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लावारिस

लावारिस 


दुनिया मुझे लावारिस की गाली देती है,

दिल में नश्तर से चुभ उठते हैं तब,

फिर भी दिल से उनकी भलाई की आवाज ही निकलती है,

कभी सोचता हूँ काश!

मैं इंसान ना होकर राह में पड़ा कोई लावारिस पत्थर होता,

रोज लोगों से यह ताना तो नहीं सुनना पड़ता,

लोगों की हजारों ठोकरें खाकर भी,

लावारिस सा पड़ा रहता,

सिर्फ इस इंतजार में कि काश!

कभी किसी के काम आ सकूं,

किसी के मकान की नींव में जगह बना सकूं ,

या फिर काश!

कोई मुझसे ठोकर खाकर ही सम्भलता,

क्योंकि सुना है,

लोग दुनिया में ठोकर खाकर ही सम्भलते हैं।

(प्रहलाद नारायण माथुर)



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