाग पाया। वह हांफते हुए अपने घर पहुंचा और जाते ही पलंग पर गिर गया और बेहोश हो गया।  


थोड़ी देर बाद जब वह होश में आया तो अजीब सी हरकतें करने लगा। थोड़ी देर बाद जब वह नार्मल हुआ तब उसने अपने साथ घटी घटना सबको बतायी। उसके चाचा का लड़का सतीश अपने एक दोस्त को साथ लेकर उसकी साईकिल ढूंढने गया। अलवर गेट नाले के पास उसे उसकी साईकिल पड़ी हुई मिल गयी। उसने साईकिल को देखा तो वह बिल्कुल ठीक थी उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसमें कोई पंचर भी नही था। 


वहां पास में ही एक चाय वाले की थड़ी थी। उसने चाय वाले को रात वाली घटना से अवगत कराया। चाय वाले ने उसे बताया यहां ऐसी घटना रोज देर रात में होती ही रहती है। यहां रात बारह बजे बाद अक्सर एक औरत अपने बच्चे को गोद में लिए रात में घूमती है। दरअसल वह भूतनी है। यह सुनकर सतीश घबरा गया। 


उसने सतीश को बताया की बहुत समय पहले एक बार एक खूबसूरत औरत एक बच्चे को गोद में लिये हुए अपने पति के साथ माखुपुरा से किसी शादी से वापिस आ रही थी। रात के करीब एक बजे थे। इस इलाके के कुछ गुंडे लड़के उस औरत के पीछे पड़ गये और उसे छेड़ने लगे। उसे बचाने के लिए उसका पति उन गुंडों से लड़ने लगा। 


उन सब लड़कों ने शराब पी रखी थी। उन गुंडों के पास चाकू छुर्रे आदि हथियार थे जबकि वो आदमी निहत्था था। वे उसके पति को सामने वाली गली में घसीटकर ले गए और वहां उसकी जमकर धुनाई कर दी। थोड़ी देर बाद वे गुंडे उस औरत को ढूंढ़ते हुए वापिस आए मगर उसका पति उनके साथ नहीं था। उन गुंडों ने उस औरत को चारों तरफ से घेर लिया उस औरत ने  खुद को गुंडों से घिरा देखकर अपनी इज्जत बचाने के लिए इस नाले में कुदकर जान दे दी। बस तभी से वह रात को अपने पति का बदला लेने के लिये उन लड़कों को भूतनी बनकर ढूंढती है।

 
वह औरत किसी का नुकसान नही करती है बस उसे हर आते जाते व्यक्ति पर शक होता है की उसके पति को उसी ने मारा है इसलिए पहले वह उसे अपने जाल में फँसाती है और जब वह उसके जाल में फंस जाता है और वह औरत उसे पहचान जाती है कि इसी व्यक्ति ने उसके साथ ज्यादती करने की कोशिश की थी और उसके पति को मारा था बस वह उससे बदला लेने की कोशिश करती है। 


मगर वह निर्दोष आदमी का कोई नुकसान नही करती। यहां आये दिन देर रात में ये किस्सा होता रहता है। जिस पर उसे शक हो जाता है वह उसके पीछे पड़ जाती है और उसे बहुत मुश्किल से छोड़ती है। 


सतीश ये सब सुनकर पसीने पसीने हो गया। थोड़ी देर बाद सतीश साईकिल लेकर घर पहुंचा। सतीश ने घर आकर रात में भूतनी के घूमने वाली बात जो चाय वाले ने बतायी थी सभी को सुनायी। सत्येंद्र वैसे ही बहुत घबराया हुआ था। वह उलूल जुलूल हरकतें कर रहा था तथा वह बिस्तर से उठकर बार-बार भागकर उसी जगह जाने की कोशिश करता जहां रात में उसे वह औरत मिली थी। 


सत्येंद्र के घर के सभी लोग परेशान हो गये। दूसरे दिन सुबह फिर सतीश उसी थड़ी वाले के पास वापिस गया। उसने थड़ी वाले को बतलाया कि उंसका भाई सत्येंद्र इस भूतनी से बहुत परेशान है। हमारे सब घर वाले बहुत परेशान हैं की सत्येंद्र का उस भूतनी से कैसे पीछा छुड़ाएं।


थड़ी वाले ने उसे एक तांत्रिक बाबा का पता बताया और उससे मिलने को कहा। सतीश सत्येंद्र के पिता को साथ लेकर उस तांत्रिक बाबा के पास गये। करीब दो घण्टे वहां बैठे उसके बाद उनका नम्बर आया।


तांत्रिक ने पूछा, 'क्या परेशानी है बच्चा।' 


सत्येंद्र के पिता ने उन्हें सारी बात बतायी। 


उनकी सारी बात सुनकर तांत्रिक बाबा बोला, 'मुझे मालूम है की यह औरत उस एरिया में आते जाते सभी लोगों को बहुत परेशान कर रही है। तुम्हारे बच्चे के शरीर में वही भूतनी घुस गयी है। आजकल ये भूतनी लोगों को ज्यादा ही परेशान कर रही है। मैंने उस एरिया के बहुत से लोगों को उससे छुटकारा दिलाया है। अब लगता है उसे बोतल में बंद कर जिन्नों के शहर हमेशा हमेशा के लिये भेजना पड़ेगा।'


उस तांत्रिक बाबा ने प्रेत बाधा दूर करने में दो हजार रुपये का खर्चा बताया। सत्येंद्र के पापा ने पंद्रह सौ रुपये में सौदा तय किया। वे तांत्रिक को एक हजार रुपये एडवांस देकर आये। करीब दो घण्टे बाद तांत्रिक बाबा अपनी झोली लेकर अपने चेले के साथ सत्येंद्र के घर पहुंच गया।


तांत्रिक बाबा ने नाक सिकोड़ा और कहा, ‘हाँ वह भूतनी औरत यहीं है। यहांउसके शरीर की दुर्गंध आ रही है।‘


उन्होंने अपना झोला खोला और उसमें से लोबान निकालकर उसे जलाया। उसने घर के चारों और धुआं ही धुंआ कर दिया और एक कांच की बोतल खोलकर सामने रख दी। फिर तांत्रिक बाबा ने एक चिलम जलाई और कुछ मंत्र बोलने लगा। चारों तरफ धुआं ही धुआं हो गया सबका सांस लेना भी मुश्किल हो गया फिर वो थोड़ी देर में अपने सिर को तेजी से हिलाने लगा।


तांत्रिक बोला, 'चल चुड़ैल औरत जल्दी से सामने आजा।' उसने चिल्लाकर दो तीन आवाज और दी।‘


तांत्रिक बाबा गुस्से में गया और उसने कहा, ‘देख मैं तीन तक गिनती बोलूंगा तीन तक की गिनती में तू मेरे सामने आ जाना वरना तेरा बहुत बुरा हाल करूंगा।‘   

उसने गिनती बोलना शुरू किया, ‘एक....दो.....’ 


वह तीन बोलने वाला ही था की सत्येंद्र अंदर से हांफता हुआ उसके सामने आ गया।


सत्येंद्र चिल्लाने लगा, 'नहीं ....नहीं....नहीं, मुझे मत पकड़ो, तुम बहुत बुरी तरह मारते हो।'


तांत्रिक इस पर गुस्सा करते हुए बोला, 'तुझे कितनी बार पकड़कर समझाया की लोगों को परेशान करना छोड़ दे मगर तू समझती ही नही है, अब तो तुझे जिन्नों के देश में ही भेजना पड़ेगा।'


सत्येंद्र के मुंह से वो औरत बोल रही थी, 'बाबा अब आखिरी बार मुझे छोड़ दो अब मैं कभी किसी को परेशान नहीं करूंगी।'


तांत्रिक बाबा ने कहा, 'नहीं तेरा प्रतिशोध कभी का खत्म हो चुका है फिर भी तू निर्दोष लोगों को परेशान कर रही है। तुझे कई बार समझा दिया मगर तू समझ ही नही रही है। तुझे सबक सिखाना ही पड़ेगा।'


तांत्रिक बाबा ने सत्येंद्र के बाल पकड़कर उसके मुंह को तेजी से घुमाया। उसके ऊपर उसने दो दिन बार भभूति डाली। दोनों में थोड़ी कुश्ती होने लगी। वह भूतनी तांत्रिक बाबा के चंगुल से निकलने की बराबर चेष्टा कर रही थी। थोड़ी देर बाद तांत्रिक बाबा के हाथ में उसके सिर के कुछ बाल आ गए। तांत्रिक ने उन बालों को झट से सामने पड़ी बोतल में डालकर उसका मुंह बहुत टाइट बंद कर दिया। उसके बालों को बोतल में बंद करते ही सत्येंद्र धीरे धीरे नॉर्मल होने लगा। अब सत्येंद्र सामान्य व्यवहार करने लगा था। 


तांत्रिक बोला, 'देख लो, मैंने उस भूतनी को पकड़कर अपने वश में कर लिया है और इस बोतल में बंद कर दिवा है।'


तांत्रिक बाबा वह बोतल सत्येंद्र के पिता को देने लगा।


तांत्रिक बाबा ने सत्येंद्र के पिता से कहा, 'इसे सावधानी से ले जाकर दूर दूसरे शहर के किसी कुएं में  सूरज उगने से पहले फेंक देना और ध्यान रहे इसका मुंह किसी भी हालत में नहीं खुलना चाहिए अन्यथा वह फिर उसके शरीर में घुस जायेगी।'


सत्येंद्र के पिता घबरा गये और उन्होंने बोतल को हाथ में लेने से मना कर दिया और तांत्रिक बाबा को ही बोतल ले जाकर दूसरे शहर में कहीं दूर कुएं में फेंकने को कहा।


तांत्रिक बाबा ने कहा, 'देखो, इसे किसी दूसरे शहर जाकर छोड़ना पड़ेगा वरना वह वापिस यहां आ जाएगी। उसका अलग खर्च लगेगा।'


तांत्रिक बाबा उनसे कुछ रुपये लेकर अपनी पोटली में उस बोतल को रखकर वहां से चला गया। फिर कभी वो भूतनी सत्येंद्र के पास कभी नहीं फटकी इस तरह उस तांत्रिक बाबा ने सत्येंद्र को भूतनी से छुड़ाया।


बाली ने कहा, 'चूंकि सतीश और सत्येंद्र दोनों ही मेरे दोस्त हैं इसलिए मैं उस तांत्रिक के बारे में जानता हूं। मैं उनको लेकर अभी उसी बाबा के पास जा रहा हूँ।'


दादा जी भी अपने दोस्तों से मिलकर वापिस आ रहे थे। बाली ने दादाजी को आता देखा तो तुरंत चुपचाप पीछे की गली से तांत्रिक को बुलाने चला गया।


दादा जी ने आते ही बाली के बारे में पूछा, 'क्या बाली अभी तक उस तांत्रिक को बुलाकर नही लाया।'


राजा ने कहा, 'वो बस अभी गया है।'


दादा जी घर के अंदर खाना खाने चले गये।


नरेंद्र बिहारी ने कहा, 'मेरे साथ भी भूतनी का एक किस्सा हो चुका है।'


दीनू नरेंद्र बिहारी के पास ही खड़ा था। वो ड़रकर अपने बड़े भाई गोपाल साहब के पास आ गया। मगर दीनू को किस्सा सुनने की इच्छा भी हो रही थी। 


दीनू ने बोला,  'नरेंद्र भाई साहब आप भी तो अपनी आप बीती सुनाओ।'


नरेंद्र बिहारी ने कहा, 'हमारा एक घर फॉयसागर रोड पर भी है। बहुत दिनों पहले की बात है एक दिन उस घर से रात में कायस्थ मौहल्ले वाले घर के लिए साईकिल पर रवाना हुआ। मैं चामुंडा माता वाले रास्ते से आ रहा था। दूर दूर तक कोई नही दिख रहा था। मैं खाना खाकर आ रहा था इसलिए थोड़ी सुस्ती भी आ रही थी। मैं थोड़ा आगे आया तो मुझे एक अधेड़ उम्र की औरत दिखी वो अकेली जा रही थी। मैं सोचने लगा इतनी रात ये बेचारी औरत ना जाने कौन है? मैं उस औरत के पास से निकला तो उसने मुझे आवाज देकर रोका।'


औरत ने कहा, 'भैया, जरा रुको। मैं अकेली हूं मुझे बहुत ड़र लग रहा है। मेरा घर ऋषि घाटी के पास है, क्या आप मुझे वहां तक छोड़ दोगे।'


मैंने उस औरत से कहा, 'मगर तुम इतनी रात में अकेली कहाँ से आ रही हो?'


उस औरत ने कहा, 'मैं यहां किसी शादी में काम करने आयी थी। मेरा काम पूरा होने के बाद मुझे घर छोड़ने को कोई तैयार नही हुआ इसलिये मैं अकेली ही घर के लिए रवाना हो गयी। मैं काम पर वैसे ही थक गयी और यहां से घर भी दूर है वहां तक पहुंचते पहुंचते बहुत थक जाऊंगी। अगर आप मुझे घर तक छोड़ देंगे तो आपकी मेहरबानी होगी।'


नरेंद्र बिहारी ने सोचा ऋषि घाटी इस घर के रास्ते में तो पड़ती ही है इसलिए उस अकेली औरत पर उसे दया आ गयी और उसे  उसके घर तक छोड़ने को वह तैयार हो गया। उसने उस औरत को अपनी साईकिल पर बैठा लिया। वे थोड़ी ही दूर पहुंचे थे कि उसे हवा में कुछ अजीब सी गर्मी और सरसराहट का अहसास होने लगा। 


ऐसा लग रहा था वो मुझ अनजान के साथ बैठकर परेशान हो रही थी तथा उसकी साँस तेज चलने लगी थी और वो लंबी सांसें ले रही थी।


मैंने कहा, 'आप घबराओं मत, मैं गलत आदमी नहीं हूँ। मुझ पर भरोसा रखो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगा।'


उसने कहा, 'भैया आजकल किसी पर भरोसा नहीं होता। आजकल जमाना खराब है किस पर भरोसा करूं? मैं गरीब पहले ही भुगतभोगी हूं। सब मुझे गलत नजरों से देखते हैं। आखिर गरीब हूं कहाँ जाऊं और कोई दूसरा काम मिलता भी तो नहीं है।' और वो मेरी पीठ पर सिर रखकर फूट फूट कर रोने लगी।‘


मैंने उसे सांत्वना देते हुए कहा, 'घबराओ मत, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।‘ और साईकिल का बेलेंस बिगड़ जाने से साईकिल से उतर गया।


वो मेरे साथ पैदल चलते हुए बोली, ‘मेरा काम ही शादी ब्याह में हलवाई के साथ काम करने का है इसलिए मुझे अक्सर रात में देर हो जाती है और कई बार मुझे मुसीबत का सामना करना पड़ता है।' और वो मेरा हाथ पकड़कर फूट फूट कर रोने लगी।


उसने अपना सिर मेरी बाँहों पर रख दिया और मेरा हाथ अपनी बाँहों में ले लिया। मेरी बांहें उसके आंसुओं से भर गयी। मेरी बाँहों में गर्म पानी बहने जैसा अहसास हुआ।


वो रोते हुए बोली, 'कोई और काम हो तो आप दिला दो इस पापी पेट का सवाल है।‘


मेरी बाँहों में अपना हाथ डालते ही मेरे शरीर में गुदगुदी मचने लगी और उसके शरीर से एक अजीब सी महक उठने लगी और मैं पागल सा हो गया। थोड़ी दूर तक हम ऐसे ही चलते रहे।


उसने कहा, 'बाबू जी कहीं आपकी नियत तो खराब नहीं हो रही है। मुझे कुछ अहसास हो रहा है। हम औरतें आदमी की नियत जल्दी से पहचान जाती हैं।’ 


मैं घबरा गया मैंने उसके हाथ को छिटकते हुए कहा, 'नहीं आपको गलतफहमी हो रही है।’


फिर मैंने वापिस उसे साईकिल पर बैठा लिया मगर वो मुझे साईकिल के आगे डंडे पर बैठने की जिद करने लगी। वह इतराकर बोल रही थी बाबू आगे बैठा लो ना। 


वह कहने लगी, ‘मुझे आपसे तो कोई ड़र नहीं है मगर मुझे पीछे बैठने में डर लगता है। अगर कोई मुझे पीछे से खीच कर ले गया तो?’ 


नरेंद्र बिहारी ने कहा, ‘अब मुझे लगने लगा था की यह बदचलन औरत है और अपने जाल में फंसाकर मुझे लूटना चाहती है।‘


मैंने उसे साईकिल पर आगे बैठाने से मना कर दिया। मैं साईकिल पर बैठकर पैडल मारने लगा। वो समझ गयी थी की उसका शिकार हाथ से निकल रहा है।

  

वो बोली, ‘अरे भैया आप तो ख्वामख्वाह ही नाराज हो गए।‘


मैंने कहा, 'मैं नाराज नहीं हो रहा हूं। मैं किसी को आगे डंडे पर बैठाकर साईकिल नहीं चला सकता।‘


मैं साईकिल चलाने लगा और वह पीछे की सीट पर बैठ गयी। उसने मुझे नहीं छोड़ा और वो मेरी कमर में हाथ डालकर बैठ गयी। मैं भी उसके नशे में अपना होश खोने लगा था। 


नरेंद्र बिहारी ने आगे बताया, ‘अभी वे फॉयसागर रोड पर श्मशान के नजदीक पहुंचने वाले ही थे की मुझे उसमें से अजीब सी गंध आने लगी और वो उतावली सी दिखने लगी। उस औरत ने अचानक मुझे रुकने को कहा।‘ उसने साईकिल वहीं रोक ली। 


वो औरत साईकिल से नीचे उतर गयी। 


उस औरत ने इतराकर और मासूमियत से कहा, 'वह साईकिल के पीछे बैठे बैठे थक गयी है। आओ थोड़ी देर सामने दुकान के बरामदे मेँ आराम कर लेते हैं फिर चलेंगे।'


वह औरत श्मशान के पास बंद दुकान पर आराम करने जाने लगी। 


नरेंद्र बिहारी ने आगे बताया, 'मैंने भी साईकिल उन दुकानों की तरफ मोड़ ली। जैसे ही वह औरत श्मशान के पास वाली दुकान की तरफ जाने के लिये थोड़ी आगे बड़ी तो अचानक मेरी नजर उसके पांव पर पड़ी। मैंने देखा कि उस औरत के पांव के पंजे पीछे की तरफ मुड़े हुए और नुकीले थे।‘


नरेंद्र बिहारी ने आगे बताया, 'मुझे काटो तो खून नहीं। मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। मेरी तो उस समय सांसें ही रुक गयी। वो औरत मुस्कराते हुए उसे अपने पास आराम करने बुला रही थी। मगर अब मेरे समझ में आ गया था कि जरूर यह कोई भूतनी है और वह मुझे अपने चंगुल में फंसा रही है। मेरी सांसें बहुत तेज चलने लगी थी।‘ 


नरेंद्र बिहारी ने आगे कहा, ‘मैं अपने आपको उसके शिकंजे में फंसा हुआ और असहाय महसूस कर रहा था। मुझे लग रहा था की अब मेरा बचना बहुत मुश्किल है। मैंने तुरंत हनुमान जी और अपने घर के पितरों को याद किया। मैं हड़बड़ाहट में अपनी साईकिल पर बैठकर भागना चाह रहा था मगर घबराहट के कारण साईकिल पर बैठ ही नहीं पा रहा था और वहीं गिर गया। मैं ड़र के मारे बुरी तरह कांपने लगा। वो औरत वापिस मेरी तरफ भागकर आने लगी।'


नरेंद्र बिहारी ने आगे बताया, ‘वो औरत लगभग मेरे नजदीक आ गयी थी और मेरी साईकिल का केरियर पकड़कर मेरे हाथ को अपने हाथ में लेने लगी। उसी समय एक भीनी भीनी खुशबु वातावरण में चारों और फैल गयी। शायद यह उस भूतनी की चाल होगी। मैं फिर मदहोश होने लगा मगर मैंने तुरंत अपने आपको संभाला और उसी समय हनुमान जी का मनन किया और हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा जिससे मेरे में कुछ शक्ति आयी। मैंने साईकिल को जोर से झटका दिया जिससे साईकिल के केरियर पर से उसका हाथ छूट गया। मैंने तुरंत साईकिल उठायी और साईकिल पर बैठकर उस पर तेजी से पैडल मारने लगा मगर थोड़ी चढ़ाई होने के कारण मैं साईकिल पर बेलेंस नहीं बना पा रहा था।‘ 


वो औरत समझ गयी थी की उसका शिकार उसके हाथ से निकल रहा है। वह मुझे जाने देने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती थी। वह उसकी साईकिल के पीछे दौड़ने लगी और बनावटी रोते हुए सहानुभूति बटोरने के लिए अंतिम प्रयास में मासूम चेहरा बनाकर जोर जोर से रोने लगी। वह मुझे बातों में फंसा रही थी।


वह मासूम बनकर बोली, 'भैया, जरा रुको, मुझे अकेला सुनसान जगह पर अकेला मत छोड़ो। अगर तुम नहीं चाहते हो तो यहां आराम नहीं करेंगे। मुझे बस थोड़ा सा आगे छोड़ देना फिर  मैं अकेली चली जाऊंगी। एक अकेली औरत पर इतनी तो दया करो।‘


उसकी मासूम आवाज सुनकर एक बार तो मेरा मन पसीज गया मैं एक बार तो ठिठक गया था। चूँकि वह एक भूतनी थी इसलिए वह धीरे धीरे अपने असली रूप में आ रही थी। उसने तभी श्मशान की तरफ देखकर किसी को आवाज दी।  


नरेंद्र बिहारी ने आगे कहा, ‘अचानक मेरी नजर श्मशान के दरवाजे की तरफ गयी जिस तरफ उस औरत ने आवाज लगायी थी। वहां एक बहुत भयानक शरीर वाला बिलकुल काले रंग का  आदमी खड़ा दिखायी दिया। वो काला भसंड आदमी श्मशान का दरवाजा खोलकर खड़ा था। ऐसा लग रहा था मानो वह मेरा और उस औरत का इंतजार कर रहा हो। वो आदमी वास्तव में भूत था। उस औरत की आवाज सुनकर वह काला भूत मुझे पकड़ने के लिए मेरे पीछे दौड़ा।‘

 

नरेंद्र बिहारी ने आगे बताया, ‘उसके हाथ बहुत लंबे होते जा रहे थे तथा वो उसकी साईकिल को पीछे से पकड़ने वाला ही था की अचानक वह भूत झटका खाकर नीचे गिर गया और आगे बढ़ ना पाया। वह बार बार मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहा था मगर वो बार बार नीचे गिर रहा था। मैं कुछ समझ नहीं पाया। मैं तब तक ऋषि घाटी वाले बाला जी मंदिर के नजदीक पहुंच गया था।‘


नरेंद्र बिहारी का गला किस्सा सुनाते सुनाते रुंध गया और उनकी आँखों में आँसू आ गये। गोपाल साहब ने उसे ढाँढ़स बंधाया और कहा, ‘तू ही तो हम दोस्तों में सबसे ज्यादा बहादुर है।‘


गोपाल साहब ने दीनू को भेजकर पानी का गिलास मंगाया और नरेंद्र बिहारी को पीने को दिया।


नरेंद्र बिहारी ने आगे कहा, ‘भूतनी ने अपनी पूरी चाल चली। अचानक मेरे आगे से एक ड़रावनी मोटी काली बिल्ली रास्ता काट गयी। अब मुझे काटो तो खून नहीं। एक क्षण के लिए तो में रुका क्योंकि बिल्ली का रास्ता काटना शुभ नहीं होता मगर दूसरे ही क्षण मौत को अपने बहुत नजदीक देखा। साक्षात् मौत को अपने सामने देखकर मैं बिल्ली के रास्ता काटने वाली बात को भूल गया और बालाजी का स्मरण करते हुए अपनी जान बचाने बालाजी के मंदिर की तरफ गिरता पड़ता भागा।‘ 


नरेंद्र बिहारी ने आगे कहा, ‘बाला जी के मंदिर की सीढ़ी पर मैंने एक अद्भुत नजारा देखा। तुम लोग विश्वास नहीं करोगे, मैंने साक्षात् हनुमान जी को सीढ़ी पर हाथ में गदा लिए देखा। वे मेरे पीछे पड़े भूत भूतनी को देखकर क्रोधित हो रहे थे। उन्ही की शक्ति से वो भूत मुझे पकड़ते समय गश खाकर बार बार गिर रहा था। वह भूतनी अब अच्छी तरह समझ गयी थी की ये लड़का अब मेरे वश में नहीं आने वाला। वो भूतनी पीछे से आवाज दे रही थी मगर मैंने उसकी एक भी नहीं सुनी।

 

वे भूत भूतनी बाला जी के मंदिर तक नहीं आ पाए। मुझे अहसास हुआ की भूत भूतनी की सीमा पहले ही खत्म हो गयी थी अचानक उन दोनों के गिड़गिड़ाने की आवाज आने लगी। मैंने मुड़कर देखा की भूत और भूतनी बिलकुल उसके पास तक पहुंच गए थे मगर वे उसे पकड़ नहीं पा रहे थे। मैंने देखा वो मंदिर की सीमा से पहले हनुमान जी से रहम की भीख मांग रहे थे और उनके हाथ जोड़ते हुए उन्हें क्षमा करने की प्रार्थना कर रहे थे।  

 

नरेंद्र बिहारी ने बताया की वह लगातार हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था। घाटी वाले बाला जी के मंदिर की सीमा में आ गया था इसलिए हनुमान जी ने खुद आकर उसकी रक्षा की। उसने उस भूत और भूतनी पर नजर मारी उन दोनों के लंबे और तीखे दांत मुंह से बाहर निकल रहे थे। 


नरेंद्र बिहारी ने कहा, ‘उस दिन तो भूत और भूतनी से हनुमान जी ने बचाया वरना वो मुझे खीचकर ले जाते और आज मैं तुम्हारे सामने नहीं होता।‘ इतना कहते हुए नरेंद्र बिहारी के आँखों आँसू निकल पड़े।


नरेंद्र बिहारी ने बताया, ‘हनुमान जी ने इशारे से उसे ऋषि घाटी की तरफ आगे जाने को कहा। मुझे लग रहा था हनुमान जी मेरी रक्षा करने के लिए मेरे पीछे पीछे चल रहे थे। मुझे बीजासन माता के मंदिर तक उनका मेरे साथ होने का अहसास हो रहा था उसके बाद वे अंतर्ध्यान हो गए।‘ 


पूरे रास्ते भर मैंने कहीं पीछे मुड़कर नही देखा और सीधे घर आकर अपने कमरे में जाकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और अपने बिस्तर पर औंधे मुंह गिर गया। इस तरह बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको उस भूतनी के चंगुल से बचाया। फिर वह कभी रात में उस रास्ते से नही आया।' 


नरेंद्र बिहारी ने आगे कहा, ‘उसके बाद से मैं रोज हनुमान चालीसा का पाठ करता हूं और जब भी कभी अपने को मुसीबत से घिरा हुआ पाता हूं तो हनुमान जी को याद करता हूं वो तुरंत आकर मेरे सारे कष्ट मिटा देते हैं।‘


दीनू सारा किस्सा सुनकर घबरा गया। वह तुरंत अपने बड़े भाई गोपाल साहब के पास चला गया। हकीकत में सभी डरे हुए थे और सबकी घिघ्घी बंध गयी थी।


नरेंद्र बिहारी ने अपनी सच्ची घटना पूरी की ही थी तभी दादा जी वहां आ गये।


दादा जी ने पूछा, 'बाली अभी तक नही आया?'


राजा ने कहा, 'वो अपने दोस्त सतीश और सत्येंद्र के घर जाकर उनको लेकर जायेंगे क्योंकि वे ही लोग उस तांत्रिक बाबा को अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए थोड़ा समय तो लगेगा ही।'


दादा जी ने गुस्से में बेंत को हवा में उठाते हुए कहा, ‘अब तक नहीं आया तो क्या वो अब रात में आएगा।’


फिर दादा जी ने पूछा, 'तुम लोगों ने खाना खा लिया?'


सब बच्चों ने ना में जवाब दिया। दादा जी ने सब को डांटकर खाना खाने अंदर भेज दिया।


बाली पहले सत्येंद्र और सतीश के घर गया और उन्हें चोगे वाले भूत और घुँघरू वाली भूतनी की सारी बात बतायी और उस तांत्रिक बाबा के यहां उसके साथ चलने को कहा।


पहले तो सत्येंद्र और सतीश तैयार नही हुए। फिर सत्येंद्र ने कहा, 'तुम सतीश को ले जाओ, मुझे देखकर तांत्रिक बाबा कुछ और ज्यादा डिमांड करने लगेगा।' सतीश बाली के साथ जाने को तैयार हो गया।


बाली और सतीश दोनों उस तांत्रिक बाबा के पास चले गए। तांत्रिक बाबा तारागढ़ की पहाड़ी की तलहटी पर अपनी तंत्र साधना करता था। वे दोनों उसके वहां पहुंचे। बाली ने सारी कहानी सुनायी। तांत्रिक बाबा साथ चलने को तैयार हो गये।


तांत्रिक बाबा ने पूछा, 'चलो बालक किधर चलना है।'


बाली ने कहा, 'कायस्थ मौहल्ले में बीजासन माता का चौक है वहां।' 


तांत्रिक बाबा कायस्थ मौहल्ले का नाम सुनते ही बिदक गया।


उसने कहा, 'नही बालक हम वहां नहीं जा सकते।'


बाली ने पूछा, 'क्यों बाबा क्या हुआ?'


तांत्रिक बाबा ने कहा, 'हम उस एरिया में नहीं जायेंगे। वहां उच्ची दादा रहता है। वह बहुत खतरनाक गुंडा है और हमको परेशान करता है मुझे तो दूर से देखते ही मारने दौड़ता है और सारे पैसे छिन लेता है।' 


बाली ने कहा, 'ऐसा क्यों है? तुम उच्ची दादा को कैसे जानते हो?'


तांत्रिक बाबा ने कहा, 'अब मुझे ये सब बताना जरूरी नहीं है। बस मैं नहीं जाऊंगा।'


बाली ने कहा, 'आपको मेरे साथ चलना हीं होगा।'


तांत्रिक बाबा ने कहा, 'मैंने एक बार तुम्हें मना कर दिया ना? तुम कोई दूसरा तांत्रिक ढूंढ़ लो, यहां आस पास बहुत से तांत्रिक है।'


बाली ने कहा, 'नहीं बाबा आपको मेरे साथ चलना ही होगा वरना मैं उच्ची दादा को बुलाकर ले आऊंगा।'


तांत्रिक बाबा घबरा गया और बोला, 'अरे बालक नाराज मत हो।’


तांत्रिक बाबा ने अपने चेले की तरफ इशारा करके कहा, ‘वैसे भी पहले मैं अपने चेले को भेजता हूं जब उसके बस में नहीं होता तब मैं जाता हूं। मैं अपने चेले को तुम्हारे साथ भेजता हूं वह भी पहुंचा हुआ तांत्रिक है अगर इसके वश में नहीं आया तो कल फिर मैं आऊंगा।'


तांत्रिक बाबा ने अपने चेले को बाली से मिलाया। उस तांत्रिक बाबा के चेले ने बाली से मौहल्ले का पता लिया और थोड़ी देर में वहां पहुंचने को कहा।


बाली बहुत देर तक घर नहीं पहुंचा था। बीना ने बच्चों से चुपचाप कहा, ‘चलो अभी दिन में छत पर चलकर देखते हैं कहीं अभी भूत तो नही है।‘


सबने एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया और छत पर चले गए। सभी ने पीपल के पेड़ पर नजर मारी जहां रात में भूत को देखा था। मगर उन्हें कहीं भूत दिखायी नहीं दिया। पीपल के पेड़ के पीछे एक सुनसान खाली खंडरनुमा हवेली थी। उन्हें लगा भूत दिन में उस खंडर हवेली में छुप जाता होगा। सबने उस हवेली पर नजर मारी मगर उन्हें वहां भी भूत दिखायी नहीं दिया। एक बच्चे ने मजाक में कहा अरे वो रहा बस इतना सुनते ही सब बच्चे बुरी तरह ड़र गये और भागकर छत से नीचे आ गये।


उस दिन सब तांत्रिक बाबा का इन्तजार करते रहे मगर तांत्रिक बाबा नहीं आया। रात आठ बजे उस बाबा द्वारा भेजा एक  दूसरा चेला आया और उसने बताया की कोई जरूरी काम हो जाने के कारण तांत्रिक बाबा नहीं आ पाये अब वो कल आएंगे। उस चेले ने उस जगह की मिटटी हाथ में लेकर सूंघी और सूंघकर बोला सचमुच यहां तो भूतों का वास है और वापिस चला गया। भूतों के वास की बात सुनकर सभी लोग ड़र गये। 


पास ही के राजोरिया मौहल्ले में निर्मला दीदी और बच्चों की छोटी बुआ चन्दो बुआ रहती थी। उनके बच्चे मिथलेश, कम्मा, सर्वेश, डॉली, दिलीप और अनिल सभी ने आधी रात को किसी के घुँघरू बांधकर नाचने की कई बार आवाज सुनी थी। जब उन्हें पता लगा कि नांदेरे के पास ही पीपल के पेड़ पर वह भूत रहता है और उससे मिलने रोज आधी रात में भूतनी छम छम करती हुई जाती है। चन्दो बुआ के सब बच्चे ड़र के मारे अपने नाना जी और बसंतीलाल मामा जी से जो जैसलमेर से आये हुए थे उनसे मिलने भी नहीं गये और ड़र के मारे उन्होंने नांदेरे आना जाना भी बंद कर दिया।

 
राजोरिया मौहल्ले में ही राजा का दोस्त राकेश रहता था। उसने भी बताया कि उसने भी किसी औरत की आधी रात के बाद घुँघरू बांधकर नाचने की आवाज सुनी है। 


राकेश ने कहा, ‘अमावस होने के कारण काफी अँधेरी रात थी वह उसको अच्छी तरह देख नहीं पाया मगर रंगीलाल जी की छत पर उसने घुँघरू पहनकर किसी के नाचने की आवाज सुनी थी। थोड़ी देर तक तो वह आवाज आ रही थी फिर अचानक आवाज बंद हो गयी शायद उसने मुझे देख लिया था इसलिए उसने नाचना बंद कर दिया। पहले तो मैंने थोड़ी देर उसे देखने की कोशिश की मगर जब वह नाचने वाली औरत नही दिखी तो मैं ड़र गया और नीचे कमरे में भाग आया।‘


राजोरिया मौहल्ले में ही रहने वाले राजा के दूसरे दोस्त अनिल ने भी आधी रात में घुँघरू पहनकर किसी औरत के नाचने की आवाज सुनी थी। 


अनिल ने कहा, 'ये करीब एक डेढ़ बजे की बात होगी मैं नींद में था। अचानक उसे घुंघरू पहने किसी औरत के चलने की आवाज आयी। आवाज पास से ही कहीं से आ रही थी। मैंने उसे जोर से आवाज भी दी थी कि कौन है? सामने आओ। इतनी रात में क्यों नाच रही हो।'


अनिल ने बताया कि उसने तुरंत नाचना बंद कर दिया फिर उसे बाद में आवाज नही आयी और वो ड़र के मारे नीचे जाकर सो गया।


वहीं के रहने वाले गोपाल लाल ने कहा, ‘दो दिन पहले मैं एक दोस्त की बहिन की शादी से आ रहा था। मुझे रात को थोड़ी देर हो गयी थी। पुरानी मंडी से अंदर मौहल्ले की तरफ घुसा ही था कि मुझे किसी के नाचने की आवाज आयी। इतनी रात को कौन घुंघरू पहनकर नाचेगा मैं भी एक बार तो चौंक गया। अंधेरी रात थी मुझे नयी जगह वाली बिल्डिंग से रंगीलाल जी के घर की तरफ घुँघरू पहने किसी के भागते हुए जाने की आवाज आयी। कुछ कुत्ते उस पर भौंकने लगे। मैं भी उसे देखने रंगीलाल जी के घर की तरफ मुड़ा ही था कि वहां एक काले रंग की गाय बैठी थी जिस पर मेरा ध्यान नहीं गया और मैं उससे टकराकर गिर गया और पांव में चोट भी आयी। वो रंगीलाल जी के मकान की तरफ जाती हुई गायब हो गयी।‘


बसंतीलाल चाचा जी को दूसरे दिन वापिस जैसलमेर जाना जरूरी था क्योंकि वो पंचायत समिति सम के ब्लॉक विकास अधिकारी थे और पंचायत समिति सम बॉर्डर इलाका होने के कारण उनका हेड क़्वार्टर  पर रहना जरूरी था। सब बच्चे उनसे लिपट गये और उन्हें नहीं जाने के लिए विनती करने लगे। सभी को डरा हुआ देखकर उन्होंने अपनी छुट्टियां बढ़ा दी। सब बच्चे खुश हो गये। 


दिन भर तो सब कुछ सही रहता मगर शाम होते ही सब बच्चे ड़रकर कांपने लग जाते। चाचा जी ने सबको समझाया की मैं यहीं हूँ अब किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। वैसे भी तांत्रिक बाबा कल आ ही जायेंगे और भूत और भूतनी दोनों को अपने वश में कर लेंगे।


शाम होते ही मौहल्ले के सब बच्चे अपनी अपनी छतों पर चढ़ गए। बच्चों का ध्यान बार बार पेड़ की तरफ जा रहा था। धीरे-धीरे रात का साया बढ़ता गया। सब बच्चे बातें करते करते सो गए।


रात को करीब दो बजे होंगे। बीना और नीलू दोनों को नींद नहीं आ रही थी। वे चाचा जी के ड़र से चुपचाप धीरे धीरे बातें कर रहे थे। उन्हें अचानक घुँघरू पहनकर किसी के नाचने की आवाज सुनायी देने लगी। उन्हें ऐसा लगा की कोई नाचता हुआ उनके नजदीक आता जा रहा था। अचानक इतनी रात में नाचने की आवाज आने से वे डरकर उठकर बैठ गई। दूर से उन्हें अपने घर से दो तीन घर छोड़कर एक छत पर घुंघरू बजते हुए सुनायी दिए। 


इतने में चाचा जी भी उठ गए थे। उन्होंने भी घुंघरू बजने की आवाज सुनी जो दो चार मकान दूर से आ रही थी। घुँघरू लगातार अपनी लय में बज रहा था। सब उठकर घबराकर नीचे की तरफ भागे। भागतें दौड़ते बीना की नजर पेड़ पर गयी। उसने देखा भूत चोगा पहने पेड़ की ऊपरी शाखा से नीचे उतर रहा था। वो शायद भूतनी से मिलने नीचे आ रहा था। दो चार मकान बाद एक छत पर शायद भूतनी ही घूंघरू पहनकर नाच रही थी और भूत का इंतजार कर रही थी। ये सोचकर सब बच्चे ड़र गये और जाकर दादा-दादी, मम्मी और चाचा-चाची से लिपट गये और तेज तेज रोने लगे। 


दादा जी ने पूछा, ‘क्या हुआ, तुम सब इतने घबराये हुए क्यों हो?’


सबकी जुबान पर जैसे ताला लग गया था।


बड़ी मुश्किल से नीता ने सांस भरते हुए कहा, ‘वो... वो.. पेड़ पर हमें भूत दिखा। वो हमारी तरफ ही देख रहा था। और हमने भूत को पेड़ से नीचे उतरते हुए देखा। उधर भूतनी घुँघरू पहनकर दो चार घर छोड़कर एक छत पर नाच रही थी।‘


चाचा जी ने अपने कैमरे से चुपचाप उस भूत और भूतनी की फोटो खीच ली थी।


सुबह होते ही मौहल्ले में भूत भूतनी की चर्चा होने लगी। सब रात को पीपल के पेड़ पर भूत और पडौस के मकान की छत पर भूतनी के नाचने की आवाज सुनने की चर्चा करने लगे। आस पास के मौहल्लों में भी ये बात आग की तरह फैल गयी।


चाचा जी ने कहा, ‘एक बात तो है लगता है पीपल के पेड़ पर भूत तो है मगर लगता है वह अच्छा भूत है जो किसी को परेशान नहीं करता। मैंने रात में पेड़ से उतर रहे भूत की और पडौस के मकान पर नाच रही भूतनी की फोटो खीच ली थी। अंधेरे में फोटो साफ आयी या नहीं ये तो स्टूडियो से फोटो प्रिंट करवाने पर ही मालूम पड़ेगा।‘


अब तो सारे गली मौहल्ले में भूत और भूतनी की तरह तरह की अफवाह फैलने लगी। मौहल्ले के बदमाश लड़के हिम्मत करके पीपल के पेड़ के नीचे जाकर भूत को देखने की कोशिश करते और पेड़ पर पत्थर फेंकते मगर कोई आहट होते ही ड़र के मारे सब भाग जाते। किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।


दादी जी ने कह दिया, ‘अब आज से कोई भी छत पर सोने नही जाएगा। बच्चों पर अगर भूत का साया पड़ गया तो मुश्किल हो जाएगी।‘


दिन को पडौसी सुभाष, गणेश, पप्पू, गोपाल स्वरूप, बहादुर, जगदीश, छुट्टन, नारायण और आर एन साहब के दोस्त विष्णु, कैलाश, भगवान और बन्ना सब दादाजी के पास उनकी बैठक में बैठकर भूत के बारे में बातें कर रहे थे। चाचा जी ने बताया की उन्होंने भूत भूतनी की फोटो खीची है। मगर अंधेरी रात होने के कारण हो सकता है शायद फोटुएं साफ नहीं आये। आज एक बार फिर फोटो खींचकर फिर रील डवलप कराऊंगा देखते हैं कौन से भूत भूतनी है।


उन्होंने फिर कहा देखो इतने दिन हो गये हैं मगर भूत भूतनी ने कभी किसी को परेशान तो नही किया। वे जरूर मनुष्य जन्म में अच्छे इंसान रहे होंगे।


मौहल्ले के सत्तू दादा ने कहा, ‘मैं रात में गिलोल लेकर आता हूँ और भूत को छिपकर गिलोल मारूंगा फिर देखेंगे भूत क्या करता है?’


नरेंद्र बिहारी ने कहा, ‘ऐसा मत करना भाई। हम उनको देख नही पाते हैं मगर उनको हमारा सब कुछ मालूम रहता है। जब उन्होंने आज तक हमें परेशान नहीं किया तो हम उनको परेशान करके आ बैल मुझे मार क्यों करें।‘


दादा जी ने भी सत्तू को फटकार दिया, ‘उन भूत भूतनी को छेड़ने की बिल्कुल कोशिश मत करना अगर उन्होंने देख लिया तो फिर किसी की भी खैर नही है।‘


थोड़ी देर में ही बाली एक तांत्रिक बाबा को लेकर दादा जी के पास आया। दादा जी ने बाली को उस तांत्रिक को पीपल के पेड़ के पास भूत वाली जगह दिखाने को कहा।


तांत्रिक बाबा पीपल के पेड़ के पास पहुंचा। उसने अपनी झोली खोली और कुछ मंत्र बोले मगर उसके मंत्र काम नहीं कर रहे थे। रात उस सुनसान खंडर हवेली की एक खिड़की से एक चिमगादड़ निकलकर दूर चली गयी। थोड़ी देर उसने कोशिश की मगर तांत्रिक का बस नहीं चला। उसने कहा वो भूत तो चिमगादड़ बनकर अभी उड़ गया।


वो घबरा गया और झोली उठाकर जाने लगा।


बाली ने पूछा, ‘क्या हुआ बाबा?’


तांत्रिक ने कहा, ‘ये भूत तो बहुत बलवान है। इसे वश में करना बहुत मुश्किल है और मेरे बस में तो बिल्कुल नहीं है।‘


बाली ने कहा, ‘मगर उसे वश में तो करना ही पड़ेगा।‘


तांत्रिक ने कहा, ‘मेरे गुरु बाबा को लाना पड़ेगा। कुछ मेरा मेहनताना मिल जाता तो अच्छा रहता।‘


बाली ने दादा जी की तरफ देखा। दादाजी समझ गए की तांत्रिक को पैसे देने हैं।


दादा जी ने कहा, ‘मगर काम तो तुमने पूरा नहीं किया। काम पूरा करो तो पैसा देंगे।‘


तांत्रिक ने कहा, ‘वह बहुत जिद्दी भूत है उसे तो मेरे उस्ताद जी ही वश में कर सकते हैं। उनकी

फीस एक हजार रुपए है। अगर आप लोग तैयार हैं तो पांच सौ रुपए एडवांस दे दो मैं अभी जाकर बुला लाता हूँ।‘


दादाजी ने पांच सौ रुपए देते हुए कहा, ‘जाओ तुम अपने गुरु को लेकर आ जाओ।‘


तांत्रिक चला गया। करीब एक घण्टे बाद वह अपने गुरु को लेकर वापिस आया। तांत्रिक अपने गुरु के साथ पीपल के पेड़ के पास पहुंचा। दोनों तांत्रिक अजीब सी हरकत करने लगे।


बाली ने घबराकर कहा, ‘क्या हुआ बाबा?’


गुरु तांत्रिक बाबा डमरू हाथ मे लिए बोला, ‘बहुत खतरनाक है ये भूत। वश में नहीं आ रहा।‘


नरेंद्र बिहारी ने कहा, ‘बाबा इसे वश में करना तो आपके ही बस का काम है।‘


तांत्रिक बाबा ने वापिस अपने मंत्र बोले। एक चिमगादड़ उड़ती हुई वापिस खिड़की से हवेली में चली गयी। अचानक उसने हवा में मुठ्ठी घुमाकर बंद कर दी। तांत्रिक बाबा बोला, ‘पकड़ लिया। आ गयी तेरी गर्दन मेरे हाथ में। अब बोल तू यहां क्यों आया था और इनको क्यों परेशान कर रहा है?’ 


तांत्रिक बाबा ने अपनी मुट्ठी और कसकर बंद कर दी और बोला , ‘बोल आएगा अब यहां? तुझे

तो अभी बोतल में बंद करके जमीन में गाड़ दूंगा।‘


ऐसा लग रहा था मानों वह अदृश्य शक्ति से बात कर रहा है। अचानक उसकी मुठ्ठी खुल गयी और तांत्रिक उठकर थोड़ी दूर भागा जैसे भूत उसके हाथों से छूटकर भाग रहा हो।


फिर तांत्रिक बाबा अपना सिर पकड़कर बोला, ‘मेरे पकड़ से छूटकर भाग गया।‘


उसके कहते ही सब घबरा गये। सब के माथे पर पसीने की लकीर खीच गयी। सब ने तांत्रिक बाबा से हाथ जोड़कर भूत को पकड़ने की प्रार्थना की।


तांत्रिक बाबा ने कहा, ‘अब वो आज तो हाथ नही आएगा। लेकिन मैंने उसके सिर से कुछ बाल तोड़ लिये हैं उससे अब वो तुम लोगों को परेशान नहीं करेगा। लेकिन उसको पकड़कर इस बोतल में डालने कल फिर आऊंगा। मैं यह बोतल पेड़ के नीचे छोड़कर जा रहा हूं। अपने स्थान पर जाकर तंत्र मंत्र से कोशिश करूँगा की उसके बालों के माध्यम से आज ही उससे बात हो जाये और अपनी गद्दी से ही इसको वश में करके बोतल में हमेशा के लिए बंद कर दूं।‘


उसने आगे सबको चेतावनी देते हुए बोला, ‘इस बोतल को कोई भी हाथ मत लगाना वरना ये भूत बोतल की जगह छूने वाले के शरीर में घुस जाएगा।‘


तांत्रिक बोला, ‘मुझे इसे वश में करने के लिये अपनी सिद्धि पीठ में साधना करनी पड़ेगी और साथ ही किसी की बलि चढ़ानी पड़ेगी।‘


दादा जी बोले, ‘किसकी बलि चढ़ानी पड़ेगी।‘


तांत्रिक बाबा बोला, ‘बस बलि के नाम से ही ड़र गये। एक बकरे की बलि देनी होगी।‘


दादा जी ने कहा, ‘मतलब अभी और भी कुछ खर्चा लगेगा?’


तांत्रिक बाबा बोला, ‘तुम्हारे लिए पैसा ज्यादा बड़ा है या भूत से छुटकारा?’


दादा जी बोले, ‘बता कितना खर्चा और लगेगा?’


तांत्रिक बाबा बोला, ‘कम से कम एक हजार रुपया और लगेगा।‘


दादाजी  बोले, ’यह तो बहुत ज्यादा है?’


तांत्रिक बाबा बोला, ‘अगर तुम्हें ज्यादा लग रहा है तो मैं चला जाता हूं किसी और को बुला लो।‘


वो कांच की अभिमंत्रित बोतल को अपने झोले में ड़ालने लगा। तभी नरेंद्र बिहारी और बाली ने दादा जी से कहा इसे रोक लो वरना अनर्थ हो जाएगा।


दादा जी ने कहा, ‘तांत्रिक बाबा अभी तक काम तो कुछ भी नहीं हुआ है। इन भूत भूतनी को तो पकड़ों तुम्हें साथ में ईनाम भी देंगे।‘


 दादाजी ने उसे दो सौ रुपए एडवांस दे दिये।


तांत्रिक बाबा ने कहा, ‘मैं तो अपनी पूरी कोशिश कर रहा हूं। उसको मैंने मंत्र बोलकर बुलाया था, वो चिमगादड़ बनकर हवेली में आया भी था यह तो तुम सभी ने देखा था। अभी भूत हाथ में आकर भी छुट गया। मैंने चारों तरफ धागे से उसका रास्ता बांध दिया है अब वो इस धागे से बनी रेखा पार नही कर पायेगा।‘ 


तांत्रिक बाबा ने आगे कहा, ‘मैंने यहां मंत्रित बोतल भी रख दी है या तो वो खुद चलकर इसमें आ जायेगा वरना बाद में इससे भी महंगा और पक्का इलाज करना पड़ेगा। हां इस बात का ध्यान रहे की इस तरफ कोई नहीं आये और कोई इस मंत्रित धागे से बनी लक्ष्मण रेखा और इस बोतल को नही छूए क्योंकि ये सब मंत्रों और तंत्रों से बंधी हैं इसे छूने पर भूत इस बोतल में ना आकर इसको छूने वाले के जिस्म में घुस जायेगा फिर उस भूत को उस आदमी के शरीर से निकालना बहुत मुश्किल होगा।‘ 


अपने निर्देश देकर तांत्रिक बाबा और उसका शिष्य दोनों चले गए।


थोड़ी देर तक सब बातें करके अपने अपने घर चले गये। शाम के बाद सब बच्चे दादा दादी के पास सो गये। चाचा जी, नरेंद्र बिहारी, नारायण, बहादुर, राजा के दोस्त स्वरूप, गणेश, मोहन और बाबू सब ने यह निर्णय लिया की आज रात को सब अपनी-अपनी छतों पर जाकर छुपकर उन भूत भूतनी को देखेंगे।


चाचा जी छत पर रमेश और गोपाल के साथ टहल रहे थे। शाम से ही हवा बंद थी। उस दिन गर्मी कुछ ज्यादा ही थी। नरेंद्र बिहारी, नारायण और बहादुर सभी अपनी अपनी छतों पर खड़े थे। रात के दो बजे तक कोई खास हलचल नहीं हुई। सबको लग रहा था की तांत्रिक बाबा ने उस भूत भूतनी को बांध दिया है इसीलिए वे अब नही दिख रहे हैं। सब लोग सोने चले गए। 


तभी रात ढ़ाई बजे बाद अचानक तेज हवा चलने लगी। थोड़ी देर में खंडर हवेली की छत पर रहस्यमयी घुँघरू की आवाज आने लगी। थोड़ी सी देर में सब वापिस घर की छतों पर आ गये।

कोई पेड़ से चोगा पहनकर नीचे की और उतर रहा था। नीचे खंडर हवेली की छत पर भूतनी घुँघरू पहनकर डांस कर रही थी। उंसकी डरावनी आँखें अंधेरे में बहुत तेज चमक रही थी।


सब एक दुसरे का हाथ पकड़कर उसे गौर से देखने लगे। उसकी आँखें देखने से ऐसा लग रहा था जैसे वो उन्हें ही देख रही है और उनकी तरफ आ रही है। भूत ने आज और भी लंबा चोगा पहन रखा था और पेड़ से धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था। चाचा जी ने चुपचाप भूत भूतनी की फोटो खीच ली। सबके सब भूत भूतनी को देखकर नीचे की तरफ भागे।


किसी को कुछ समझ नहीं आया। तांत्रिक बाबा ने तो इन्हें बाहर ना निकलने के लिये धागा भी बांधा था। इसका मतलब तांत्रिक बाबा का तंत्र मंत्र फेल हो गया। सब बुरी तरह घबराए हुए थे। रात भर सब हनुमान चालीसा और सुंदरकांड पढ़ते रहे। समय कटना मुश्किल हो गया था। अब चाचा जी, आर एन साहब और गोपाल को उनके छत पर भूतनी के नाचने और दौड़ने की आवाज आने लगी। बच्चे जागकर बुरी तरह रोने लगे।


सुबह सब डरे हुए थे। चाचा जी और चाची जी ने सब बच्चों को सुबह ननिहाल चले जाने को कहा। बच्चे ड़र के मारे अपने ननिहाल सिविल लाइंस जाने को तैयार हो गए। चाचा जी ने दादा जी दादी जी और मम्मी को जैसलमेर चलने को कहा।


दादा जी ने कहीं भी जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा, ‘जैसलमेर जाना समस्या का हल नहीं है बल्कि इस समस्या को यहीं रहकर दूर करना होगा।‘


चाचा जी की छुट्टियाँ भी खत्म हो रही थी वे भी जैसलमेर जाने की तैयारी करने लगे। चाचा जी भूत भूतनी के वश में नही आने से भी परेशान थे। चाचा जी सुबह दस बजे गणेश स्टूडियो पुरानी मंडी जो उनके पास के बाजार में ही था वहां गये और सारी फोटुएं डवलप करने को देकर आये। हालांकि रील में दस और फोटुएं खीचने जितनी रील बाकी थी।


उस जमाने में फोटुएं भी तीन चार दिन में धुलकर आती थी। गणेश स्टूडियो वाले खुद दुसरी जगह से फोटुएं निकलवाते थे। चाचा जी उसे इमरजेंसी में शाम तक फोटो देने के लिए कहा। उसने एक बार तो मना कर दिया मगर जब उसने भूत भूतनी की बातें सुनी तो उसे भी भूत की फोटो देखने की इच्छा हुई थी। शाम को चाचा जी गणेश स्टूडियो गये। उस समय तक फोटू नही आये थे इसलिए स्टूडियो वाले ने उनसे सुबह आने के लिए कहा। 


पडौसी गोपाल स्वरूप के पिता मानमल जी और शांति के पिता मोहन लाल जी दोनों पुलिस में रिपोर्ट करने गए। पुलिस वाले उनकी सारी कहानी सुनकर बोले कि वे इसमें क्या कर सकते हैं। हमारे हिसाब से कोई भूत भूतनी नहीं होते। हम पहले उस सुनसान खंडर हवेली को तलाशेंगे कहीं भूत के बहाने कोई वहां गलत कार्य तो नही कर रहा है।


मानमल जी ने कहा, ‘मतलब आज फिर हम सबको भूत की दहशियत में गुजारना पड़ेगा।‘ उन्होंने पुलिस वालों से जल्दी कार्यवाही करने की विनती की।‘


शाम को तांत्रिक बाबा वापिस आया और कुछ धूनी जलाकर थोड़ी सी जगह को अपने साथ

लाये पानी से धोकर उस जगह को अभिमंत्रित कर दिया और जो बोतल वहां रखकर गये थे

उसका ढक्कन बंद करके उसे अपनी झोली में रख लिया।


तांत्रिक बाबा बार बार उस भूत को बुला रहा था मगर वो भूत सामने नहीं आ रहा था।


तांत्रिक बाबा का चेला बोला, ‘आज रात भर मेरे गुरु मौन रहकर भूत को अपने वश में करेंगे और आपकी समस्या हमेशा के लिये खत्म हो जाएगी।‘


तांत्रिक बाबा के चेहरे पर तनाव और गुस्सा नजर आ रहा था और अपने साथ लोबान जलाकर उसमें बार बार फूंक मार रहा था। बाबा पसीने से लथपथ हो गया मगर भूत भूतनी उसके सामने ही नहीं आ रहे थे।


बाबा के चेले ने बाकी रुपए मांगे। दादा जी ने उसकी तय फीस के आधे रुपए उसे दे दिए और ऊपर से सौ रुपए इनाम के और दे दिए। बाबा खुश होकर आशीर्वाद देकर चला गया।


शाम के बाद पूरे मौहल्ले में भय का वातावरण उत्पन्न हो गया था।


दादा जी ने कहा, ‘चलो देखते हैं तांत्रिक बाबा का मंत्र आज काम करता है या नहीं। पुलिस वाले भी इतनी जल्दी कार्यवाही नहीं करेंगे और वो कार्यवाही भी भूत वूत के खिलाफ नही बल्कि कहीं कोई इसकी आड़ में गलत काम तो नही कर रहा है यही देखने आएंगे। भूत का पक्का इलाज हमें ही कराना होगा।‘


बसंतीलाल चाचा जी ने कहा, ’देखो मेरे हिसाब से कोई भूत वूत नहीं होता। जरूर दाल में कुछ काला है। हो सकता है कोई इस इलाके में भूत की दहशियत फैलाकर आसपास के मकान खाली करवाना चाहता हो या कोई अनैतिक कार्य करना चाहता हो ताकि ड़र के मारे कोई इधर नहीं आये।‘


मगर सबने कहा की हकीकत में भूत तो है। हम सब लोग रात में भूत को देख ही रहे हैं इससे

कौन मना कर सकता है?


सबके सामने बस यहीं प्रश्न था अब आगे क्या होगा? क्या भूतों का वास हमेशा ही यहां रहेगा?

अगर यहां भूतों का वास हो गया तो क्या हमें अपने घर खाली करके और कहीं जाना होगा। सबके जहन में यहीं प्रश्न था अब क्या करें?


मौहल्ले के कुछ लड़कों ने हिम्मत करके एक टोली बनायी और उस सुनसान हवेली के चारों तरफ दिन में भी नजरें गड़ा कर रखनी शुरू की ताकि अगर कोई अनैतिक गतिविधि चल रही हो तो मालूम हो जाये।


उस रात हवा बिल्कुल नहीं चल रही थी। पेड़ बिल्कुल स्थिर थे। ना घुँघरू वाली भूतनी वहां दिखायी दी और ना ही उसके घुँघरू की आवाज सुनायी दी। ऐसा लगा शायद उन्होंने मौहल्ले के लड़कों को वहां देख लिया इसलिए वे सामने नहीं आये या फिर तांत्रिक बाबा ने उनको बांध दिया इसलिये वो सामने नहीं आये।


वो रात पूरी तरह से शांति के साथ गुजर गई और इस तरह सुबह हो गयी। सुबह सब दादा जी के पास उनकी बैठक में बैठे थे सभी ने बताया आज किसी को भी भूत भूतनी नहीं दिखे। दादाजी ने खुशी जाहिर की।


थोड़ी देर बाद बसंतीलाल चाचा जी गणेश स्टूडियो जाकर फोटुएं लेकर आ गये। मगर फोटुओं में पेड़ के झुरमुट के बीच कुछ साफ नजर नहीं आ रहा था। चाचा जी उदास हो गये। उनकी सारी मेहनत बेकार हो गयी।


तभी नरेंद्र बिहारी ने कहा, ’चाचा जी मैंने सुना है भूत भूतनी फोटो में कैद नही होते हैं।‘


बसंतीलाल चाचा जी ने कहा, ‘मुझे लगता है अंधेरी रात होने के कारण फोटुएं साफ नहीं आयी। केवल भूत का पहना हुआ चोगा ही दिख रहा है और भूतनी की आँखें दिख रही है, बाकी उनका शरीर नहीं दिख रहा।‘


बसंतीलाल चाचा जी ने उन फोटुओं को बड़े साइज की करवाने की सोची। वे फोटुएं और नेगेटिव लेकर मार्टिडन ब्रिज के नजदीक प्रसिद्ध रवि स्टूडियो पर गये और उन्हें सारी बात बताई। चाचा जी ने उन्हें भूतों वाली फोटुओं के नेगेटिव दिये और उन्हें बड़े साइज की साइज फोटुएं निकालने को कहा। जिससे कुछ बड़ा दिख जाये और शायद उसमें भूत भूतनी का चेहरा दिख जाये। रवि स्टूडियो वाले ने उन्हें दूसरे दिन सुबह आने को कहा। चाचा जी ने उनसे विनती की कि आज शाम तक दे दें तो अच्छा रहेगा।


शाम को मौहल्ले के सब बच्चे अपनी अपनी छतों पर पतंगों और भगवान जी कबूतर बाज के

कबूतरों को देख कबूतर बाजी के मजे ले रहे थे।


शाम को बसंतीलाल चाचा जी रवि स्टूडियो से बड़ी फोटुएं लेकर आ गये। बसंती लाल चाचा जी ने सबको दादा जी की बैठक में बुला लिया। सबके आने के बाद उन्होंने बड़ी फोटूऐं निकाली। सब बैठकर देखने लगे थे। पहली बड़ी फोटू में घने पेड़ पर पत्तियों और शाखाओं की ओट पर एक लुंगी अटकी हुई थी। फोटू बिल्कुल साफ थी हर चीज साफ नजर आ रही थी मगर फोटू में कोई भूत नजर नहीं आया।


बसंतीलाल चाचा जी ने कहा, ‘बच्चों अब तुम लोगों को डरने की कोई जरूरत नही है। अब भूत की सारी पोल खुल चुकी है। मैं तो शुरू से ही कह रहा था की कोई भूत वूत नहीं होता। बस अमावस्या के आस पास के दिन चल रहे हैं इसलिये रात में ज्यादा अंधेरा होने से पेड़ पर कुछ साफ दिखायी नहीं दिया। देखो इस फोटू में पेड़ पर मोटी और छोटी शाखाएं और पत्तियों का झुरमुट साफ नजर आ रहा है जिसके बीच एक लुंगी अटकी हुई दिख रही है। इसी को हम भूत का चोगा समझ रहे थे। रात में हवा चलने पर यह उड़ती थी तो ऐसा लगता था जैसे भूत ने चोगा पहन रखा हो। अब ये सब बिल्कुल साफ नजर आ रहा है और ये साबित हो गया की यह किसी भूत का चोगा नहीं है।‘ 


बसंतीलाल चाचा जी ने आगे कहा, ‘हो सकता है कोई बंदर किसी की लुंगी उठाकर ले गया हो और लुंगी पेड़ के झुरमुट में फंस गई हो फिर बंदर उसे वहीं छोड़ गया हो। रात में जब भी तेज हवा चलती है तो ये लुंगी तेजी से हिलती थी जिससे चोगा पहने भूत का अहसास होता था। हवा रुकने पर ऐसा अहसास होता था जैसे भूत नीचे की तरफ उतर रहा है। जो पास में खंडर हवेली है उसमें दिन में भूत के रहने का शक और भी ज्यादा हो गया था।‘


सब बच्चों को बहुत आश्चर्य हुआ। 


बेबी ने कहा, ’लेकिन वो घुँघरू वाली भूतनी तो है ना।‘


बसंतीलाल चाचा जी आगे कहा, ‘बेबी देखो, घुँघरू वाली भी कोई भूतनी नहीं है। वो देखो इस दूसरी फोटू में एक मोटी काली बिल्ली नजर आ रही है और गौर से देखो इसके पैर में घुँघरू भी नजर आ रहे हैं। किसी शैतान बच्चे ने इसके पांव में घुँघरू बांध दिए और वह सबको डराने के लिए उस बिल्ली को रोज आधी रात में छोड़कर सबको डरा रहा था।‘


सबके चेहरे पर पसीने की बूंदें चमक रही थी। सबने राहत की सांस ली मगर फिर भी सबके दिल से पूरी तरह से दहशियत खत्म नही हुई थी। सबका कहना था कुछ तो वहां है। तांत्रिक बाबा ने बहुत मुश्किल से भूत को वश में किया है इसलिए आज भूत भूतनी दिखाई नहीं दिये। मगर अभी भी बच्चे रात में छत पर अकेले सोने से डर रहे थे। शाम ढ़लने को ही थी कि तभी बीना और नीता ने छत पर पानी का छिड़काव किया और रात को सोने के लिये दरियां बिछा दी। थोड़ी देर में मंजू, राजा, नीलू, बबलू और दीनू भी छत पर आ गये। सब बैठकर गप्पे मार रहे थे।


तभी अचानक उन्हें घुँघरू की आवाज आयी। घुँघरू की तेज आवाज उनकी तरफ बढ़ती सुनायी दे रही थी। सभी की घिघ्घी बंध गयी। ये क्या हुआ घुँघरू वाली भूतनी तो फिर आ गयी है और उनकी तरफ ही आ रही है।


मंजू धीरे से हिम्मत करके ऊंचा होकर देखने लगी। उसे एक काली मोटी बिल्ली जिसके पांव में घुँघरू बंधे थे पडौस के छत पर नजर आयी जो छत पर इठलाकर चलती हुई उनकी छत की तरफ आ रही थी। मंजू ने सबको जल्दी से उठाया। उस बिल्ली को देखकर सबकी आँखें फटी की फटी रह गयी और अब सबको समझ आ गया था की रात को यही बिल्ली नजर आती है और उसी की दो आँखें रात के अंधेरे में तेज चमकती है।


आर एन साहब ने कहा, ‘इसका मतलब यह है की यह काली बिल्ली किसी ने पाल रखी है और वो इसे घुंघरू पहनाकर जानबूझकर रात को एक दो बजे छोड़ देता है जो सभी के घरों पर कभी इधर तो कभी उधर घूमती है। जब वो चलती है तो घुँघरू बजते हैं। बिल्ली मोटी है इसलिए जब वो जरा भी तेज चलती है तो ऐसा लगता है जैसे वो ठुमक ठुमक कर चल रही है। आज ये बिल्ली गलती से जल्दी बाहर आ गयी होगी।‘


आर एन साहब से छोटे भाई गोपाल ने कहा, ‘ओह! तो यही काली बिल्ली भूतनी बनकर हम सबको रोज डराती है। मुझे तो ऐसा लगता है उस खंडर हवेली के वहां से उसे पेड़ पर खाने की कोई चीज दिखती है तो वो उछलती होगी जब घुँघरू लय में बजते होंगे इससे सबको ऐसा लगता था जैसे भूतनी डांस कर रही है।‘


अब सब खूब हंसे।


तभी तांत्रिक बाबा आ गया। बहादुर भाई और नरेंद्र बिहारी को उसकी क्लास लेने की सूझी। बहादुर भाई ने कहा, ‘बाबा अच्छा हुआ तुम आ गए। हमें ये भूत भूतनी अभी भी बहुत परेशान कर रहे हैं।‘


तांत्रिक बाबा बोला, ‘इस भूत को वश में करना इतना आसान नहीं है। यह बहुत चालाक भूत है। मैं रात भर साधना करता रहा और उसे वश में करने की पूरी कोशिश करता रहा मगर ये बार बार मेरी गिरफ्त से बाहर निकल जाता था।‘


नरेंद्र बिहारी ने कहा, ‘बाबा अब क्या करें?’


तांत्रिक बाबा जरा सख्त होकर बोला, ‘इस खतरनाक भूत भूतनी के जोड़े को पकड़ना बहुत मुश्किल काम है। ये काम तो अब मेरे गुरु ही कर सकते हैं।‘ 


गोपाल साहब ने कहा, ‘आपके भी गुरु अभी आने बाकी हैं क्या?’


तांत्रिक बाबा ने गुस्से में तमतमाते हुए कहा, ‘तुम तांत्रिक बाबा से मस्ती करते हो। तुम्हें पता नहीं तुम लोगों ने अपना कितना अनर्थ कर लिया है। मैं तुम सबको श्राप देता हूँ की इस भूत भूतनी का जोड़ा हमेशा यहीं रहेगा और तुम्हें हमेशा परेशान करेगा। जब यह रोज तुम्हें परेशान करेगा तब तुम्हें मालूम पड़ेगा तुमने तांत्रिक बाबा से मस्ती करके कितनी बड़ी भूल की थी।‘


उसी समय मौहल्ले का उच्ची दादा वहां आ गया। उसे देखते ही वो तांत्रिक बाबा भागने लगा। 

उच्ची दादा उसे पकड़ लाया।


तांत्रिक बाबा उच्ची को पहचानता था। वह उच्ची के हाथ पांव जोड़ने लगा और उसे छोड़ने की

विनती करने लगा।


उच्ची दादा बोला, ‘अरे ये तो एक नम्बर का उठाईगिरा और पाखंडी है। ये जेल में मेरे हाथ पांव दबाकर मेरी सेवा करता है।‘


तांत्रिक बाबा ने उच्ची दादा के पैर पकड़कर माफी मांगी और बोला, ‘दादा मुझे छोड़ दो।‘


उच्ची दादा बोला, ‘अच्छा हुआ मैंने इसे देख लिया वरना ये तुम लोगों को झांसे में लेकर और ना जाने कितनी चपत और लगाता।

गोपाल साहब ने कहा, ‘इसे हम अभी पकड़ने वाले ही थे क्योंकि ये हमें ठगने की कोशिश कर

रहा था मगर भूत का भेद तो चाचा जी ने खोल दिया था इसलिए हमें मालूम था अब ये हमें ठगेगा। इतने में तुम आ गये।‘


उच्ची दादा ने तांत्रिक बाबा से पूछा , ‘मेरे एरिये में आने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?’


तांत्रिक बाबा बोला, ‘मेरा चेला मुझे यहां लेकर आ गया। मैंने इधर आने को साफ मना कर दिया था मगर मेरा चेला मेरे से पूछे बिना इनसे एडवांस पैसे ले आया बस इसलिए मुझे यहां आना पड़ा।‘


उच्ची दादा ने उस तांत्रिक बाबा से सारे पैसे वापिस दिला दिए। सब खुश थे चलो भूतों और तांत्रिक बाबा से पीछा छूटा।


शाम के बाद चाचा जी ने बच्चों से कहा, ‘चलो हम फिर छत पर सोने चलेंगे।‘


रात में खाना खाकर सब बच्चे छत पर आ गए और जानबूझकर पेड़ की तरफ इशारा करके एक दुसरे को डराने लगे और हंसने लगे। सबके दिल से अब ड़र निकल गया था।


रात में खाना खाने के बाद गोपाल साहब अपने दोस्तों के साथ मदारगेट घूमने चले गये। रात को जब वो घूमकर वापिस आये तो दीनू ने दरवाजा खोला। थोड़ी देर में दोनों छत पर आ गये। सब गप्पे लगाते रहे। यूं ही झूठे ही कहते रहे अरे वो दिख रहा भूत फिर सब हंस देते। पडौसी भी सब मस्ती के मूड में थे सब एक दूसरे से मजाक कर रहे थे।


थोड़ी देर बाद धीरे धीरे सबको नींद लग गयी। रात को दो बजे के आस पास का समय था। थोड़ी हवा चलने लगी थी। थोड़ी देर बाद बीना और नीलू की नींद उड़ गयी। दोनों धीरे धीरे बातें करने लगे।


थोड़ी देर बाद बीना और नीलू की नजर खुद की छत पर चोगा पहने भूत की तरफ पड़ी। भूत

उनकी तरफ ही आगे बढ़ रहा था। दूसरी तरफ मुँड़ेर पर भूतनी की आँखें चमकती नजर आ रही थी।


बीना और नीलू ड़रकर चिल्लायी, ‘भू.......भूत! भूत!....!’ दोनों की घिघ्घी बंद गयी।


दोनों की आवाज सुनकर सब उठ गए और सब चोगे वाले भूत को अपनी छत पर और छत की मुँड़ेर पर बैठी भूतनी को देखकर चिल्लाने लगे। 


मामला बिगड़ते देख दीनू ने अपने चेहरे से चोगा उठाया और बोला, ‘अरे ये तो मैं हूं।‘


बसंतीलाल चाचा जी ने टॉर्च जलाई तो देखा वास्तव में ये तो लुंगी ओढ़े दीनू ही था।


दीनू खुशी से चिल्ला रहा था, ‘उल्लू बनाया बड़ा मजा आया।‘


गोपाल साहब भी हंस रहे थे। सबकी घिघ्घी बंधी हुई थी। सब समझ गए कि यह मजाक थी जो गोपाल साहब और दीनू की प्लानिंग थी।


दोनों ने सबको बताया की उन्हें शाम को सबके साथ मजाक करने की सूझी थी। हम दोनों ने ही प्लान बनाया था की रास्त में सबको डराएंगे, बड़ा मजा आएगा।


गोपाल साहब ने कहा, ‘खाना खाकर दोस्तों के साथ मदारगेट गया था वहां से खिलौने वाली काली बिल्ली जिसकी आँखें चमक रही थी और घुँघरू खरीद लाया। लुंगी तो घर पर थी ही जो मैं रोज पहनता हूं। रात को जब सब सो गये तब मैंने चुपके से बिल्ली को मुँड़ेर पर रख दिया और दीनू को लुंगी पहना दी और फिर छत पर आकर डरा दिया।‘


सबका दिल बैठ गया था मगर असलियत का मालूम पड़ते ही सब खूब हंसे।


बसंतीलाल चाचा जी ने कहा, ‘ऐसी मजाक तुम पर कभी भारी पड़ सकती है। किसी की तबियत खराब हो सकती है।‘


फिर हंसकर बोले, ‘या फिर पोल खुलने पर तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है।‘


चाचा जी ने कहा, ‘आज ही इस पेड़ की छंटाई करवा देता हूं।‘


सुबह उन्होंने एक आदमी को बुलाया और पेड़ों की छंटाई करवा दी जिससे बच्चों के दिल से बचा खुचा ड़र भी खत्म हो गया।


बसंतीलाल चाचा जी ने कहा, ‘बच्चों, बोलो अब तो जैसलमेर जाऊं?’


सब बच्चों ने कहा नही आप कुछ दिन बाद जाना। मगर आखिर नौकरी पर तो जाना ही था।

सुबह उठकर चाचा जी चाची जी को लेकर बस से जैसलमेर चले गये।

 

अब चारों और पूरी सुख शांति दिखाई दे रही थी। भूत भूतनी दूर दूर तक दिखायी नहीं दिए। मगर वो दिन आज भी सबके जहन में है। जब सब मिलते हैं तो आज भी वो दिन याद करके हंसते  हंसते  लोट पोट हो जाते हैं।

 

   ....समाप्त ....

 

लेखक: प्रहलाद नारायण माथुर 

अजमेर (राजस्थान)


                          

                                            

                                            || घोषणा || 

 

मैं प्रहलाद नारायण माथुर निवासी अजमेर घोषित करता हूँ की उपरोक्त लेख मेरा स्वयं का लिखा हुआ मौलिक और अप्रकाशित है | 


प्रहलाद नारायण माथुर 

अजमेर राक्जस्थान 

व्हाट्सप्प नंबर 8949706002

ईमेल :pnmathur15@gmail.com 

 

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