रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

पिता

          पिता

कब हम आपकी गोदसे उतरकर 

आपकी उँगली पकडकर चलने लगे

कब उँगली छोडकर दौडने लगे

हमे याद ही नहीं पापा।

 

कब आपने पीछे पकडकर

हमे साईकिल चलाना सिखा़ई

और आप हमारे पीछे है 

इस विश्वास पर हम चलते रहे।

 

तब से कभी पीछे मुडकर

देखा ही नहीं हमने

आप हमारी राह देख रहे 

वहीं खडे हो यह ना जाना हमने।

 

हम बस अपनी ही 

मस्ती मे जीते रहे

आपकी संवेदनाओंको

नजरअंदाज करते रहे।

 

आज जब उस मोडपर 

खडे होकर जहाँ आपको

छोड आए थे

उस मोडपर खडे हैं हम।

 

आँखे आपकी याद में भर्रायी है

ओझल दृष्टी के सामने 

कुछ नजर नहीं आ रहा

सिवा आपके पापा।

       सौ ऐश्वर्या डगांवकर।

 

 

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु