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बहूत कुछ

बहुत कुछ !

 

बहुत कुछ कहना हैं

मग़र ओज रुक जाते!

 

चलना बहोत दूर हैं

मगर पैर रुक जाते!

 

हँसना बहोत हैं मगर

ओठ सिल जाते !

 

  तैरना बहोत था मगर

  समुंदर गहरे हो जाते !

 

राह पर चलना था

मगर रास्ते गुँम हो जाते।

 

लिखना तो बहूत लेकीन

अक्षर गुम हो जाते ।

 

देखना बहूत कुछ था मगर

द्रष्टी कमजोर पड जाती।

 

बहोत कुछ करना था मगर

वक्त मुसाफिर हो जाता।

 

जब मंजिल दिखने लगी तो

रास्ते धुधॅले हो जाते।

 

जब खूद को जानने लगे

तो खुद ही गुम हो जाते!

 

सौ. छाया हरिभाऊ राडे

वर्धा

मो.नं.9960129993

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