घर जमाई
घर जमाई
अलका पुणतांबेकर
वडोदरा गुजरात
अर्जुन अपने लैपटॉप पर कार्य में व्यस्त था । तभी कार्यालय का चपरासी आया बोला , "साहब बुला रहे हैं । " तुरंत अर्जुन साहब के कमरे में गया । साहब के सामने एक सुंदर युवती बैठी थी । थोड़ी घबराई सी नजर आ रही थी । साहब ने कहा, "अर्जुन ये मिस अश्विनी हैं। आज ही अपना ऑफिस ज्वाइन किया है । इन्हें कोई कठिनाई आए तो सहायता करना । जाते हुए इन्हें इनकी केबिन भी बता देना ।" " यस सर ।"कहकर अर्जुन अश्विनी के साथ बाहर आ गया ।
अश्विनी को केबिन तक ले गया । कहा, " "आपको कुछ कठिनाई हो तो पूछ लीजिएगा । जल्द ही आप काम सीख जाएंगी । " दोनों अभिवादन कर हंस दिए और अपने अपने स्थान पर बैठकर काम में व्यस्त हो गए ।
अर्जुन के पिता सुशील कॉलेज में प्रोफेसर थे । आज-कल रिटायर्ड हैं । अर्जुन की मां शीला स्कूल में पढ़ाती हैं । उनके रिटायर्ड होने में अभी एक साल है। सुशील का मुंबई में तीन बीएचके का फ्लैट है। अर्जुन उनकी इकलौती संतान, दो साल पहले उसकी जॉब पुणे में लगी ,तबसे उसका वहीं बसेरा है ।
आज अश्विनी को ज्वाइन किए एक महीना हुआ । अर्जुन ने उसे बधाई दी । दोनों कॉफी पीने साथ बाहर गए। दोनों के बीच मित्रता हो चुकी थी ।अर्जुन ,अश्विनी की हर कठिनाई में सहायता करता । कॉफी पीते हुए अर्जुन ने पुछा," आपके माता-पिता कैसे हैं ? " "अच्छे हैं ।मां-पिताजी मेरी बहुत चिंता करते हैं । मॉं तो फोन पर बात करते-करते रो पड़तीं हैं।" " मॉं एं कच्चे दिल की होती हैं। मैंने भी जब पहली बार घर छोड़ा , मेरी मॉं का भी यही हाल था ।"
अश्विनी की मॉं जूही और पिता अजीत ,अश्विनी उनकी अकेली संतान है । अजीत बैंक में कार्यरत हैं , दो साल बाद रिटायर्ड होंगे । मां हाउसवाइफ है, नाशिक में उनका चार बीएचके फ्लैट है। अश्विनी की पूरी पढ़ाई नाशिक में हुई , पुणे में आई तब पहली बार ही घर छोड़ा ।
ऐसे ही हंसते खेलते दो साल बीत गए ।अर्जुन की मॉं और अश्विनी के पिताजी रिटायर हो चुके हैं। अर्जुन और अश्विनी की दोस्ती प्यार में परिणित हुई है । पर दोनों ने कबूली नहीं दी ।
आज गोविंद अपने शादी का निमंत्रण देने अर्जुन के कार्यालय पहुंचा। निमंत्रण पत्रिका अर्जुन के हाथ में देकर पूछ ही लिया ,"अश्विनी को मेरी भाभी कब बना रहे हो ? " "अरे ऐसा कुछ नहीं है यार ।" अर्जुन ने बात टाली, पर गोविंद, कबूली लिए बिना नहीं छोड़ा । अश्विनी को भी निमंत्रण पत्रिका देकर गोविंद चला गया।
गोविंद ,अर्जुन का जिगरी दोस्त ,स्कूल से ही उनकी दोस्ती थी । उसके पिता जी बिल्डर हैं । चार साल से गोविंद पिता के साथ यही काम कर रहा है। आजकल पुणे में उनका काम चलता है । वह अर्जुन से अक्सर मिलता रहता है । अर्जुन ने उसकी पहचान अश्विनी से करवा दी थी।
गोविंद की पार्टी में शामिल होने दोनों साथ ही निकले । अर्जुन ने उसे पूछा , "आप के घरवाले आपके शादी के पीछे --" अश्विनी बोली " हां मगर मैंने एक शर्त रखी है । जो लड़का घर जमाई बनेगा उसी से में शादी करूंगी । सब लड़के ,आए पांव लौट जाते हैं । जो तैयार होता है वह पसंद नहीं आता । " आप कितनी लड़कियां देख चुके हो ? "अश्विनी ने हंसकर पूछा ।
" महीने में एक दो देख लेता हूं। पसंद नहीं आती। अब तो पिताजी पूछने लगे हैं ,कोई पसंद की हो तो बता ,बात आगे बढ़ाते हैं । "अश्विनी घबराकर बोली ," तुमने क्या कहा ? " अर्जुन खेद से " क्या कहूं? उस लड़की ने घर जमाई बनने की शर्त रखी है ।मैं घर जमाई कैसे बनूं? मेरा कोई भाई नहीं है। मां बाबूजी का खयाल मेरे सिवा कौन रखेगा ? "
" यह क्या कह रहे हो ? हां ?"अश्विनी सकपका कर बोल उठी ।" हां अश्विनी हम एक दूसरे को प्यार करते हैं । यह हमारे दोस्तों से भी नहीं छुपा । फिर हम एक दूसरे को अंधेरे में क्यों रखना चाहते हैं ?"
अश्विनी ने भी अपने प्यार का इजहार किया। पर दोनों इकलौती संतानें, कोई भी अपने माता पिता को अकेला छोड़ना नहीं चाहता था । उन्हें बेसहारा छोड़ कर उनसे दूर नहीं होना चाहता था । दोनों मजबूर थे। पार्टी एंजॉय कर दोनों ने अपने अपने घर की राह पकड़ी ।
दोनों विवश थे। अर्जुन-अश्विनी के शादी की बात आगे बढ़ नहीं पा रही थी । अश्विनी मां-पिता को छोड़कर ससुराल जाना नहीं चाहती थी।
गोविंद की शादी के तीन माह पश्चात, अर्जुन की मुलाकात गोविंद से हुई । गोविंद ने पूछा , "शादी की शहनाई कहां तक पहुंची?" खेद जताकर अर्जुन ने शादी में आने वाली समस्या बताई।"हम दोनों माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उनकी जिम्मेदारी झुठला नहीं सकते । उनकी सेवा में कमी नहीं आनी चाहिए । हम दोनों माता-पिता के साथ ही रहना चाहते हैं।"
गोविंद भी हाजिर जवाबी था, " " इतनी सी बात ,मैं तुम्हारी समस्या का समाधान कर देता हूं । पुणे में दो जुड़वा फ्लैट बना देते हैं । दोनों के माता-पिता वहीं रहेंगे । शादी के बाद भी आप दोनों अपने माता-पिता की उचित देखभाल कर पाएंगे ।" "अरे इतने अमीर नहीं हैं ,मुंबई पुणे दोनों जगह फ्लैट।" अर्जुन बोला ।
गोविंद हंसकर ," मैं हूं ना , तुम्हारा मुंबई का फ्लैट और अश्विनी का नाशिक वाला फ्लैट बिकवा दूंगा । उसी में पुणे में फ्लैट खरीद लेंगे।" अर्जुन ने सहमति से सर हिला दिया ।"पर सब की रजामंदी लेनी होगी।"
यह तुम मुझ पर छोड़ दो। दो दिन बाद में मुंबई काम से जा रहा हूं ।अंकल-आंटी को सारी बातें समझा दूंगा । बच्चे के लिए मान ही जाएंगे। अश्विनी भी अपने मॉं-पिताजी को मना लेगी ।आखिर इतना अच्छा जमाई मिल रहा है ।यह कह कर गोविंदा रवाना हुआ।
दो दिन बाद गोविंद मुंबई गया ।अपना काम निपटा कर शाम को अर्जुन की माता-पिता से मिला। वह बहुत खुश हुए । सुशील जी बड़ी चिंता से बोले , "तुमने तो शादी रचा ली , अपने दोस्त की भी चिंता करो।"
" अंकल आपका बेटा छुपा रुस्तम है । "गोविंद हंसते हुए बोला । सुशील गंभीरता से " यह क्या करो बेटा ?" "अंकल मेरा मतलब वैसा नहीं है । मैं कहना चाहता हूं उसने पुणे में एक लड़की पसंद की है।" " लेकिन हमारे पूछने पर उसने हमसे क्यों नहीं कहा।" मां की चिंता बढ़ गई ।" देखिए मैं सब बताता हूं।"गोविंदा ने अश्विनी,अर्जुन की पूरी कहानी सुनाई । समस्या और उसका समाधान भी बड़ी नम्रता से पेश किया । सुशील और शीला ने सब सुनकर सहमति जताई । बड़े दिनों से बेटे की शादी के अरमान लिए जी रहे थे । दोनों कि खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
छुट्टी लेकर अश्विनी और अर्जुन दोनों नाशिक पहुंचे। अश्विनी ने घर पहुंचकर अर्जुन का परिचय कराया । माता-पिता सब समझ गए । उन्होंने बेटी की पसंद पर मुहर लगा दी । पुणे में फ्लैट लेकर शिफ्ट होने को भी राजी हो गए । अर्जुन ने दोनों के माता-पिता को विडियो कॉल पर बात करवाई । एक हफ्ते बाद ,शादी के आयोजन की रूपरेखा तैयार करने के लिए वे आपस में नाशिक में मिलेंगे यह सुनिश्चित हुआ ।
अर्जुन नाशिक से मुंबई चला गया । अश्विनी नाशिक में रुक गई।
रोज की तरह अश्विनी सुबह घूमने निकली। एक घंटा बीत गया ,लौटी नहीं थी , इससे जुही जी चिंतित थीं ।
तभी अजीत जी को फोन आया। एक आदमी बोल रहा था " आप अश्विनी के पिता बोल रहे हैं ? उसे सिटी हॉस्पिटल में भर्ती किया है । आप तुरंत पहुंचे ।" अश्विनी के पिताजी विचलित हुए । उनके हाथ पैर कांप रहे थे । पास के सोफे पर बैठ गए, थोड़ा सम्हलें तब जूही के साथ तुरंत अस्पताल पहुंचे ।
डॉक्टर ने बताया, गाय के सींग पेट में लगने से बच्चेदानी में जख्म है । उसे तुरंत निकाल देना होगा ,यही उपाय है। कागजी खानापूर्ति के बाद अश्विनी का ऑपरेशन कर, बच्चेदानी निकाल दी गई ।
अश्विनी और उसके माता-पिता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । सारी उम्मीदें ,आशाएं टूट कर बिखर गई थीं।अजीत जी ने परिस्थितियों से समझौता करने , जुही और अश्विनी को ढाढस बंधाया । उन्होंने सब के फोन को स्विच ऑफ कर दिये । दो दिन बाद अश्विनी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया । एक हफ्ते बाद चेकअप के लिए बुलाया था ।
अश्विनी को उसके माता-पिता घर न ले जाकर होटल ले गए । हफ्ते भर बाद चेकअप करवा कर , वे सीधे नागपुर दीनदयाल जी के यहां पहुंचे। दीनदयाल अजीत के जिगरी दोस्त हैं । एनजीओ के वे सक्रिय कार्य करता हैं ।
अश्विनी नहीं चाहती थी कि वह अब अर्जुन से विवाह कर, उसे व उसके माता-पिता को दुखी करे । वह जानती थी , अर्जुन उससे इतना प्यार करता है कि सब कुछ जानने के बाद भी उसी से शादी करेगा । अश्विनी के माता-पिता भी जान गए थे ,अश्विनी का विवाह करना एक दुर्लभ कार्य हो गया है । इसीलिए किसी को बिना कहे उन्होंने यह कदम उठाया था ।
अर्जुन दो दिनों से दुविधा में था । अश्विनी का फोन नहीं लग रहा था ,सबको चिंता हुई । अर्जुन तीसरे दिन सीधा नाशिक, अश्विनी के फ्लैट् पहुंचा। फ्लैट में ताला पड़ा था। उसने चौकीदार से पूछा। उसने बताया, 'अश्विनी को गाय ने सिंग मारकर पटक दिया, जब वह मॉर्निंग वॉक पर जा रही थी। उसे सिटी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है। उसे इतना ही मालूम है।'
अर्जुन वहां से सीधा सिटी हॉस्पिटल पहुंचा । वहां रिसेप्शन में तलाश की तो पता चला, अश्विनी का हॉस्पिटल में बच्चेदानी निकलवाने का ऑपरेशन हुआ था । कल ही वह डिस्चार्ज हो चुकी है ।
अर्जुन, गोविंद से मिला । उसे सारी दास्तां सुनाई । गोविंद ने उसे धीरज बांधा बोला ," अश्विनी कहीं भी हो, मैं ढूंढ निकाल लूंगा ।" जब अर्जुन के माता-पिता ने हकीकत सुनी ,उनके पैरों तले जमीन खिसक गई । 'बेटे के नसीब में आगे क्या?' यह सोच कर उनकी नींद उड़ गई थी।
अर्जुन और गोविंद ने अश्विनी की तलाश में उसके रिश्तेदार, सहेलियां हर तरफ निगाहें फेरी ,पर कुछ हाथ नहीं लगा ।
नागपुर में अजीत के मित्र दीनदयाल ने, मकान किराए से लेकर, अजीत के परिवार की व्यवस्था कर दी थी ।
नागपुर आए अश्विनी को छह महीने बीत चुके थे। अश्विनी ने एक सात माह की लड़की गोद ली । उसका नाम 'परी' रखा । उसी के सहारे पूरी जिंदगी बिताने का निश्चय उसने कर लिया था । वहीं एक नया जॉब भी उसने ढूंढ लिया ।अजीत एनजीओ के साथ काम करने लगे थे ।
दिन बीत रहे थे । नागपुर में पहुंचे अश्विनी को पूरा एक साल बीत चुका है । अजीत ने नाशिक का फ्लैट बेचकर , नागपुर में फ्लैट लेने के लिए एग्रीमेंट कर लिया है । यह सब काम उन्होंने एक बिल्डर से करवाया ।
इधर जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, अर्जुन निराशा के अंध:कार में खो रहा था । सुशील जी ने मुंबई का फ्लेट बेचकर, पुणे में अच्छा सा फ्लैट, गोविंदा की सहायता से खरीद लिया । अब वह अर्जुन के साथ पुणे में रहने लगे थे । शीला-जी अर्जुन की शादी के पीछे पड़ी थीं । बोलतीं, " अश्विनी अब तक नहीं लौटी बेटा। उसने हमें समझा नहीं ।ऐसी स्थिति में हम उसका सहारा ही बनते । पर अब एक साल बीत चुका है । लड़की वालों की तरफ से रिश्ते आ रहे हैं । मान ले कब तक आस लगाए बैठा रहेगा?" अर्जुन सिर झुकाए सुनता रहता और वहां से निकल जाता ।
एक दिन अश्विनी ऑफिस जाने के तुरंत बाद गोविंद, अजीत-जी के घर पहुंचा । गोविंद को अचानक देखकर जूही घबरा गईं । " अरे आप? कैसी हैं आंटी ? "गोविंद ने आश्चर्य जताया । जूही पूछीं " तुम यहां कैसे ? " " सॉरी ऑंटी मुझे ऊपर जो तिवारी जी रहते हैं 302 में उनसे मिलना था । गलती से मैं 202 में आ गया । लेकिन खुशी है, आपसे मुलाकात हो गई ।" जूही ने अर्जुन के बारे में पूछा ,तो उसने कह दिया कि दो माह पहले अर्जुन की शादी हो चुकी है । गोविंद झूठ बोला था । उसे मालूम था ,जूही खुलकर तभी बात करेंगी, जब उन्हें विश्वास होगा कि अर्जुन की शादी हो चुकी है ।
जूही ने शांति की सांस ली। और अब तक की पूरी कहानी गोविंदा को सुनाई। अजीत ने कहा ," बेटा अच्छा हुआ अर्जुन ने शादी कर ली ।" उन्होंने उसे परी से मिलवाया ।गोविंद अंकल चुटकी में उसके दोस्त बन गए । गोविंद फिर मिलने का वादा कर चला गया ।
चार महीने पहले , अश्विनी को अर्जुन, गोविंद ढूंढ नहीं पाए ,तब गोविंद ने बिल्डर एसोसिएशन में अपील की थी ,' अजीत मिश्रा नाम के व्यक्ति नाशिक में फ्लैट बेचें, या भारत में कहीं भी फ्लैट खरीदें, तो उनका फोन नंबर और घर का पता मुझे भेजा जाए । मेरा कुछ हिसाब उनसे बाकी है ।"
जब बिल्डर से अजीत ने नागपुर में फ्लैट का एग्रीमेंट किया , तुरंत उस बिल्डर ने गोविंद को उनके घर का पता और फोन नंबर की खबर की। खबर मिलते ही गोविंद नागपुर आया ।अश्विनी के घर की राह पकड़ी और काम में सफल हुआ ।
अश्विनी के घर से निकलकर गोविंद ने यह खुशखबरी अर्जुन को दी और कहा ,"अंकल-आंटी के साथ नागपुर तुरंत पहुंचो ।"
तीनों उसी दिन नागपुर रवाना हुए । नागपुर पहुंचने पर गोविंदा ने उन्हें अश्विनी की दुख भरी कहानी सुनाई। सभी बहुत दुखी हुए । जल्द ही अजीत जी से मिलकर , बात करने का सबने मानस बनाया ।
अश्विनी के ऑफिस जाने के बाद , चारों उसके घर पहुंचे । अजीत और जूही आश्चर्य और घबराहट में कुछ बोल नहीं पा रहे थे । हिम्मत जुटाकर उन्होंने अर्जुन को बधाई दी ।
सुशील मुस्कुरा कर बोले, " अपनी बेटी छुपाए रखोगे तो मेरा बेटा किससे शादी करेगा ? अभी तो हम अर्जुन के लिए आपकी बेटी का हाथ मांगने आए हैं । " अजीत दुखी हुए बोले, " कैसे संभव है ? यह नहीं हो सकता।" सुशील बोले , " गोविंदा से पूरी जानकारी हमें प्राप्त हुई है । तभी हम ने यह कदम उठाया ।"
अजीत और जूही खुश हुए, दोनों परिवारों ने एक दूसरे को आपबीती सुनाई । अश्विनी के माता-पिता तो गद्गद् हो गए । वे जानते थे, अश्विनी की शादी होना , एक दुर्लभ कार्य है । बेटी को इतना अच्छा ससुराल मिले , इससे अहो भाग्य क्या हो सकता है।
अश्विनी का ऑफिस छूटने के समय ठीक अर्जुन वहां पहुंचा । अर्जुन को सामने देख अश्विनी घबरा गई । उसी घबराहट में "बधाई हो ।" कहा और जाने लगी । अर्जुन ने उसे रोका ,"अरे इतने दिन बाद मिले हैं, कॉफी तो पीते जाओ।"
कॉफी पीते हुए अश्विनी ने कहा, " "गोविंदा मिला था । उसने तुम्हारे शादी की बात बताई। कब मिलवा रहे हो अपनी पत्नी से ? " "कब क्या ,अभी मिलो ।" "अरे! तो है कहां ? छुपा रखी है क्या ? " अश्विनी ने कहा । अर्जुन बोला ," मैंने नहीं छुपाया , वह खुद चुप गई थी । मैंने ढूंढ निकाला, सामने बैठी है मेरे । जल्द से जल्द शादी कर रहा हूं उससे ।" अश्विनी आश्चर्य से देखने लगी ।
अर्जुन ने उसका हाथ थाम कर बोला , "अश्विनी मेरा प्रेम इतना कच्चा और छिछोरा समझा तुमने ? सारा अकेली सहती रहीं । मुझे पराया कर दिया । तुम जानती हो , मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता । "अश्विनी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी । बोली ," मुझे माफ कर दो अर्जुन ।"दोनों ने अपनी अपनी कहानियां सुनाई ।
" अर्जुन तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे माता-पिता को मैं दुखी नहीं करना चाहती थी । " "अरे पगली, संतान की खुशी से बढ़कर माता-पिता की खुशी क्या होती है? परी जैसी होती पोती पाकर दोनों बहुत खुश हैं ।" अर्जुन बोले जा रहा था ,"और हां गोविंद ने हमारे बगल वाला फ्लैट किराए से दिया है । एक महीने बाद खाली होगा। अंकल-आंटी को वहीं शिफ्ट कराना है। शादी कर के मैं घर जमाई बनने वाला हूं ।"अश्विनी शरमाते हुए हंस दी।
अश्विनी और अर्जुन, अश्विनी के घर पहुंचे । सभी उनका इंतजार कर रहे थे । " गोविंद मिठाई लेकर आना बेटा , सभी का मुंह मीठा करवाते हैं । " अजय ने कहा । "मैंने पंडित जी को मुहूरत निकलवाने फोन किया है । वह भी अभी आते ही। होंगे ।
" पंडित जी, जल्दी का मुहूरत निकालिए ।"शीला जी ने फरमाया। "यह लीजिए अगले हफ्ते एक अद्वितीय मुहूरत है। जल्दी तो नहीं होगी ?" सुशील बोले ,"पंडित जी, बिल्कुल नहीं। सभी को निमंत्रण फोन से करते हैं ।बाकी सब तो आजकल रेडीमेड मिलता ही है । अब ज्यादा इंतजार करने की किसी में ताकत नहीं है ।"
निश्चित मुहूरत पर दोनों की शादी हुई। गोविंदा ,अर्जुन से बोला "तेरी शादी हो गई पर घर जमाई तो तू पंद्रह दिन बाद बनेगा ,जब अंकल आंटी को उनके फ्लैट में बसा दूंगा ।"सब हंस दिए।
अर्जुन ने तत्परता से कहा " जीवन में प्रेम करने वाला दोस्त, मां-'पिता, सास-ससुर मुझे मिले हैं । उन्हीं के प्रेम से मेरा प्रेम संकटों की दल-दल से निकल कर सफ़ल हुआ। मेरा-अश्विनी का प्रेम कामयाब रहा ।मैं घर जमाई बनने की राह देख रहा हूं। मुझे सभी के प्यार कि जरूरत है । "
गोविंद ने कहा" हां अर्जुन प्रेम पर ही तो दुनिया टिकी है । " 'ढाई आखर प्रेम के ----'
अलका पुणतांबेकर _ _________