शिक्षक दिवस की सार्थकता
#शिक्षक दिवस की सार्थकता
कल शिक्षक दिवस था। अच्छा लगा, साल में एक दिन हमारे शिक्षकों के लिए समर्पित दिन! अब यह बताना फिजूल ही होगा की शिक्षक दिवस क्यों और कब से मनाया जाता है क्योंकि आज के डिजीटल युग मे कोई भी जानकारी छिपी रहना नामुमकिन है।
व्हाट्सप्प, फेसबुक जैसी यूनिवर्सिटीज़ सुबह उठते ही हमें जागरूक और सचेत कर देती हैं, और हमारी यूथ बिग्रेड इसका बखूबी लाभ उठाती है। सही या गलत, यह अलग बात है।
भारत युवाओं का देश है और युवा बदलाव का प्रतीक! हर कोई नया करना चाहता है ताकि देश समाज में अपनी एक अलग पहचान बना सके और इसी लालसा में हम कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो गैर जरूरी तो होता ही है साथ ही उससे व्यक्ति विशेष की या उद्देश्य की मूल भावनाओं को ठेस पहुँचती है तथा हम मूल उद्देश्य से भी भटक जाते हैं। ऐसा ही कुछ कल देखने को मिला। हमने मनाया और पूरे जोश में मनाया, पर किसके लिए मनाया और क्यों मनाया? यही नहीं पता लगा। पूरी धरती, पूरा आकाश, पूरा जीव-जगत ही शिक्षक की उपाधि से विभूषित हो गया और बेचारा शिक्षक मुँह ताकता रह गया।
कल शिक्षक दिवस था और यह इसलिए भी था कि हम इस दिन शिक्षक जाति को सम्मानित और प्रोत्साहित भी करें ताकि वे खुद को विशेष महसूस कर सकें और अपने कर्तव्य का, दायित्व का और भी ईमानदारी और तत्परता से निर्वहन करते हुए देश की भावी पीढ़ी को कुशल और योग्य बना सकें।
वह शिक्षक ही होता है जो हमें ठोक बजा कर कच्चे घड़े से एक पक्का और चिकना मटका बना देता है। क्या ऐसा कोई और भी कर सकता है? नहीं न? माता-पिता हमे जरा भी दुखी या परेशान नहीं देख सकते, इसीलिए वे शिक्षक की तरह ठोक बजा भी नहीं पाते, हाँ, इसमे दोराय नहीं है कि प्राथमिक शिक्षा तो हमें अपने घर पर माता पिता से ही प्राप्त होती है पर असली शिक्षा या यूं कहें ठोक बजा कर, आग मे तपा कर खरा सोना बनाने का कार्य शिक्षक ही करते हैं।
बचपन में, और आज भी अगर मैं बाहर किसी हमउम्र से वाद विवाद करता हूँ, लड़ाई-झगड़े करता हूँ तो मेरे मम्मी-पापा, भाई-बहन, दोस्त यहाँ तक कि मेरा पालतू कुत्ता भी मेरा ही पक्ष लेता है। ये सब मिलकर मुझे ही सही मानेंगे पर क्या शिक्षक भी ऐसा करेंगे? जवाब यही होगा "नहीं" आखिर ऐसा क्यों? क्योंकि वे हमें अक्षर ज्ञान ही नहीं अपितु सही मायने मे सही गलत की शिक्षा देकर एक अच्छा नागरिक बनाते हैं। जहाँ घर में हम रिश्तों के प्रति भावुक और एक तरह से परिवारिक, सामाजिक व्यक्ति बनना सीखते हैं, वहीं विद्यालय से हम शिक्षक द्वारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से अनुशासित होकर एक अच्छे नागरिक बन कर निकलते हैं।
क्या हम हर किसी को अपनी बहिन का दर्जा दे सकते हैं? जबकि बहिन सा प्यार तो बहुत से लोग जता देते हैं। क्या हम हर किसी को माँ का दर्जा दे सकते हैं? जबकि कईयों का दावा होगा कि 'बेटा मैं तुम्हारी माँ जैसी हूँ।' क्या हम अपने पिता का दर्जा दे सकते हैं किसी को? नहीं न? तो फिर हम सारी जगती, सारे जीव-जगत को शिक्षक कैसे बोल बैठे? हाँ, हम सबसे सीखते हैं, सबको सिखाते भी हैं, तो इसका मतलब शिक्षक व्यर्थं का पद है। अगर ऐसा है तो भइया एक काम करो, विद्यालय की जरूरत अब खत्म! जब सारी जगती ही हमारा उपकार कर रही है तो ये दिन दिन भर विद्यालय, कॉलेज मे बैठने का क्या तुक है।
गूगल हमारा शिक्षक है, यूट्यूब हमारा शिक्षक है, कुत्ता हमारा शिक्षक है, बिल्ली हमारी शिक्षक है अरे यार गधा, घोड़ी सब शिक्षक हैं तो फिर ये स्कूल कॉलेज मे जो बैठा है वह क्या है? शो पीस ???
एक दोहा पढा था बचपन मे …
गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय,
बलिहारी गुरु आपनो, दियो गोबिन्द बताय।
इस दोहे में गोबिंद, भगवान कृष्ण ने खुद ही गुरु को श्रेष्ठ बता दिया। क्या गोबिंद से सीखने के लिए कुछ नहीं है? अगर है तो वे गुरु से कमतर क्यों?
यह दोहा गुरु की महिमा को इंगित करता है पर आज के वक़्त में यह भी व्यर्थ हो गया।
गुरु की महिमा को इंगित करता हुआ एक और दोहा देखिये---
कबीरा हरि के रूठते, गुरु के सरने जाय,
कहत कबीर गुरु रूठते, हरि नहीं होय सहाय।
शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि हम उन्हे सम्मानित, पुरस्कृत करके यह दिन उनके लिए खास बना कर उन्हे उनकी ज़िम्मेदारी, कर्तव्यों, दायित्यों का बोध करा सकें कि उनके कंधों पर ही देश की, अपने भारत देश की भावी पीढ़ी का सम्पूर्ण भार है और वे ही हम सबके कर्णधार हैं। न कि गूगल, कुत्ता, बिल्ली या धरती आकाश!
सबका अपना, अपनी जगह विशेष महत्व है और कृपया जोश मे आकर खुद को अलग दिखाने के चक्कर मे किसी की गरिमा, महत्व, योगदान को उनसे छीन कर किसी और को महिमा मंडित न करें।
बकिया गूगल डे भी आता है, मदर डे भी और एक एक कर कुत्ता बिल्ली डे भी और अंत मे सबको मिला कर धरती और पर्यावरण दिवस भी……
-----सूरज शुक्ला