ट्रेन का अविस्मरणीय सफ़र
ट्रेन का अविस्मरणीय सफ़र
मुझे आज भी याद है वह ट्रेन का अविस्मरणीय सफ़र जब मैं अपनी नानी का घर छोड़कर अपनी मां के साथ दिल्ली आ रही थी।
मैं सिर्फ़ छः साल की थी लेकिन वक्त और हालात की वजह से समय से पहले ही काफ़ी बातें समझने लगी थी। मेरे पिता मेरे जन्म के बाद चल बसे थे और सभी मुझे इस बात के लिए दोषी समझते थे। मेरी मां भी कभी मुझे प्यार नहीं करती थीं क्योंकि वह हमेशा मेरे पिता के ख्यालों में ही गुम रहतीं थीं।
नानी के घर में सभी मेरी शरारतों से परेशान थे। मेरी नानी को छोड़कर कोई भी मुझे प्यार नहीं करता था। मेरी मां को तो किसी ने यह तक कह दिया था कि तुम इसे स्टेशन पर छोड़कर कहीं दूर चली जाना और अपने लिए नौकरी ढूंढ़कर किसी समझदार व्यक्ति से शादी कर लें क्योंकि उनकी उम्र सिर्फ़ पच्चीस वर्ष थी।
मैंने गुस्से में उनसे कहा, “अगर आपको मेरी मां की इतनी फिक्र है तो फिर पिछली बार उनकी शादी किसी समझदार आदमी से क्यों नहीं करी?”
मैं ट्रेन में बैठकर रो रही थी। तभी एक व्यक्ति मेरे सामने वाली सीट पर बैठ जाता है। मुझे रोते हुए देखकर वह मुझसे पूछते हैं,
“तुम्हारी मां भी बिल्कुल तुम्हारे जैसी ही नटखट थी बचपन में!”
“आपको कैसे पता?” मैंने अपनी बड़ी बड़ी आंखें मटकाते हुए कहा।
“मुझे पता है क्योंकि वह मेरी बचपन की दोस्त थी,” उन्होंने कहा।
“अच्छा, फिर आप आज अचानक से इस ट्रेन में कैसे आ गए?” मैंने उत्सुकतावश पूछा तो उस व्यक्ति ने कहा,
“मैंने अपने दोस्त को वचन दिया था कि मैं उसकी पत्नी और बेटी को हमेशा अपना मानकर उनका ख्याल रखूंगा। मेरा नाम बादल है और मेरे दोस्त का नाम सागर था।”
मैंने मन ही मन सोचा,
“सागर तो मेरे पिता का भी नाम था। वह टैनडम पैराग्लाइडिंग में इंस्ट्रक्टर थे। एक बार वह किसी को पैराग्लाइडिंग सिखा रहे थे लेकिन किसी कारणवश पैराशूट नहीं खुला और उन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर दूसरे व्यक्ति की जान बचाई लेकिन उन्हें काफ़ी चोटें आईं थीं जिसकी वजह से उनकी जान नहीं बच पाई। सभी लोगों ने कहा कि उन्हें पहले अपनी जान बचानी चाहिए थी लेकिन उन्होंने दूसरे की जान बचाकर लोगों की नज़रों में बेवकूफी भरा क़दम उठाया था। सभी लोग कहते थे, कहां है वह व्यक्ति जिसकी जान मेरे पिता ने बचाई थी। आज वह व्यक्ति मेरे सामने है और मैं सोच रही थी कि कैसे मैं उसे बताऊं कि मेरे पिता ने उसे बचाकर और अपनी जान गंवाकर सबसे ज्यादा अन्याय मेरी मां के साथ किया था।”
तभी मेरी मां मुझे मेरे पिता और मेरी फोटो देते हुए कहती हैं,
“यह तुम्हारे पिता की फोटो है। इसके पीछे उस व्यक्ति का नाम और पता है जिसकी जान तुम्हारे पिता ने बचाई थी। तुम उस व्यक्ति से मिलने ज़रूर जाना और कहना कि तुम्हारी मां की आखिरी इच्छा यही है कि तुम भी बड़े होकर अपने पिता की तरह दूसरे लोगों की जान बचाओ लेकिन मैं नहीं चाहती कि तुम भी पिता की तरह अपने परिवार की आंखों में आंसू देकर अचानक से चली जाओ इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम अपनी जान की भी क़ीमत समझो!”
यह कहकर मेरी मां कहीं चली जाती है।
मैं बादल से कहती हूं,
“यह हैं मेरे पिता!”
बादल काले रंग के चश्मे में मेरे पिता को पहचानने की कोशिश करते हैं कि तभी वह फोटो के पीछे कुछ पढ़ने लगते हैं। अचानक से उनके हाथों से वह फोटो गिर जाती है जिसे मैं उठा लेती हूं।
बादल दौड़ते हुए ट्रेन के दरवाज़े की तरफ़ भागने लगते हैं। मैं भी पीछे पीछे दौड़ने लगती हूं।
तभी मैंने देखा कि बादल किसी का हाथ पकड़ कर खींच रहे थे। जब मैंने ध्यान से देखा तो वह मेरी मां थी।
मां डर के मारे बेहोश हो गई थी। तभी अगले स्टेशन पर चाय पकौड़े खाकर मेरे अंदर थोड़ी जान आई। मां ने सिर्फ चाय पी और बादल ने ने तो चाय पी और न ही पकौड़े खाए।
बादल ने मेरी मां से कहा,
“बरखा, मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। आखिर तुम इतनी कमज़ोर कब से हो गई? ट्रेन से कूदने के बारे में सोचने से पहले अपनी बेटी के बारे में भी सोचना तुमने ज़रूरी नहीं समझा? मैं तुम्हें कितना समझदार समझता था लेकिन तुमने आज मुझे यानी अपने बचपन के दोस्त बादल को ग़लत साबित कर दिया।”
“तुम बादल हों? वहीं बादल जो मेरे साथ बचपन में रेलगाड़ी का खेल खेलता था और टीटी बनकर मुझे विदाउट टिकट होने की वजह से फाइन भरने के लिए कहता था,” मेरी मां ने कहा तो बादल ने कहा,
“हां बरखा, मैं ही हूं तुम्हारे बचपन का दोस्त बादल!”
“बादल, एक तुम हो जो आज फरिश्ता बनकर आए और मुझे मरने से बचाकर हमारे ऊपर इतना बड़ा उपकार किया है। मैं कूदने के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मेरा पैर फिसला गया और मैं गिरने ही वाली थी कि तुमने मुझे सही समय पर आकर बचा लिया। एक बादल वह भी है जिसकी वजह से मेरे पति की जान चली गई।”
बादल ने मेरी मां से कान पकड़कर माफी मांगते हुए कहा,
“तुम चाहो तो मेरी जान ले लो लेकिन मुझे माफ़ कर दो क्योंकि वह बादल भी मैं ही हूं!”
मेरी मां ने गुस्से में कहा,
“बादल कहीं तुमने जानबूझकर तो यह सब नहीं किया क्योंकि तुम मुझे चाहते थे?”
बादल की आंखों में आंसू आ गए। अपने आंसू पोंछते हुए उसने कहा,
“बरखा, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? मैं तुम्हें सच में बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे पति के साथ जो हुआ वह एक हादसा था। मैंने तुम्हारे पति को वचन दिया था कि मैं तुम्हारा और तुम्हारी बेटी का हमेशा ख्याल रखूंगा।”
ट्रेन के स्टेशन बदलते जा रहे थे लेकिन मेरी मां के चेहरे पर वही हाव भाव थे। उनके चेहरे की उदासी बादल के दिल को छलनी कर रही थी।
आखिरी स्टेशन पर मेरी मां ने मन ही मन कुछ फैसला किया और मेरा हाथ पकड़ कर बादल के साथ उसके घर की तरफ़ क़दम बढ़ा दिया।
आज मैं एक बार फिर ट्रेन का सफ़र तय कर रही हूं। मेरे साथ मेरा भाई सिद्धार्थ अपनी पत्नी स्नेहा और अपनी बेटी सौम्या के साथ सफ़र कर रहा है। तभी अचानक से एक वृद्ध व्यक्ति मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ जाते हैं और मुझसे कहते हैं,
“मुझे तुम्हारी मां के ऊपर गर्व है जिसने सब कुछ भुला दिया लेकिन मेरा नाम जिसकी ज़ुबान पर आज भी आ ही जाता है।”
मैंने मन ही मन सोचा,
“आज मेरी मां अल्जाइमर्स की बीमारी से पीड़ित हैं और इसी कारण से वह सारी बातें भूल चुकी हैं। उन्हें सिर्फ़ अपने पहले पति की ही याद है। वह मेरे दूसरे पिता बादल को भी सागर कहकर ही बुलाती हैं। मेरे दूसरे पिता बादल ने एक दिन मुझसे कहा था कि,
‘जब से बरखा ने मेरे घर में क़दम रखा तभी से वह केवल अपना कर्तव्य समझकर मेरे साथ रह रही थी और अपने पतिव्रत धर्म का पालन कर रही थी। वह मुस्कुराना भी भूल चुकी थी। उसने हमेशा मेरे साथ रहकर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारियों का निर्वहन किया जिसके लिए मैं उसका जीवन पर्यन्त आभारी रहूंगा। एक दिन जब मैंने उससे पूछा था कि, ‘क्या तुम मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करती हो, बरखा?’ मेरे प्रश्न के जवाब में उसने कहा था कि, ‘बादल, बेशक तुम्हारे कारण ही मेरा अस्तित्व है लेकिन एक न एक दिन तो तुम्हें और मुझे सागर के पास जाना ही होगा। जब तक सागर थे, मैं उनसे हमेशा लड़ती रहती थी और महीनों तक उनसे बात नहीं करती थी। उनके जाने के बाद मुझे ग्लानि हुई और मुझे इस बात का एहसास हुआ कि शिकायतें और लड़ाई तो ज़िंदा लोगों के साथ ही हो सकती है, बाद में तो सिर्फ़ तारीफ़ें और आत्मग्लानि ही होती है। मैं सभी पत्नियों से यही कहना चाहती हूं कि आप बेशक कटु शब्द कह दो लेकिन मौन रहकर पति का दिल कभी मत दुखाओ क्योंकि जब भी एक स्त्री स्वावलंबी होती है तो वह अपने आप को किसी भी बंधन में नहीं बांधना चाहती है लेकिन जब एक पुरुष स्वावलंबी बनता है तो वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक सुखी परिवार के सपने संजोता है। मैं भी अपने पति बादल के संघर्षों के आगे सदैव नतमस्तक रहूंगी और बेशक तुम मेरे पति हो और मेरे बेटे के पिता हो और मेरे पहले पति की बेटी के संरक्षक हो, फिर भी मैं तुम्हें सम्मान दे सकती हूं, तुम्हारी हर इच्छा मैं पूरी करने की कोशिश करूंगी। फिर भी मुझसे इस बात के लिए नाराज़ मत होना कि तुम्हारे चरणों की धूल मैंने अपने माथे से लगा लिया लेकिन फिर भी मैं तुम्हें अपने दिल के अंदर आने की इजाज़त नहीं दे पाई, इसके लिए मुझे माफ़ कर देना।’
जब से वह अल्जाइमर्स से पीड़ित हुई हैं तब से वह मुझे सागर समझकर गले से लगाती हैं और प्यार से अपने दिल में बिठाकर घंटों मुझसे बातें करती रहती हैं। मुझे कभी कभी लगता है कि मुझे अपनी पहले वाली बरखा वापस मिल गई है और अब मुझे ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं है।”
मैंने जब उस वृद्ध व्यक्ति को ध्यान से देखा तो उनके चेहरे पर मुझे अपने पहले पिता सागर की छवि दिखाई दी। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और अगले स्टेशन पर उतरने से पहले कहा,
“तुम बिल्कुल बरखा की तरह ही लगती हो, मेरी बेटी बसंती!”