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राह और मै

राह और मै

चल राह हम साथ चलते, 

तेरी राह खाली , 

मेरा मन भी खाली, 

तुम भी अकेली मै भी अकेला, 

कुछ कदम मै चलू तेरी राह पर, 

शायद तेरी राहों मे, 

फूल बिखरे मिले मेरे जज्बातो के, 

जो भर आई थी आँखे, 

इश्क के आँसुओ से, 

जो आँसू रक्त बनकर ,

गिरे थे तेरी राह पर, 

मै निकला हु तेरी राह पर ,

उन सूखे हुये इश्क के ,

आँसुओ के निशान देखने तेरी राह। 

काश मौसम की मार सह सके हो, 

वरना गर्मी की गर्माहट से ,

भाप बनकर, 

बारिस की बूँदों मे बहकर,

सर्दी मे गिरती हुई ओस की बूँदों तले। 

छीन्न भिन्न, तहस नहस हो चुकी, 

होगी मेरी इश्क की निशानियाँ। 

तु ले चल ना साथ मुझे ,

एक बार फिर से, 

शायद मेरी मरी हुई रूह को देखकर, 

कुछ हलचल लौट आये, 

आँसुओ मे भी, 

कुछ सफर अच्छा बन जाये। 

की फिर से जिंदगी तेरी राह मे, 

चलते चलते बस मुस्करा उठे। 

तो चल ना राह हम साथ चलते, 

भरत माली (राज) 




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