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वो पहली मुलाकात

 

शोपिज़ेन प्रेमकथा जलेबी प्रतियोगिता

 

 

शीर्षक- वो पहली मुलाकात....

 

अनन्य राजपूत नाम था उसका। नाम के अनुरूप ही उसका काम था अर्थात् वह हर कार्य बहुत ईमानदारी और लगन से करता था। अनन्य जब छोटा था तभी से उसे वकील बनने का शौक था और उसने अपने इसी शौक को बरकरार रखते हुए लॉ कॉलेज में दाखिला ले लिया था। 

नवम्बर -दिसम्बर का महीना था और इसी समय कॉलेजों में परीक्षा फॉर्म भरे जा रहे थे। उस दिन अनन्य भी परीक्षा फॉर्म भरने अपने कॉलेज गया था। किसी महत्वपूर्ण कागज की फोटोकॉपी न होने से वह उस कागज को फोटोकॉपी करवाने थोड़ी दूर स्थित कंप्यूटर सेंटर पहुँचा। यह कंप्यूटर सेंटर एक सरकारी विश्वविद्यालय के पास ही था। अनन्य ने अपने दस्तावेज की फोटोकॉपी करवाई और वहाँ से बाहर निकल गया। बाहर निकलकर वह अपने दस्तावेज, फाइल के अंदर डाल रहा था कि तभी उसकी नजर सामने से आ रही एक लड़की पर पड़ी। दुबली-पतली सी, लम्बी, मासूम चेहरे की उस लड़की ने नीले रंग की टॉप के साथ काला रंग का जीन्स पहन रखा था।

अनन्य तो जैसे उस लड़की को देखते ही कहीं खो सा गया था। वह लड़की अनन्य के पास से गुजर कर सेंटर में चली गई। उस लड़की के पास से गुजरने के कारण पता नही क्यूँ, पर अनन्य का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। पहली नजर में ही अनन्य उस लड़की पर  फ़िदा हो गया। वह लड़की कम्प्यूटर सेंटर के अंदर चली गई और अनन्य बाहर ही खड़ा था। उसका काम तो वहाँ हो चुका था पर उसे उस लड़की को और अच्छे से देखना था। सो उसने बिना देरी किये एक रिजल्ट निकाला और सेंटर के अंदर पहुँच गया फोटोकॉपी करवाने। आखिर कुछ तो बहाना चाहिए था अंदर जाने का।

       सेंटर के अंदर जाकर उस लड़की को अनन्य शिद्दत से देखने लगा, मानो जन्मों की तलाश पूरी हो गयी हो। उस लड़की ने भी अनन्य को घूरकर गुस्से में देखा फिर अपनी नजरें फेर ली। अनन्य उसे देखे ही जा रहा था कि फिर उस लड़की ने आँखे बड़ी करके गुस्से में घूरकर देखा और मन में सोचा - कौन है ये बेवकूफ. कब से आँखे फाड़े देखे जा रहा है टपोरी कहीं का?

  इस बार  अनन्य उसकी गुस्से वाली आँखों को देखकर चुपचाप वहाँ से बाहर निकल गया। वह अपने कॉलेज गया फिर वहाँ से घर। पर इस दौरान उसके दिलों दिमाग में बस वहीँ लड़की छायी हुयी थी। सारी रात अनन्य उस लड़की के बारे में ही सोचता रहा और करवटें बदलता रहा। सुबह-सुबह आँख लगी भी तो सपने में वही लड़की दिखाई दी।

                    अनन्य को तो चैन ही नही था उस लड़की को देखे बिना सो पहुँच गया उसी सेंटर वाले कॉलेज के बाहर। पुरे जिले का एकमात्र सरकारी कॉलेज यही था, जहाँ आसपास के सारे छात्र पढ़ने आते थे। अनन्य को पूरा भरोसा था कि वह लड़की इसी कॉलेज में पढ़ती है। अनन्य ने सोचा कि आज तो उससे बात करके ही रहूँगा चाहे कुछ भी हो जाये। सारा दिन अनन्य कॉलेज के बाहर इस उम्मीद में बैठा रहा कि कब वह लड़की दिखाई दे। पर हाय री उसकी किस्मत वह लड़की उस दिन आयी ही नही थी। अनन्य बेहद उदास हो गया था।

अब तो रोज का अनन्य का नित नियम था कि अपने कॉलेज के बाद दोस्तों संग उस सरकारी कॉलेज के आगे खड़ा रहता था ताकि कभी तो वह दिखें। मगर मैडम तो ईद का चाँद हो गयी थी। वहीं अनन्य उस लड़की के ख्यालों में ही खोया हुआ रोज उसके कॉलेज के चक्कर लगाया करता था। इसी तरह दो महीने बीत गए। अनन्य ने उस लड़की से फिर भेंट होने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। 

उस दिन सरकारी कॉलेज में वार्षिक उत्सव का आयोजन था जिसमे आसपास के कॉलेज के छात्र भी आमंत्रित थे। अनन्य भी  वहाँ गया हुआ था। लड़कियों की एक टोली पर नजर पड़ते ही जैसे उसकी तो बांछे खिल गयी। वही सेंटर वाली लड़की वहाँ बैठी हुई थी। अनन्य असीम स्नेह से उसे देखने लगा। उसने मन में सोचा आज तो इससे बात करके ही रहूँगा, कम से कम नाम तो बतायेगी।  तभी उसके एक दोस्त ने कहा- चल न यार, सुबह से कुछ खाया नही है हमने, कैंटीन से कुछ खाकर आते हैं।

अनन्य भी भूखा था सो सब दोस्तों संग चल पड़े। करीब आधे घंटे बाद वापिस आये तो यह क्या, पूरा कॉलेज ही सुनसान पड़ा था। सभी जा चुके थे,साथ ही वह लड़की भी। अनन्य खुद को कोसने लगा कि क्या जरुरत थी खाने जाने की, एक दिन भूखा रह जाता तो मर नही जाता मैं? अब उस लड़की को फिर कैसे खोजूं। महारानी साहिबा कितने इंतजार के बाद तो आज नजर आयी थी, उसमे भी मैं नाम तक न पूछ सका उसका।

अनन्य का एक दोस्त जो उसी कॉलेज में पढ़ता था उसने उससे पूछा कि आज के कार्यक्रम में जो चौथे लाइन में तीसरे नम्बर पर दुबली सी, लम्बी मासूम चेहरे वाली लड़की थी,वो कौन है? 

तब उस लड़के ने भी समझ लिया कि अनन्य किसके बारे में पूछ रहा है। उसने बताया कि  उसका नाम पंछी शर्मा हैं। बी. कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा है। और भी बहुत कुछ पंछी के बारे में उसने अनन्य को बताया।

अब तो अनन्य को चैन नही था। आखिर उसका वकालत का दिमाग कब काम आता। इंस्टाग्राम में उसने पंछी शर्मा नाम सर्च किया, तो ऊपर ही उसका नाम और फोटो आ गया। अनन्य ने तुरंत ही पंछी को पूरी बात बताते हुए इंस्टाग्राम पर संदेश भेज दिया। उसमें उसने सबकुछ लिखा था सेंटर में देखने से लेकर कॉलेज के चक्कर लगाने और दोस्त से नाम पूछने तक। उस समय शाम के छः बज रहे थे। अनन्य बेसब्री से इंतजार किये जा रहा था कि कब उसका संदेश देखा जाये और कब कोई जवाब आये। घड़ी की सुईयों की तरह उसका दिल भी टिक-टिक किये जा रहा था।

रात 10 बजे के करीब उसने वह संदेश देखा और बहुत देर बाद जवाब दिया - "कब, क्या, कैसे?"

अनन्य ने फिर से पूरी बात बताई तब जाकर पंछी का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ। धीरे धीरे इंस्टाग्रान पर ही बातें होने लगी।अब अनन्य बहुत खुश था क्योंकि वह लड़की उससे बात करती थी मगर फिर भी अनन्य को डर इस बात का था कि कहीं पंछी उसका प्यार ठुकरा न दें।

ऐसे ही एक दोस्त की तरह दो महीने तक इंस्टाग्राम पर बातें होती रही। फिर पंछी के परीक्षा होने वाली थी तो उसने बात करना कम कर दिया। बस कभी-कभी बात होती थी। अनन्य ने सोचा कि उसके अंतिम परीक्षा के दिन उससे बात करुं। यही सोचकर उसने पंछी से उसका फोन नम्बर माँगा और पहुँच गया उसके कॉलेज।

 सभी विद्यार्थी जा चुके थे, पर पंछी कहीं नजर नहीँ आ रही थी। अनन्य ने उसे 20 बार फोन किया मगर उसने कोई उत्तर न दिया। थक-हारकर मायूस अनन्य वापिस लौट रहा था कि उसे एक बस में खिड़की की तरफ बैठी पंछी दिख गयी। 

फिर क्या था, अनन्य ने आगे पीछे देखे बिना स्टाइल के साथ अपनी स्कूटी बस के आगे ले जाकर रोक दी। बिलकुल किसी फिल्म की हीरो की तरह। बस रुक गयी और अनन्य को देखकर पंछी हैरान परेशान गुस्से में बस से उतरी और सीधा गुस्सा करने लगी कि यह क्या तरीका हुआ बस के आगे आने का। 

अनन्य ने बोला-आपने फोन नही उठाया तो और करता भी क्या महारानी साहिबा। खैर अब चलिये मेरे साथ बैठिए, आपको घर छोड़ देता हूँ। अगर नही बैठेंगी तो सोच लीजिये, मैं भी बस के आगे से नही हटूंगा।

पंछी बेचारी मरती क्या न करती, आखिर उसे अनन्य के साथ ही बैठना पड़ा। पूरे रास्ते गुस्से में मुँह फुलाये बैठी थी पंछी। अनन्य कुछ पूछता तो भी गुस्से में ही जवाब देती। उस दिन पंछी अनन्य के साथ घर तक आई। अनन्य बहुत खुश था और अब तो वह रोज उससे मिलना और बात करना चाहता था, मगर भगवान जी भी शायद परीक्षा लेना चाहते थे। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लग गया और सभी घर में ही कैद हो गए। पर इस दौरान दोनों में बाते लगातार जारी थी। तीन महीने बाद जब कुछ पाबंदियां हटी तो अनन्य पंछी को देखने की चाहत में उसके घर के बाहर पहुँच गया और दूर से ही उसे देख वापिस आ गया।

 

अनन्य को अहसास था कि पंछी भी उसे पसन्द करती हैं, पर कहने में डरती है। एक दिन अनन्य ने पंछी से पूछा- मुझसे मिलने आ सकती हैं? तब पंछी ने कहा कि हाँ, आऊँगी। पंछी भी अनन्य से मिलना चाहती थी। अनन्य और पंछी पास के एक मंदिर में गये। वहाँ दोनों एक घण्टे साथ रहे, बातें किये फिर अचानक से पंछी के सामने अनन्य अपने घुटनों के बल नीचे बैठ गया और पंछी का हाथ पकड़कर एक हाथ में अंगुठी लेकर बोला - "पंछी, जिस दिन से मैंने आपको पहली बार देखा तब से लेकर आजतक हर दिन, हर लम्हा मैंने सिर्फ और सिर्फ आपको चाहा है। पता नही क्यों पर आपको बहुत करीब से महसूस करने लगा हूँ। मैं ये नही कहता कि मैं बहुत अच्छा हूँ पर हाँ ये सच है कि मेरे दिल में पहली बार किसी ने इतनी गहराई से जगह बनाई है। मैं आपसे बहुत बहुत प्यार करता हूँ पंछी। क्या, आप मेरे साथ हमेशा इस रिश्ते में बंधना चाहेंगी? मैं वचन देता हूँ कि इस प्रेम की गरिमा, मर्यादा और सत्यता हमेशा बनाये रखूँगा। क्या, आप भी मुझसे प्रेम करती है पंछी?"

 

पंछी तो बस एकटक अनन्य को देखे जा रही थी, उसे तो सच में विश्वास ही नही हो रहा था कि अनन्य ने उससे इस तरह भगवान के समक्ष अपने प्रेम का इजहार किया है। पंछी बेहद खुश हो गयी और अनन्य की अंगुठी के आगे अपने हाथ कर दिए। उस दिन दोनों के प्रेम की पहली जीत हुई थी। अनन्य बेहद खुश था।

 

अनन्य का प्रेम सच्चा था इसलिए उसने अपने घरवालों को पंछी के बारे में सब बता दिया। अनन्य के घरवाले जब पंछी से मिले तो उन्हें भी पंछी भा गयी, पर मुश्किल तो अब शुरु हुई थी। पंछी के घरवालों को अनन्य और पंछी का रिश्ता नामंजूर था क्योंकि पंछी ब्राम्हण कुल की थी और अनन्य क्षत्रिय कुल का। पंछी के घरवाले अपने ब्राम्हण कुल में ही उसका रिश्ता तय करना चाहते थे। पंछी जिद में अड़ी थी कि वह सिर्फ और सिर्फ अनन्य से ही विवाह करेगी और घरवाले भी अपनी जिद पर अडिग थे। पंछी ने कई बार अनन्य से कहा भी कि घरवाले शायद कभी नही मानेंगे इसलिए चलिये भागकर शादी कर लेते है।

पर अनन्य पंछी को समझाता कि हमारा प्रेम इतना खुदगर्ज नही है कि हम सिर्फ अपने बारे में ही सोचें। और मान लो भाग कर शादी कर भी लिए तो क्या हम कभी सुखी रह पाएंगे, कभी नहीँ रह पाएंगे पंछी। हमारे परिवार की भी कितनी बदनामी होगी इन सबसे। आपको खोने का डर मुझे भी है, पर उससे कही ज्यादा भरोसा अपने प्रेम की सच्चाई पर है। इसलिए हम ऐसा कोई कदम नहीँ उठाएंगे जिससे हमारे माता-पिता का सर झुके।

इसी तरह तीन साल बीत गए। पंछी एक सरकारी विद्यालय में बतौर शिक्षक नियुक्त हो गयी थी। उसके विवाह के लिए कई रिश्ते आये मगर घरवालों को कोई पसन्द नही आया। अनन्य और पंछी अभी भी लगातार सम्पर्क में बने हुए थे। अनन्य बस इस इंतजार में था कि कब वह एक कामयाब वकील बन जाये और कब पंछी के घर जाकर उसका हाथ मांगे।

आखिर वह दिन आ ही गया जब अपने मेहनत के दम पर अनन्य ने एक केस में सफलता हासिल की थी। वह उस दिन बहुत खुश था। दूसरे दिन सारे स्थानीय अखबारों में उसकी तस्वीरें छपी थी। अनन्य बिना समय गवाएं पंछी के घर जा पहुँचा और उनसे प्रेम पूर्वक निवेदन की मुद्रा में बस हाथ जोड़कर खड़ा ही रहा। बोला कुछ नही। इस बार पंछी के घरवालों ने दोनों के प्रेम की सच्चाई देखकर सहर्ष यह रिश्ता स्वीकार कर लिया। 

आखिर अनन्य और पंछी का प्रेम जीत ही गया। कुछ ही दिनों में दोनों की शादी हो गयी। वे दोनों एक दूसरे संग बेहद खुश थे।

 

समाप्त।

 

 

शिखा गोस्वामी "निहारिका"

 

चंद्रखुरी, मारो, मुंगेली

छत्तीसगढ़

 

घोषणा-- प्रस्तुत कहानी मेरी स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है तथा इसे किसी भी पटल पर प्रेषित नही किया गया है।

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