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मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा   ये कहानी है भारत की महिला क्रांतिकारी
मातंगिनी हाज़रा की । उन्हें "बुढ़ी गांँधी " के नाम से जाना जाता है।

मातंगिनी हजरा का जन्म 19अक्टूबर 1870 के पूर्वी बंगाल( वर्तमान बांग्लादेश) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण 12 साल की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62 साल विधुर  त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया इस पर भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा 6 वर्ष बाद निः संतान ही विधवा हो गई पति की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र उनसे बहुत नफरत करता था  अतः मातंगिनी एक अलग झोपड़ी में रहकर मजदूरी करती थी और अपना जीवन यापन करती थी गांँव वालों के सुख दुख में सदा साथ रहने के कारण पूरे गांँव में मांँ के समान पूज्य हो गई।


1932 में गांँधी जी के नेतृत्व में देश भर के स्वाधीनता आंदोलन चला वंदे मातरम करते हुए प्रतिदिन निकलते थे जब ऐसा एक जुलूस घर के पास से निकला तो उसने बंगाली परंपरा के अनुसार उनका स्वागत किया और जुलूस के साथ चल के बाजार में एक सभा हुई सबके साथ स्वाधीनता संग्राम में तन मन धन से संघर्ष करने की शपथ ली।

मातंगिनी को अफीम की लत थी पर अब इसके बदले उनके सिर पर स्वाधीनता का नशा सवार हो गया  17 जनवरी 1933 को " कर बंदी आंदोलन " को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गवर्नर एंडरसन तामलुक आए थे तो उनके विरोध में प्रदर्शन हुआ मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झंडा लिए डटी थी  यह ब्रिटिश शासन के विरोध में नारे लगाते हुए दरबार तक पहुंच गई। इस पर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और 6 माह का सश्रम कारावास देखकर मुर्शिदाबाद जेल में बंद कर दिया।

1935 में तामलुक क्षेत्र भीषण बाढ़ के कारण हैजा और चेचक की चपेट में आ गया  ।मातंगिनी अपनी जान की चिंता किए बिना राहत कार्य में जुट गई। 1942 में जब "भारत छोड़ो आंदोलन" ने जोर पकड़ा तो मातंगिनी उसमें कूद पड़ी   8 सितंबर को तामलुक में हुए एक प्रदर्शन में पुलिस की गोली से 3 स्वाधीनता सेनानी मारे गए ।लोगों ने इसके विरोध में 29 सितंबर को और भी बड़ी रैली निकालने का निश्चय किया । इसके लिए मतांगिनी ने गांव-गांव में घूमकर रैली के लिए 5,000 लोगों को तैयार किया। सब दोपहर में सरकारी डाक बंगले पर पहुंच गए तभी पुलिस की बंदूके गरज उठी मातंगिनी एक चबूतरे पर खड़ी होकर नारे लगवा रही थी एक गोली उनके बाएं हाथ में लगी उन्होंने तिरंगे झंडे को गिरने से पहले ही दूसरे हाथ में ले लिया तभी दूसरी गोली उनके दाहिने हाथ में और उनके माथे पर लग गई और मातंगिनी वही गिर गई।
29 सितंबर 1942 को तामलुक बंगाल में इनकी मृत्यु हो गई ।

इस बलिदान से  पूरे क्षेत्र में  इतना जोश उमड़ा की 10 दिन के अंदर ही लोगों ने अंग्रेजों को खदेड़कर कर वहांँ स्वाधीन सरकार स्थापित कर दी जिसने 21 महीने तक काम किया 


दिसंबर  1974 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांँधी ने अपने प्रवास के समय तामलुक  में मातंगिनी हाजरा की मूर्ति का अनावरण कर  उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।


Nadeem Bano ✍️✍️✍️


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