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दर्द का रिश्ता

-दर्द का रिश्ता

बारात की दो-चार गाड़ियाँ निकल चुकी,बस शेष है तो दूल्हे की गाडी।घर के ठीक सामने छोटी-सी खिडकी में से झांकता एक मायूस सा चेहरा।कपिल की नजर जैसे ही मधु के मायूस चेहरे पर पडी न चाहते हुए भी कपिल की पलकें भीग गई।एक पल के लिए दोनॉ की नजरें आपस में टकराई,कब से अपने आँसुओं को रोक रखे थी कि जैसे आँखों से झरने बहने लगे। --ओह कपिल क्या थोडा और नहीं ठहर सकते थे---।आँसुओं के साथ साथ न जाने दिल की कसक बड़बड़ाह्ट में शामिल हो गई।-- अब और नही--।सोचते हुए मधु खिडकी से हट कर अपने बिस्तर पर औंधे मुँह गिर कर सिसकियाँ भरने लगी। इधर कपिल भी दिल ही दिल रोने लगा।-- काश कुछ ऐसा हो जाये कि यह शादी केन्सिल---- लेकिन अब कैसे-----। -- अरे कपिल गाडी में बैठ न-----सभी बाराती जा चुके हैं,और किस की इन्तजार कर रहा है---। पीछे की ओर से चाचा ने कहा। और मन मार कर गाडी में पिछ्ली सीट पर बैठ गया।घर की नारियों को जो जरुरी संस्कार करने थे वो सब भी पूरे हो चुके हैं। धीरे-धीरे गाडी आगे बढ़ने लगी।और कपिल की आँखो के सामने अतीत चलचित्र की भाँति,अभी जैसे कल की ही बात हो। सामने बन्द पडे मकान में आहुजा अंकल किराये पर रहने के लिए आ गये।पता ही नहीं चला कब मधु से आँखे चार हो गई। -- हाँ याद आया लगभग चार वर्ष पहले सर्दी के मौसम में जब माँ ने कहा था कि ऊपर छत पर बैठ कर पढ लेता। मै अनमने मन से छत पर पहुँचा ही था कि सामने वाली छत पर बैठी हुई मधु मेरी ओर ही देख रही थी,और जैसे ही मैने मधु की ओर देखा,उसने धीमी मुस्कराहट मेरी ओर पास कर दी,मैने भी औपचारिकता निभाना जरूरी समझा और हेलो में हाथ मधु की ओर हिला दिया।अगले दिन से छत पर बैठकर पढ्ना रूटीन वर्क में शामिल हो गया।और जैसे मधु भी मेरी राह ही देखने लगती।कभी-कभी जब मैं थोडा लेट हो जाता तो वह इशारा करते हुए पूछती लेट आने का कारण।उस दिन शाम के समय जब मैं अपने घर पर अकेला था,हाँ याद आया जब मेरे माता पिता दोनो गावँ गये हुये थे,तब अचानक मधु मेरे पास एक टिफ़िन लेकर आ गई,मै एक दम घबरा गया मधु को अपने इतना पास देखकर।मेरी घबराहट देख खिलखिला कर हँस पड़ी।-- आप और यहाँ म म मेरे घर के अन्दर---। बामुश्किल कह पाया मै। -इतना डर क्योँ रहे हो--मै तुम्हारे लिए खाना लेकर आई हूँ,जाने से पहले आँटी ने मेरी माँ को कहा था कि आप कपिल को खाना दे देना,इसलिए मैं खाना लेकर आई हूँ,--। -- ठीक है मै समझा था कि @--'। -- तुम मुझे सामने देख कर डर क्योँ गये थे, कहीँ तुमने यह तो नहीं सोच लिया था कि मै यहाँ तुम्हारे मकान के अन्दर तुम्हारी इज़्ज़त------ क्योँ--। मै मधु के बिंदास बोल सुनकर थोडा असहज महसूस करने लगा। - आप यह टिफ़िन मुझे दे दो---। --नही मम्मी ने कहा है कि कपिल को खाना अच्छी तरह से खिला कर आना--। और मधु बेझिझक भाव से,जैसे इस घर की मालकीन यही है।लेकिन मेरे मन में यही चलता रहा कि कोई आ गया तो मेरे बारे में क्या सोचेगा।उस दिन के बाद अक्सर मधु मेरे घर में आने लगी।और मुझसे बात करने के बहाने तलाश करने लगी।एक दिन तो हद ही हो गयी जब मधु ने मेरी माँ के पास बैठे हुए कहा,-- आँटी आपके कपिल को तो लड्की होना चाहिये था
। -- वो क्यूँ भला---। माँ ने भोलेपन में पुछा। -- वो इसलिये आँटी कि यह लडकियों की तरह शरमाता बहुत है--। तिरछी नजरों से मेरी ओर देखते हुये मधु ने कहा। धीरे-धीरे मै मधु के प्यार में पागल हो गया। एक दिन जब रात के अन्धेरे में वो मेरे पास आ गईं और आते ही मुझे अपनी बाहोँ में भर लिया।-- कपिल मै नहीं जानती कि प्यार क्या होता है,लेकिन इतना जरूर जानती हूँ कि मै तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊँगी--। --मेरा भी यही हाल हैं मधु,तुम अगर मुझे न मिली तो मै मर जाऊँगा--। फिर मौका मिलते ही एक दुसरे के सामने बैठ कर एक-दूसरे की आँखो में देखना।कभी अपनी मृयादा से ऊपर नहीं गये और जरा वक्त ने करवट क्या बदली।सब कुछ बिखर गया,हम दोनॉ की शादी के बीच वही सब जाति,समाज,अमीरि-गरीबी।और आज जैसे मेरी मैय्य्त सजाई जा रही हो जैसे।

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