मेरो गोविंद, मेरो गोपाल
गौरज बैला का दृश्य
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चारों ओर गोरज की सोंधी सोंधी महक ।वृन्दावन धाम फूलों से महकता एक ग्राम ।
सांझ की बेला भी उस रूप को देखे बिना कैसे विदा हो सकती है ?
जिस रूप ने तीनों लोकों को वश में किया हुआ था।
तभी सारे बाल सखा मवेशियों को एकजुट करने में जुट जाते हैं।
तभी एक गोपाल कहता है।
" ये सभी हमारी अब सुनते कहां हैं? जब तक वह सांवरा अपनी मधुर बांसुरिया बजाता नहीं, ये कहां हमारे वश मे आने वाले हैं?
सही कहा ! जाऔ कहो उस, कन्हैया से एक मधुर बांसुरी की धुन बजा दे ।यह सारे मवेशी खुद ही खिंचे चले आएंगे।
फिर वह सांवरा, सलोना, घनश्याम , पीतांबर धारी, सिर पर मोर मुकुट को सजाए हुए। माटी के टीले पर बैठ कर बांसुरी जो बजाना शुरू कर देता है।
मवेशी क्या, सभी पशु-पक्षी, जीव जन्तु, गोप, गोपियां, वृन्दावन के सभी वासी अपनी सुध-बुध खोकर वहां खिंचे चले आते हैं ।
वह मनमोहन मधुर बांसुरी बजाते रहत। है। और सभी उसका आनंद लेते रहते हैं।
परन्तु कन्हैया जिसके नाम का सिमरन बांसुरी बजा कर रहे हैं ।वह गोरी राधिका जी तो अब तक आई नहीं ??
इस बात का लाभ उठा ,अन्य गोपियां कान्हा जी के ज्यादा समीप जा बैठ गई। सूर्य अस्त होने से कुछ क्षण पहले ,सांझ के नीलकमल सी सुन्दर नीले वस्त्र धारण किए हुए वह बरसाने की राजकुमारी राधा रानी ,छम-छम करती हुई अपनी पायल बजाकर सभी को अपनी उपस्थिति ज्ञात कराती हैं। तीखे -तीखे काजल से भरे नयनों से उन गोपियो को सचेत करते हुए ,माखनचोर से दूर बैठने का आदेश भी दिए देती हैं।
और फिर स्वयं अपने कृष्ण के समीप जा बैठतीं है मानो अपना एकाधिपत्य सिद्ध कर रहीं हो।
श्याम सुंदर भी इसी प्रेम के अधीन हो मुस्कुरा कर आंखें मूंद लेते हैं ।और फिर मन को मोहने वाली बांसुरी बजाने लगते हैं।
राधे-राधे!!
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महारास का दृश्य
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महारास
शिव जो एक महायोगी हैं। शिव जो महा ज्ञानी हैं।शिव जो एकांतवासी हैं।शिव जो समय से परे हैं। शिव जो आदि भी हैं, और अंत भी हैं ।
शून्य भी वही हैं ,और अनंत भी वही हैं।
शिव जो सभी ज्ञान का समावेश किए हुए हैं। शिव से ही सभी की उत्पत्ति हुई है ,और नष्ट भी उन्हीं से होना है।
शिव जो ग्रहस्थ होते हुए भी पूर्ण रूप से सन्यासी हैं।
सभी विरोधाभासों को अपने आप में समाहित किए हुए हैं।
शिव जो हिमालय क्षेत्र कैलाश वासी हैं ।वे,डमरू बजाते हैं, तांडव करते हैं। गले में सर्प को और माथे पर चंद्र को धारण करते हैं। वह आदिपुरुष हैं।
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शिव : यह किस प्रकार का रस प्रकाशमय होकर बह रहा है?
पार्वती : वृंदावन धाम , बंसीवट में श्री कृष्ण शरद पूर्णिमा के सुअवसर पर अपने भक्तों के साथ रास कर रहे हैं, प्रभु!
शिव : रास?
पार्वती: वह भक्त करोड़ों वर्षों से श्री कृष्ण की भक्ति कर रहे थे। और इस जन्म में वह उनकी भक्ति का फल उनके साथ रास करके दे रहे हैं।
जिसमें भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीं रह जाता ।
जीवात्मा और परमात्मा का मधुर मिलन ही रास कहलाता है।
शिव : श्री कृष्ण ?वह तो मेरे भी ईश्वर हैं ।और मैं भी उनका भक्त हूं ।
तो भला अभी तक मैं उनके इस रास में सम्मिलित क्यों नहीं हुआ ?
मुझे भी उनके साथ इस रास में सम्मिलित होना है।
पार्वती: परंतु भगवन ,रास में सिर्फ एक ही पुरुष है वह है ,श्री कृष्ण। उनके अतिरिक्त सभी भक्त गोपियां हैं ।श्री कृष्ण पुरुष तत्व को धारण किए हुए हैं और उनके भक्तों को स्त्री तत्व धारण करना होता है अन्यथा वह उनके साथ रास में सम्मिलित नहीं हो सकते।
शिव जो एक महापुरुष हैं ।शिव जो पुरुष तत्व का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।
परंतु अपने ईष्ट श्री कृष्ण के साथ रास में सम्मिलित होने के लिए गोपी वेश को धारण करते हैं।
वह लहंगा, चुनरी, श्रृंगार को धारण करते हैं।
और फिर पहुंच जाते हैं वृन्दावन धाम में ।
परंतु अन्य गोपियों से पृथक यह गोपी 9 फुट ऊंची अत्यंत बलशाली कुछ भिन्न प्रतीत होती है।
तो सभी गोपियों का ध्यान उसकी ओर चला जाता है।
इतनी ऊंची पूरी यह कौन है ?
दिखने में तो बहुत ही सुंदर है?
वहीं दूसरी ओर श्री कृष्ण पीतांबर धारण किए हुए। हाथों में मुरली और माथे पर मोर मुकुट को धारण किए हैं। श्याम वर्ण, मधुर बांसुरी बजा रहे हैं ।
बंसीवट पर सभी गोपियों के साथ बारी-बारी रास कर रहे हैं।
रास करते-करते वह इस ,
ऊंची -पूरी गोपी के साथ रास करने लगते हैं। और दोनों रास में इतने लीन हो जाते हैं।
अब महादेव की चुनरी भी सर से सरक जाती है। घूमते घूमते उनका लहंगा और जटाए दोनों घूमने लगते हैं।
सभी गोपिया एक तरफ हो जाती हैं और श्री कृष्ण और महादेव अब महारास करने लगते हैं।
महारास के इस आनंद में चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है ।
चारों ओर जीवन के रस का उत्सव मनाया जा रहा है।
परंतु राधा रानी श्री कृष्ण से रुष्ट हो जाती हैं।
तो उन्हें मनाने के लिए श्री कृष्ण उस सबसे अधिक लंबी गोपी (महादेव) जी का परिचय राधा रानी से कराते हैं। और कहते हैं ,
"मेरे सभी रास पर तो राधे तुम्हारा ही अधिकार है ।
राधे- राधे !!