आंधी
" बुरा मत मानो होली हे !' बहार बडे जोर शोर से रंगो की बोछार हो रही थी । रोज खुली रहती खीडकी उसने आज बंध ही रखी थी ।
फिर भी अपने पसंदीदा त्योहार के रंगो को देखने के लिए उसका मन अधिर हुआ। खिडकी खोल दी। खिड़की से बहार जाका।
उसने एक बडी आह भरी!
'एक सप्ताह से सचिवा के साथ व्यापार यात्रा पर गया हुआ अपना पति नजरो के सामने आ गया। '
उड रहे इन रंगो की बोछार में उसको अपने जीवन में आने वाली आधी दिखाई दे रही थी।