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जिद पालें


आदि काल से हमारे देश में जीव जन्तुओं, पशु पक्षियों को पालने की व्यवस्था रही है जो इस बात की पुष्टि करता है कि, 'सभी प्राणी मात्र एक समान हैं !' यह सुनकर सहसा विश्वास न हो परन्तु यह सच्चाई है कि, हमारे देश में ऐसे -२ वीर योद्धा हुए जो अपने बाल्यकाल में शेरों के बच्चों के साथ खेला करते थे और उनके दांत गिनकर बताते थे ! सदियों बाद भी ऐसे वाकए सामने आते रहे जब अपने गुरुजी की इच्छा पूरी करने के लिए कभी शेरनी का दूध तो कभी जरूरत पड़ने पर शेर अथवा हाथी को उसकी औकात बताने जैसा श्रेष्ठ कार्य हमारे देश के महान सपूतों द्वारा किया गया जिनके बारे में पढ़ सुनकर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है ! 


सामान्यतया: जहां हाथी और घोड़े सवारी व युद्ध के लिए उपयोग में लाए जाते थे तो वहीं दूसरी ओर गाय, बैल, भेड़, बकरियां, ऊंट इत्यादि कृषि कार्यों और जीवन के लिए उपयोगी दूध, दही, घी, अनाज, फल, सब्जियां प्राप्त करने के लिए पाले जाते थे ! हम सभी जानते हैं कि, समय के साथ हर चीज़ बदल जाती है जैसे लोगों की कद काठी, आचार विचार, रहन सहन इत्यादि फिर भला यह कैसे संभव है कि लोगों के द्वारा पाले जाने वाले पशु पक्षियों को लेकर कोई विचार न बदलता ! 


एक ओर जहां इक्कीसवीं सदी के आते -२ मशीनों ने अपने पांव जमाने शुरू किए तो वहीं दूसरी ओर गांवों से बैलों की जोड़ियां और गाय बछड़ों के झुंड धीरे -२ कम होते गए ! पक्षियों में कुछ एक तो विलुप्त से हो गए ! हालत यह है कि बस गिने चुने घरों में ही गाय, भैंस, बछड़े और बैल देखने को मिलेंगे ! गाय का बछड़ा यदि सालभर का हुआ तो न जाने कहां गायब हो जाता है, किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती ! पहले जब बैल खेती के लिए प्रबल दावेदार माने जाते थे तब मजाल है कि कोई इंसान मशीनों के आगे हाथ बांधे खड़ा मिल जाए ! हर हाथ में हल की मूंठ और गाय बछड़ों के गले की रस्सी ही बताने को काफी थी कि हमारे यहां किसी चीज़ की कमी नहीं थी ! 


खैर अब भी गिने चुने घरों में गौ सेवा की जाती है लेकिन उसका मुख्य उद्देश्य केवल दुग्ध उत्पादन रहता है और कुछ नहीं ! कुछ अन्य वजहों से भी लोगों ने अपने पैर पीछे खींचने शुरू कर दिए, जैसे आजकल गाय भैंस कौन पाल रहा है जो हम अपने घर में आफ़त मोल लेकर आएं, वगैरह -२ ! मौजूदा समय में देश के अधिकांश हिस्सों पर कृषि कार्यों के लिए मशीनों ने क़ब्ज़ा जमा रखा है बस कुछ गिने चुने इलाके रह गए हैं जहां कृषि कार्यों के लिए बैलों की मदद ली जाती है ! मेरी नज़र में ऐसे सभी लोग जो इस विपरीत परिस्थिति में भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं, अपनी परम्परा निभा रहे हैं, सम्मान के पात्र हैं ! 


परिवर्तन संसार का नियम है, हम सभी जानते हैं ! आज परिवार का भरण पोषण के लिए अथवा यूं कहें कि आज परिवार चलाने के लिए गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, हल, बैल, कृषि इत्यादि की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है वजह इनसे प्राप्त होने वाले दूध, दही, घी, अनाज, फल, सब्जियां इत्यादि दुकानों पर पैसे देकर बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं और यही वजह है कि खेती और पशुपालन आम परिवारों से कोसों दूर चले गए हैं ! ऐसा नहीं है कि गांवों में खेती करने के लिए लोग तैयार नहीं है अथवा दूध के लिए पशुओं को पालना बंद हो गया है फर्क यह हुआ है कि खेती में लागत बढ़ गई है कारण जो गाय बैलों की जोड़ी के घर में रहने से खाद और जुताई का काम बिना पैसों के हो जाता था, अब होने से रहा और नई पीढ़ी मोबाइल के चक्कर में पड़कर धीरे -२ मेहनत के कार्यों से पीछे हट रही है जिसके परिणाम आने वाले दो एक दशक में दिखाई देने लगेंगे जब पुरानी पीढ़ी के लोग पूर्णतया इस धरती से जा चुके होंगे ! 


इस लेख के माध्यम से एक विचार मैं आप लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं, संभव है आप तक पहुंच जाए ! आज हम सभी लोग दूसरों को देखकर अपने कदम बढ़ा रहे हैं, मसलन दूसरा क्या कर रहा है, दूसरा क्या खा रहा है, दूसरा क्या ले रहा है, दूसरा कैसे रह रहा है, दूसरा कैसे चल रहा है इत्यादि ! इसका खामियाजा यह हो रहा है कि, हमारे पूर्वजों द्वारा दिया हुआ ज्ञान हम स्वत: भूलते जा रहे हैं ! दूसरे शब्दों में कहें तो, 'हमें अपने पूर्वजों की तनिक भी परवाह नहीं !' आज मैं पूरी जिम्मेदारी से यह बात लिख रहा हूं कि, चाहे कितनी भी तैयारी क्यूं न कर ली जाए, भविष्य में न तो बेरोजगारी खत्म होने वाली और न ही मुफ्त अनाज पाने वालों की संख्या में कुछ कमी आएगी, कारण बिल्कुल साफ़ है इतनी बड़ी मात्रा में नौकरियां पैदा नहीं की जा सकतीं और न ही सभी लोग अनाज पैदा करने की स्थिति में हैं, रही सही कसर मोबाइल ने पूरी कर दी है ! इस लाइन को गांठ बांध लें कि, "कोई दूसरा आपकी नौका पार लगाने वाला नहीं और यदि ऐसा हो रहा है तो निश्चित ही आप एक अयोग्य व्यक्ति हो !"


यहां मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि, आप कुछ भी सोचने का प्रण लें जो सकारात्मक परिणाम ला सकता हो, कुछ भी करने का प्रण लें जिससे आपके जीवन में बदलाव आ सके, कुछ भी असम्भव सा दिखने वाला लक्ष्य लें जिसे आप हासिल करना चाह रहे हों और मेरा यकीन मानिए जब आप उसे साध लेंगे तब खुद ब खुद आपको पता चल जाएगा कि, इस लेख को लिखने का असली मकसद क्या था ! आज तकनीकी युग ने आपके माता-पिता को ही पुराना साबित करना शुरू कर दिया है पूर्वजों की बात ही क्यूं करें ! ऐसे में जरूरी है कि आप अपने आप को सबल बनाएं ! जरूरी है कि आप 'जिद पालें' सम्भव हो तो मन के किसी कोने में 'प्रतिद्वंद्वी पालें' ! मेरा यकीन मानिए, आपको जीवन में कुछ भी बनने से, कुछ भी पाने से कोई रोक नहीं सकता ! सारा का सारा दारोमदार "आप" पर है !


तथास्तु !


लेखक किरण कुमार पाण्डेय 'के के'


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