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पवित्र प्रेम

शोपिजन जलेबी प्रेमकथा प्रतियोगिता


शीर्षक- पवित्र प्रेम


प्रसंग अपने दूर के रिश्ते की बहन की शादी में गया हुआ था। उसके माता पिता किसी और रिश्तेदार के यहाँ विवाह कार्यक्रम में गये थे। प्रसंग हल्दी के दिन वहाँ पहुँचा था। सालों बाद  सबसे मिलना जुलना हुआ था इसलिए उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। नीरा भी बहुत ख़ुश हुयी जानकर कि उसके बचपन वाले प्रसू भाई सालों बाद उसकी शादी में आये हैं।

               सारी रस्मो-रिवाजों का सिलसिला चल रहा था। प्रसंग अपने भाइयों संग खाना खा रहा था, तभी उसकी नजर मंडप के एक ओर गयी जहाँ बहुत सारी लड़कियाँ एकजुट होकर बैठी थी। सबने रस्म के हिसाब से पीले रंग के कपड़े पहन रखे थे। सामने खूबसूरत अप्सराएं हो तो जाहिर सी बात है कि नजरें तो जाएंगी ही। .....मगर, यहाँ बात प्रसंग की थी, जो लडकियों को घूरना, बात करना तो दूर की बात...उन्हें देखता तक नही था। फिर भी आज जानें क्यूँ वह उस  लड़कियों की तरफ ही देखे जा रहा था। इसकी वजह थी वहाँ बैठी एक खूबसूरत सी लड़की। जिसने पीले रंग की सलवार कुर्ती के साथ करीने से दुपट्टा सजाया हुआ था। न दुबली, न मोटी उस लड़की की सादगी ही सबसे बड़ी सुंदरता थी। उसकी सागर से भी गहरी आँखे, जिनमें न चाहते हुए भी प्रसंग खोता चला जा रहा था। 

खैर, जैसे तैसे करके उसने खाना खत्म किया। तबतक हल्दी खेलने का कार्यक्रम शुरु हो चुका था। सभी के चेहरे पीले रंगों से सज चुके थे। वह लड़की तो उन रंगों के साथ और भी निखरने लगी थी। प्रसंग उसे ही देखे जा रहा था और मन ही मन सोच रहा था--" कौन है ये लड़की, पहले तो कभी नही देखा? क्या नाम है इसका? कितनी मासूम है ये। .....काश... इससे बात करने का मौका मिल जाये, पर कैसे मिलेगा आसपास तो सारी तितलियाँ मंडरा रही हैं।"


हल्दी खत्म होने के बाद सभी हाथ-मुँह धोने चले गए, बस वह लड़की वहाँ बैठी थी और पास रखे बोतल के पानी से रुमाल गीला करके अपने मोबाइल में देखकर अपना चेहरा साफ कर रही थी। प्रसंग उसी के तरफ बढ़े जा रहा था कि उस लड़की का बोतल नीचे गिरकर लुढ़कते हुए प्रसंग के पैर तक जा लगा। लड़की ने सर उठाकर प्रसंग को देखा फिर बोतल को।


प्रसंग बोतल उठाकर  उसके पास जाकर  बोतल देने लगा तो उस लड़की ने प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ थैंक्यू कह दिया। प्रसंग तो एकटक उसकी मुस्कुराहट देखता रह गया। जितनी खूबसूरत वह थी, उससे कही ज्यादा खूबसूरत उसकी मुस्कुराहट थी। उसके हँसने से उसके गाल पर गहरे डिम्पल बन जाते थे, जो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते थे। 


प्रसंग तो उससे बात करना चाहता था और कुछ बहाना सोच रहा था कि क्या बोले तभी उस लड़की ने पानी का बोतल आगे करते हुए कहा -"लीजिये।"


प्रसंग हैरानी से उसे देखते हुए बोला -"मगर मुझे प्यास नही लगी है।"

इस पर वह बोली- पीने के लिए नही दे रही हूँ, आपका चेहरा खराब है, इससे साफ कर लीजिए।


तभी प्रसंग अपने हल्दी लगे चेहरे को छूते हुए बोला- जी नही,मैं वॉशरूम से धोकर आ जाऊँगा।

कहते हुए प्रसंग वहाँ से चला गया। आधे घण्टे बाद वापिस आया तो उसने सब ओर देखा पर वह लड़की न दिखी। उसकी बेताबी उस लड़की को देखने की थी। रात को संगीत समारोह चल रहा था, सभी एक से बढ़कर एक नृत्य प्रदर्शन किए जा रहे थे। प्रसंग भी इसका आनंद ले रहा था मगर मन में वही लड़की समाई हुयी थी। वह कुछ काम से थोड़ी देर के लिए वहाँ से हट गया, जब वापिस आया तो देखा वो लड़की एक जगह बैठी हुई थी। सभी नृत्य देख रहे थे मगर प्रसंग उस लड़की को देखे जा रहा था तभी किसी ने माइक पर कहा- अब हमारी आज की बेस्ट सिंगर मैडम द्वारा सिंगिंग परफॉर्म की बारी है। स्वागत है हमारी रति दीदी का। 


किसी ने लाकर माइक उस लड़की के हाथ में पकड़ा दिया तभी प्रसंग को पता चला कि उस लड़की का नाम रति है। यथा नाम तथा गुण। रति ने बड़े सुरीले आवाज में गाना गाया -"हाथ सीता का राम को दिया, जनक राजा देंगे और क्या। बेटी बाबुल के दिल का टुकड़ा, दहेज कहाँ इससे बड़ा।"

पूरा गाना खत्म होने तक सबकी ऑंखें आँसुओ से भीग चुकी थी। 

खैर संगीत खत्म हुआ और सभी सोने जाने लगे तभी प्रसंग ने गौर किया कि रति किसी के सहारे के साथ धीरे धीरे चलकर अंदर जा रही हैं। अब तो मानो प्रसंग चैन ही नही था। रात को सोया भी तो सामने रति ही दिखाई देती थी। वह सोचने लगा कि- क्या हुआ है रति के साथ, वह क्यूँ ऐसे चल रही थी। मुझे पता लगाना ही होगा, और सिर्फ कल का दिन है मेरे पास। सोचते हुए वह सो गया।।


अगले दिन खासी चहल पहल थी। कोई भी खाली नही था, सब व्यस्त थे। प्रसंग एक कमरे में गया, जहाँ एक चाची कुछ सामान खोज रही थी। वहीँ रति भी थी। चाची सामान लेकर चली गयी। बाकि सब मंडप की तरफ थे। प्रसंग ने हिम्मत करके रति से पूछा-  आ.. आप.. आपके पैर?

तभी वहाँ फिर चाची आ गयी और एक अन्य औरत भी। रति उनके साथ चली गयी। प्रसंग ने चाची से कहा- चाची ये रति कौन है? और इसके पैर ऐसे?


तब चाची ने बताया कि रति, नीरा की भाभी की सगी बड़ी बहन है और उसके पांव में कुछ नस सम्बन्धी परेशानी हैं, जिसके कारण वह हम सबकी तरह चल नही सकती है। घरवालों ने लाख इलाज करवाया पर नतीजा कुछ न निकला। यह बच्ची तो बिलकुल टूट गयी है प्रसंग  पर  साथ ही बहुत हिम्मती लड़की है बेटा, जैसे भी हो मुस्कुराकर जिंदगी जी रही है। बहुत व्यवहार कुशल है। भगवान भी बड़ी अजीब लीला करता है इत्तनी सी बच्ची के ऊपर इतना बड़ा संकट दे दिया।

रति के बारे में सुनकर प्रसंग को बेहद तकलीफ हुयी। 


शाम को पार्टी के दौरान भी प्रसंग की नजर रति पर ही थी। आज रति तो बहुत खूबसूरत लग रही थी। अगले दिन सभी अपने घर वापिस चले गए। 

प्रसंग भी वापिस आ गया पर उसका दिल रति के पास ही छूट गया था। किसी भी काम में उसका मन नही लग रहा था। प्रसंग समझदार था उसने लाख कोशिश की रति को भुलाने की मगर भूल न सका और जब सब्र जवाब दे गया तो नीरा को फोन करके रति का नम्बर मांग लिया। रति को संदेश भेजा तो उस समय तुरन्त उसने जवाब दिया। 

प्रसंग रोज उससे बातें करने लगा। रति प्रसंग को अपना अच्छा दोस्त समझकर अपनी बीमारी से जुड़ी सारी बातें साझा किया करती थी। लगभग 1 साल यूँ ही बीत गया। नीरा की छोटी बहन मीरा की शादी थी तो दोनों की भेंट फिर वहाँ हो गयी। इस बार प्रसंग के माता पिता भी साथ थे। 

इस बार मौका देखकर प्रसंग ने रति से अपने दिल की बात कह दी और पूछा -" मुझसे शादी करेंगी?"


रति तो हैरान रह गई उसे अहसास भी नही था कि इतनी बड़ी बात प्रसंग बोलेगा। रति अपना हाथ छुड़ाकर बोली -"ये नामुमकिन है, आप और हममें बहुत अंतर है। हम किसी का जीवन बर्बाद नही करना चाहते। आपको हमने सिर्फ अपना मित्र समझा था और कुछ नही... कुछ भी नही।" बोलते हुए रति रोने लगी और धीरे से वहाँ से चली गयी।


यह बात प्रसंग ने अपने माता पिता को बतायी तो उन्होंने भी प्रसंग पर गुस्सा निकाला कि- तुम ऐसी लड़की के साथ जीवन बिताने के बारे में सोच भी कैसे सकते हो? जानते हो न उसकी क्या हालत है। फिर भी तुम उसके लिए क्यों अपनी जिंदगी दाँव पर लगा रहे हो बेटा?....


जानता हूँ पापा, सब जानता हूँ। पर आप एक सवाल का जवाब दीजिये मुझे कि इन सबमें रति की क्या गलती है, उसे किस बात की सजा मिल रही है। बाहर से हँसती तो है पर अंदर से टूट चुकी है वो। और अगर मैं उसे कुछ खुशियाँ देना चाहता हूँ तो इसमें बुराई क्या है पापा?.... आपके और माँ की अनुमति के बिना यह सम्भव नही है इसलिए आपसे निवेदन करता हूँ कि कृपया इस रिश्ते के लिए हाँ...... प्रसंग ने इतना ही कहा था कि उससे पहले बीच में ही उसकी माँ बोल पड़ी - बस, प्रसू बहुत हो गया तमाशा। तुझे पूरी दुनिया में पसन्द करने को बस एक वही लड़की मिली थी। कान खोलकर सुन लो, वो लड़की हमारी घर की बहू कभी नही बनेगी.. समझे तुम! ( फिर अपने गुस्से को काबू करके वे आगे बोली) देख प्रसू, तु हमारा इकलौता बेटा है। हमारी भी कुछ तमन्नाएं है तेरी शादी को लेकर। तु समझता क्यों नहीँ है मेरे बच्चे, उस लड़की के साथ तु कभी खुश नही रह सकता। 


यह सारी बातें दरवाजे के पास  दूसरे कमरे में बैठी रति सुन रही थी। उसने गुस्से और दुःख से अपनी मुट्ठियाँ बांध रखी थी। इस समय वह कुछ सोच रही थी।

शाम को नीरा और रति एक कमरे में बैठी थी, वहाँ कुछ देर बाद प्रसंग आता है जिसे देख रति गुस्से में बोलती है- किस पागलखाने से आप अपना दिमाग उठा लाये हैं? आपको इतनी सी बात समझ नही आ रही हैं क्या? बस प्यार,,, प्यार की रट लगाये हुए हो। कुछ नही होता ये प्यार, जहाँ जिम्मेदारी की बात आती है वहीँ प्यार समाप्त हो जाता है। आप अपने माता पिता की बात मान लीजिए और..... रति की बात बीच में काटकर प्रसंग बोल पड़ा।


-और, और क्या? मुझे किसी की बात से कोई फर्क नही पड़ता है। मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि मुझे आपसे बहुत प्रेम हैं। विवाह करूँगा तो केवल आपसे, वरना... वरना अकेले ही ठीक हूँ। आप मुझसे प्यार करती हैं कि नही?  (प्रसंग के पूछने पर रति चुप पड़ गयी) बोलिये रति, चुप क्यों हो गयी। हाँ.... या... ना?


रति गुस्से में बोली --नही करते किसी से प्रेम, खुद से भी नही, किसी से नही। आप मेहरबानी करके हमारा पीछा छोड़ दीजिए। प्रेम करते हैं न आप हमसे, तो ठीक है आपको इसी प्रेम की कसम अपने माता पिता की बात मान लीजिए और नई जिंदगी की शुरुआत कीजिये। 


इस बात को करीब 3 महीने बीत चुके थे। दोनों के बीच कोई बात नही होती थी। रति के कसम का मान रखते हुए प्रसंग ने घर में कह दिया था कि वे जिस लड़की को पसन्द करेंगे वह उसी से शादी कर लेगा। उसके माता पिता भी खुश थे इस निर्णय से।


उस रात माँ ने प्रसंग को कहा कि हमें लड़की पसन्द आ गयी है प्रसू, कल तुम्हें भी साथ चलना है देखने।


-मैं क्या करुँगा माँ वहाँ, आपको पसन्द तो मुझे भी पसन्द है। बोलते हुए प्रसंग आधा खाना खाकर ही उठ गया।


थोड़ी देर बाद जब उसके पिता उसके कमरे में गये तो देखकर हैरान रह गए। प्रसंग नीचे जमीन पर बिस्तर से टिककर बैठा था और अपने मोबाइल में रति की फोटो देख कर रो रहा था और कह रहा था - मेरे दिल में जो जगह आपकी है रति, उसे कोई नही ले सकता। चाहे वो कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो...मैं मन से केवल आपका था, हूँ और रहूँगा। पता है मुझे कि आप भी मुझसे प्रेम करती हो। मुझे माफ़ कर देना रति आपको खुशियाँ नहीँ दे पाया मैं। ( बोलते हुए वह दिल की गहराई से रोने लगा।)


अपने सामने अपने जवान बेटे को रोते देखकर उसके पिता एकदम सन्न रह गए। आसान नही होता किसी पिता के लिए अपने बेटे को यूँ रोता हुआ देखना। पुरुष बहुत मजबूत होता है, कभी रोता नही है। पर जब वह टूट जाता है तब बिखरकर बच्चों की तरह रोने लगता है।


उसके पिता चुपचाप अपने कमरे में जाकर बैठ गए।उनकी आँखें नम थी। उन्होंने सारी बात प्रसंग की माँ को बतायी और  कहा - हम प्रसू के साथ ठीक नही कर रहे शोभा! आज जिस तरह से मैंने उसे देखा है न, इतना लाचार और बेबस उसे पहले कभी नही देखा था। अपनी आँखों के सामने अपने कलेजे के टुकड़े को रोता देखा है मैंने शोभा। (बोलते हुए उनका गला रुंध गया था)

 बृजेश जी को सम्भालते हुए शोभा जी बोली - आप खुद को सम्भालिए जी, हम गलत नही कर रहे हैं। हमारा बेटा है प्रसू ,उसके दुश्मन नही है हम। उसका भला ही चाहते हैं जी। रति से हमारी कोई निजी दुश्मनी नही है । वह बच्ची मुझे भी बहुत पसंद है मगर जिस हालात में वह है उसमें उसे हम उसे अपने घर की बहू कैसे बनाएं।


-बात तो तुम्हारी भी सही है शोभा मगर मुझे लगता है हमें रति के बारे में एक बार सोचना चाहिए। मान लो उसके जगह अगर हमारी बेटी प्रति होती तब भी क्या हम यही सोच रखते। बृजेश जी कुछ सोचते हुए बोले फिर दोनों ने साथ में कुछ निर्णय लिए।


अगले दिन बृजेश जी और शोभा लड़की देखने जा रहे थे साथ में प्रसंग को भी मना लिया था। लड़की के घर के आगे जब वे पहुँचे तो प्रसंग की बुझी सूरत देख माँ मजाकिया लहजे में बोली - अजी सुनते हो, देखो अपने लाडले को कैसी सूरत बना रखी है? लड़की देखेगी तो क्या सोचेगी कि किस बंदर से रिश्ता तय हुआ है मेरा। बोलकर शोभा हँसने लगी। 


सभी अंदर पहुँचे तो प्रसंग देखकर हैरान हो गया क्योंकि ये रति के माता पिता थे और रति भी थी। प्रसंग हैरानी से अपने माता पिता की ओर देखने लगा तो उन्होंने मुस्कुराकर अपनी पलकें झपका दी। फिर तो मानो प्रसंग फूला न समाया और ख़ुशी में जाकर उनके गले लग गया।


कुछ देर बातों के बाद बृजेश जी ने रति के पिता से सीधे ही कह दिया - मेरा बेटा प्रसंग आपकी बेटी को पसन्द करता है भाईसाहब। हमें भी रति पसन्द है और हम दोनों के विवाह के बारे में आज आपसे बात करने आये हैं। (रति के पिता असमंजस में कभी रति को तो कभी प्रसंग को देखने लगे तब बृजेश जी आगे बोले) भाईसाहब हमें रति बिटिया की बीमारी के बारे में सब पता है और यकीन मानिए यह एक बेटी के पिता का वादा है आपसे कि आपकी रति मेरे घर की बहू नही बेटी बनकर रहेगी और हमसे जो बन पड़ेगा उसका इलाज करवाएंगे। हमें बस अपनी रति दे दीजिए।


रति के पिता तो इतनी आत्मीयता भरी बातें सुन गदगद हो गए और हाँ में सर हिला दिया।


कुछ देर बातें होती रही फिर रति के माता पिता, प्रसंग के माता पिता के साथ बगीचे में चले गए। बैठक में सिर्फ प्रसंग और रति ही सोफे पर बैठे थे। प्रसंग खड़ा हुआ और रति के पास जाकर अपने दोनों हाथ पीछे करके झुककर उससे बोला  -  ह्म्म्म...अब भी हमारी होने वाली धर्मपत्नी जी हमसे बात करेगी या नही करेगी?


रति ने नजरे नीची किये हुए ही जवाब दिया -- उस दिन जब आपने हमें प्रेम प्रस्ताव दिया था तभी से या सच कहूँ तो पता नही कब से हम आपको चाहते थे मगर अपनी कमियों के कारण कभी कह न सकें। कहते भी तो क्या कहते आखिर हमें समझता कौन? पर आज... आज मैं  आपसे कहना चाहती हूँ कि मैं आपसे बहुत बहुत प्रेम करती हूं। इतना प्रेम...जो आपके बिना जीवन की कल्पना भी नहीँ कर सकती। आपके आलावा और किसी के लिए मेरे मन में ऐसी भावनाएं कभी नही आई, जो आपके लिए महसूस करती हूँ। भले ही हमने कहा था कि आप किसी और से विवाह कर लीजिए पर उस दिन से हर पल, हर लम्हा हम कैसे घुट-घुट कर जिए हैं, ये हम ही जानते हैं। हम आपसे बहुत प्रेम करते हैं प्रसंग जी, आपके बिना हम जी नहीँ पाएंगे। (कहते हुए रति की आँखे नम हो गई और उसके आँसू बहने लगे।)


तभी प्रसंग उसके सामने घुटनों के बल बैठकर अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा थाम उसके आँसू पोछते हुए बोला - आखिरी.... आज आखिरी बार ये आँसू आपकी आँखों पर बह रहे हैं,क्योंकि आज के बाद आप की इन खूबसूरत आँखों पर सिर्फ खुशियाँ नजर आएंगी रति। वादा करता हूँ आपसे, जब तक मेरी सांसे चलेंगी तब तक आपको वह हर ख़ुशी दूँगा, जिसकी चाहत हर लड़की करती है। आप आज के बाद कभी नही रोएंगी। अब से आपके सारे दुःख, सारे तकलीफ, सारे दर्द मेरे होंगे और मेरी सारी खुशियाँ, सारी  ख़ुशी के पल आपके होंगे। 

और एक बात रति, आपको लगता है कि सिर्फ आपके पास ही कमियाँ हैं, गलत रति.... बिलकुल गलत। कमियां तो हर इंसान में होती है, हमें उन कमियों को दरकिनार रखते हुए सामने वाले व्यक्ति में खूबियाँ खोजनी चाहिए। मुझे आपमें सिर्फ खूबियाँ दिखाई देती है, कमियां नही। मैं तन. मन. धन से सिर्फ और सिर्फ आपका हूँ और हमेशा रहूँगा। (फिर अपना दायाँ हाथ  रति के आगे करते हुए आगे पूछा ) सात जनम के लिए साथ देंगी न मेरा ..........?


रति ने एक नजर प्रसंग को देखा फिर मुस्कुराकर शर्माते हुए अपना दाहिना हाथ प्रसंग के हाथ पर रख दिया। प्रसंग ने मजबूती से उसका हाथ थाम लिया कभी न छोड़ने के लिए। 


आखिर तमाम मुश्किलों के बावजूद प्रसंग और रति का प्रेम जीत  ही गया। कुछ दिनों में सबके आशीर्वाद से उनकी शादी हो गयी। प्रसंग और रति बेहद खुश थे।



--शिखा गोस्वामी "निहारिका"

मारो, चंद्रखुरी (मुंगेली) 

छ्त्तीसगढ़



घोषणा-प्रस्तुत कथा हमारी मौलिक, अप्रकाशित एवं स्वरचित है।किसी भी तरह से किसी की कॉपी नही है।

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