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मेरा हाथ छोड़ देना

2019 !! मेरे लिए एक सुनहरा वर्ष रहा!! 

बहुत से कारण हैं लेकिन उनमें से प्रमुखतम कारण ये है कि वर्ष 2019 ने मुझे कई प्रभावशाली, अपने क्षेत्र में सिद्धहस्त और प्रसिद्ध, कलाकारों और साहित्यकारों के संपर्क में आने का अवसर दिया...जिनमें से एक हैं प्रसिद्ध साहित्यकार बहादुर पटेल जी ! 

मैं धन्यवाद करना चाहूँगी ज्योति देशमुख जी का, (जो कि एक उम्दा कवयित्री तो हैं ही लेकिन गज़ब के आत्मविश्वास और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी हैं 2019 ने इनसे मिलने की भी अलग कहानी है), जिन्होंने मुझे बहादुर जी से मिलवाया।

इसे मैं अपना अहोभाग्य समझूँगी कि बहादुर जी ने स्वयं मेरे घर पधार कर मुझे उनका काव्य संग्रह "मेरा हाथ छोड़ देना" भेंट दिया !!

मैंने वो कविताएँ पढ़ी...वो अचेतन मन में घूमती रही..मैं उन कविताओं के बारे में लिखना चाहती थी (समीक्षा तो कतई नहीं.. क्योंकि अभी मैं उस स्तर तक नही पहुँची कि इतने वरिष्ठ साहित्यकार की कृतियों पर कुछ कहूँ)

 ये कविताएँ...कुछ बहुत सरस सरल सुंदर .."जिन खोजा तिन पाइयाँ" "प्यार"

"अनगिन"

मेरे भीतर एक वसंत है

जिसमें तुम एक फूल की तरह हो


या

"भरोसा" 

वह कहती है सुनो

मैं इसी के भरोसे चलता हूँ उसके साथ


"तुम्हारा अनुवाद"(जो मुझे बहुत पसंद आई...)

बहुत विचित्र है व्याकरण

एक वाक्य का अर्थ एक समय से दूसरे समय में बदल जाता है


तो कुछ अचानक ही दार्शनिक.. जैसे "कमीज", "नाखून" "यात्राएँ" 

"प्राचीन रास्ता"

एक रास्ता हूँ प्राचीन

मैं खुलता हूँ एक पुराने दरवाजे से

मुझसे गुजरता है इतिहास


तो कुछ अपने भीतर मनोविज्ञान समेटे जैसे "एकांत" "अकेला आदमी" "फाँस" "कील"

"विदा का हाथ"

ट्रेन में बैठते वक्त गले लगाना

विदा की शुरुआत का क्षण होता है

अपने सारे सामान के साथ

कैसे तो निकल पडते हैं ये पंछी की तरह...


 "वह गुजराती लड़की" "कत्लगाह" "जिंदा रहते हुए मरो" भी गूढ अर्थ लिये हैं। 


"माँ की सीख" तो बहुत ही उम्दा है। और अंत में "मेरा हाथ छोड़ देना"

मेरे साथ चलो

थोडा चलना सीख जाओ

कुछ लडना भी.....


...मैं जब गलत होऊँ तो टोक देना

    और मेरा हाथ भी छोड़ देना।


 यही कहूँगी कि हर टोन और हर मूड की कविता है। जहाँ तक मैं जानती हूँ, बहादुर जी को फूलों से बहुत प्रेम है.. तो उनका यह कविता संग्रह एक बगिया है,

हर रंग और हर खुशबू का फूल लिये......


©ऋचा दीपक कर्पे

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