होरी के हुरियारे
होरी के हुरियारे
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होरी के हुरियारे फिर रए,
हाथन में लएं गुलाल।
बैर भाव सब भूल कैं,
ना रखियो मन में मलाल।।
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आम बौरा रए बगियन में,
भौंरा गुंजन करत सब ओर
मौसम होरी खेल रओ,
दिगदिगन्त चहुं ओर।।
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बाल गोपाल रंगते फिरें,
एक दूजे के संग
हल्ला हुल्लड़ करत हैं,
खूब लगाऊत रंग।
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गुब्बारे भरे रंग सें,
फेंक रए हर ओर।।
लगत जबई वे जोर सें,
खूब रंगत हैं जोर।
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खुशबू आ रई जोर की,
खुरमा गुझियां पापड़ी।
बहू बना रई रसोई में,
बड़ी देर सैं लगी पड़ी।
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देवरा आए दूर सैं,
भाभी रंगी गई वहीं खड़ी।
भाभी भी कम है नईयां,
देवरा पै मिर्चन की चटनी पड़ी।
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बैर भाव मन होलिका,
प्रीति पगे प्रहलाद।
हम करते परकम्मा,
खुशियन कौ पाएं प्रसाद।।
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ग्वाल रंगे हैं कृष्ण रंग,
राधा रंगी हैं लाल।
मगन मन सखियां भईं,
उड़ाऊतीं हैं गुलाल।।
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कक्का दद्दा ताऊ के,
पैरन धरौ गुलाल,
साली खौं सबरो रंगौ,
देवरा कौ माथो लाल।।
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सारारा पिचकारी मारी,
प्रिया रंगी गईं प्रेम रंग।
सखा संग रंग खेल लें,
जब तक चढ़ै न भंग।।
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फागुआ गाएं चौपाल पै,
लै कें मंजीरा ढोलक संग।
जे होरी के हुरियारे फिर रए
भैय्या भोतई मस्त मलंग।।
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काव्य रचना,
शोभा शर्मा@सर्वाधिकार सुरक्षित