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मिट्टी की कसक

मिट्टी की कसक????

    'सुनो, 5:00 बज गए उठना नहीं क्या?' जानकी की आवाज सुन रामशरण उठ बैठा ।आंखों पर पानी के छींटे मारकर वह आंगन में आम के पेड़ के चबूतरे पर बैठ गया।

   सूरज डूबने में अभी कुछ वक्त है। मई की जलती, तपती दुपहरिया के बाद शाम वैसे भी कुछ कुछ सुकून भरी लगती है।

 पंछी अपने रैन बसेरे पर लौट आते हैं, उनकी कलरव कानों को अच्छी लगती हैं।

शाम की चाय अक्सर रामशरण यही अपने आम के पेड़ के नीचे बैठकर पीता है।

 अब तो यह पेड़ भी 40 पार कर चुका है ,रामशरण ने पेड़ के तने पर प्यार से हाथ फेरा।

चाय पीकर वह जानकी से बोला" मैं नर्सरी से हो आता हूं।"

"सुबह भी तो गए थे, अब इतनी गर्मी में जल्दी आ जाया करो आज 2:00 बज गए थे।"

   "हां सही है पर---

गर्मी में ही तो पौधों को भी पानी ज्यादा जरूरी है कुछ पौधे अभी छोटे है जल्दी मुरझा जाते हैं।"

      नर्सरी में काम करते-करते भी रामशरण को 40 साल हो चुके हैं हर पेड़ पौधे से उसे लगाव है।

आम, संतरा, निबू ,बिही कितने ही पेड़ उसने अपने हाथों से लगाए हैं जो अब फल फूल रहे हैं।

 कनेर, हरसिंगार, गुड़हल, गुलाब के फूलदार पौधे तो उसने कई जगह लगाए थे ।

बाग की शोभा तो फूलों से ही होती है।

      रामशरण ,जब  आठवीं पास कर चुका था, तभी उसका ब्याह जानकी से हो गया।

 जानकी भी पढ़ रही थी, सो गौना नहीं हुआ।

 रामशरण की पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं थी तो, बापू ने उसे काम पर लगा दिया। एक कार्यालय में चौकीदारी का।

जानकी को ससुराल आए 4 साल हो गए थे पर ,उसकी गोद नहीं भरी थी। माई दिन रात बड़बड़ाती  रहती। जानकी भी उदास रहने लगी।

 उन्हीं दिनों की बात है, एक दिन रामशरण काम से घर आ रहा था। कच्ची- पक्की पगडंडी पर उसे आम का एक नन्हा सा पौधा नजर आया, जिसकी गुठली भी नजर आ रही थी।

 रामशरण ने धीरे से पौधे को निकालकर अपने हाथ में लिया और घर के आंगन में उसे रोप दिया। यही उसका रोपा पहला पौधा था ।पौधे ने धीरे-धीरे जड़ पकड़ ली और बढ़ने लगा और इधर जानकी की गोद भी हरी हो गई।

तब से वह उस आम को अपना बड़ा बेटा मानने लगा।

एक के बाद एक दो बेटों के जन्म से उसके घर की बगिया महक उठी, साथ में घर चलाने की जिम्मेदारी भी, रामशरण ने अब नर्सरी में  माली का काम शुरू किया। 

एक दो बंगलों में भी वह माली का काम करने लगा, उसकी मेहनत और पेड़ पौधों से प्रेम देख सभी उसके काम से संतुष्ट थे।

कुछ सालों बाद मां बापू नहीं रहे।

बच्चे बड़े हो रहे थे, जानकी 12वीं पास थी तो उसने आंगनबाड़ी में काम शुरू किया।

  गृहस्थी की गाड़ी, जीवन पटरी पर सरपट दौड़ने लगी।

जानकी ने समय की मांग को देखते हुए अपने दोनों बेटों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया और उनकी पढ़ाई पर वह ध्यान देने लगी, बच्चों ने पढ़ने में मां का सा दिमाग और बापू की मेहनत पाई ऐसा लगा। क्लास दर क्लास अच्छे से पास होते गए और इसी साल आम का पेड़  भी  फलों से  लद गया।

 रामशरण के जाति प्रमाण पत्र से बच्चों की फीस में भी कटौती होती थी। और आगे उन्हें कॉलेज में भी एडमिशन लेते समय उसका लाभ मिला।

         एक बेटा डॉक्टर तो दूसरा इंजीनियर बना दोनों बेटे बड़े-बड़े शहरों में गए तो वही के हो गए समय पर दोनों ने अपनी अपनी पसंद की पढ़ी लिखी बीवियां पसंद की, तो रामशरण और जानकी दोनों निहाल हो गए।

 अब रामशरण नौकरी से छुट्टी पा गया एक 2 सालों में जानकी ने भी नौकरी छोड़ दी । पर नर्सरी का काम अभी भी राम शरण उतना ही मन लगाकर कर रहा था।

बच्चों ने कई बार दोनों को अपने पास आकर रहने  के लिए कहा, थोड़े समय के लिए दोनों गए पर, रामशरण का मन नहीं लगा।

    पढ़े-लिखे बेटे बहू, उनके बच्चे उनका रहन-सहन का स्तर, महानगर का माहौल ,सभी उसे बनावटी लगा। यहां पर उसे कोई काम भी नहीं था। तो घर में बैठे-बैठे उबने लगता। 

       नर्सरी का काम वह श्यामू के बेटे को बोल कर आया था परंतु लगता है वह बीच में ही छोड़ कर चला गया।अब नर्सरी के मालिक के भी बार-बार फोन आने लगे।

रामशरण को अब अपने पेड़ पौधों की भी चिंता होने लगी।

अपने बेटे से रामशरण ने वापसी के बारे में बात की तो बेटे ने कहा "हमें भी तो आपकी सेवा का थोड़ा मौका दीजिए, कुछ समय"। इस पर रामशरण कुछ कह ना सका।

    एक रात उसे सपने में आम का पेड़ नजर आया जिस के सारे पत्ते झड़ चुके है और पेड़ भी कुम्हलाया नजर आ रहा है। अब तो रामशरण का मन और भी उदास हो गया।

 उसने सोचा,बिना काम के तो शरीर में जंग लग जाएगा अब रामशरण को कुछ भी अच्छा नहीं लगता था

 घर में बैठे-बैठेउसे अपने शहर, वहां की मिट्टी अपने पेड़ पौधों की याद सताने लगी ।

जानकी को भी बडे शहर के  माहौल बड़ी घुटन सी होती थी। घर में  काम ज्यादा कुछ था नहीं, सब नौकरों के भरोसे, बैठे-बैठे उसका भी मन उबने लगा कुछ ही दिनों में रामशरण और जानकी वापस आ गए।

      अपने शहर आकर जब उसने अपने पेड़ पौधों की खराब हालत देखी तो उसे लगा कि उसने वापस आकर ठीक ही किया।  आम के पेड़ को देखकर  खुशी से  उसकीआंखों में आंसू आ गए

अब रामशरण वापस अपने काम में जुट गया।

        एक दिन वह बंगले पर काम करने पहुंचा तो बंगले की मैडम ने उससे पूछा," तुम तो बेटे के पास गए थे बड़ी जल्दी वापस आ गए"।

रामशरण मुस्कुरा दिया ,बोला" काम के बिना मन नहीं लगता  था"।

 अपना शहर अपने पेड़ पौधे

 अपने गांवकी मिट्टी की कसक उसे वापस अपने शहर खींच लाई।

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लेखिका: श्रीमती प्रतिभा परांजपे


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