पुष्कर की रंगीली होली
पुष्कर की रंग-बिरंगी होली
होली का त्यौहार भी भला किसे पसंद नहीं होगा?
चारों तरफ हर्षोल्लास,रंग ही रंग, मस्ती और मजा ।
अपनों के साथ रंगों से होली खेलने का आनंद आपको इस जीवन की परेशानियों से कुछ एसे छुटकारा दिला देता है कि मानो वे थी ही नहीं।
होली के मस्तीभरे माहौल में जब हर कोई रंगों से सराबोर हो जाता है मानो खुशियों को अपने ऊपर उड़ेल लिया हो।
वैसे तो जहां आपके अपने हो ,आप वहीं खुशी से होली का मज़ा ले सकते हैं।
पर अगर उसमें कोई जगह विशेष भी जुड़ जाए तो सोने पे सुहागा हो जाता है। इसलिए होली के मस्तीभरे त्योहार पर खुशियों को दोगुना करने के लिए पुष्कर अपने आप में अनोखा है।
वैसे तो पुष्कर विश्व के एक मात्र ब्रह्मा मंदिर और झीलों के लिए प्रसिद्ध है। परन्तु एक और बात ने पुष्कर को विश्व विख्यात बना दिया है ।
और वह है वहां पर खेली जाने वाली 'रंगीली होली '
पुष्कर का अर्थ है कमल, एक झील ,
पुष्कर एक छोटा सा कस्बा है जो राजस्थान में स्थित है। यह अरावली पर्वतमाला से तीन तरफ से घिरा हुआ है और चौथी तरफ से एक छोटे से रेतीले टीले से। यह एक छोटी सी घाटी के रूप में स्थित है यहां पर मौसम सामान्यतः गर्म शुष्क ही रहता है परंतु घूमने की दृष्टि से सर्दियों के मौसम में पुष्कर घूमने का मजा कुछ अधिक आता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार पुष्कर ब्रह्मा जी के द्वारा बसाया गया है । ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी के हाथ से एक कमल की पंखुड़ी के गिर जाने से पुष्कर झील का निर्माण हुआ है । पुष्कर को पांचवा तीर्थ भी माना जाता है। यहां पुष्कर झील में स्नान करके अपने तीर्थ के स्नान को संपन्न भी किया जाता है।
कहा जाता है ,कि जिस प्रकार प्रयागराज तीर्थ में राजा है उसी प्रकार पुष्कर तीर्थ के मुख हैं ।इसीलिए इसे तीर्थराज पुष्कर भी कहा जाता है। यहां पुष्कर में सभी अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए विशेष अवसर पर स्नान करने भी आते हैं। कई विद्वानों द्वारा तो यह भी कहा जाता है कि यदि अपने चारों धामों के दर्शन कर लिए हैं, लेकिन यदि पुष्कर का दर्शन नहीं किया है तो अभी आपकी चार धाम यात्रा भी सफल नहीं कहलाएगी ।
पुष्कर सरोवर पर 52 भिन्न-भिन्न घाट बने हुए जिसमें सबसे प्रमुख है गऊ घाट ,ब्रह्मा घाट, वराह घाट ,बद्री घाट, सप्तऋषि घाट और तारिणी घाट ।
पुष्कर में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अक्टूबर नवंबर के महीने में प्रतिवर्ष ऊंटों का विशाल मेला लगता है ।जिसे देखने भी दुनिया भर के पर्यटक आते हैं।
घाट और ब्रह्मा मंदिर के दर्शन के अलावा यहां की विश्व प्रसिद्ध होली का आनंद लेने के लिए भी विश्व भर से सैलानी अब आने लगे हैं। जिसका आनंद लेने हम भी पहुंचे। ऊंट की सवारी का आनंद लेने के साथ ही राजस्थान की प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा यहां पर परोसा जाने वाला एक मुख्य व्यंजन है। यहां पर सावित्री माता के मंदिर का दर्शन किया जा सकता है।
यहां होली का त्यौहार तीन-चार दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है यहां बड़े से चौक में मिलकर सभी होली जलाते हैं ।नाच गाने से भरपूर विश्व भर के सैलानी यहां इकठ्ठा रहते हैं। ढोल धमको के साथ सभी मिलजुल कर होली जलाकर चारों तरफ डांस करते हैं। एक दूसरे को गुलाल लगते हैं चारों तरफ सैर-सपाटा और मस्ती के माहौल में लोग एक दूसरे को गुलाल लगाकर हैप्पी होली कहते हैं ।
विश्व भर से सैलानी यहां पर प्रत्येक वर्ष महीना भर पहले ही आ जाते हैं। यह होली अब हिंदुस्तान की होली नहीं रही, यह अंतरराष्ट्रीय होली फेस्टिवल बन चुका है ।विश्व भर से लोग यहां होली प्यार से मनाने आते हैं ।
तीन दिन तक सड़कों पर डीजे लगाकर नाच गाना चलता रहता है। गुलाल और रंगों की होली ,थिरकते हुए कदमों के साथ ,गाते गुनगुनाते हुए ,कुछ लोक नृत्य ,कुछ फागुन के नृत्य और गायन से भरपूर।
तो कहीं अंतर्राष्ट्रीय गीत-संगीत हिप-हॉप और बॉलीवुड सिनेमा के गानों के साथ नाचकर लोग होली का आनंद लेते हुए 3 दिन तक झूमते रहते हैं ।
और यह आनंद अपने चरम पर पहुंच जाता है यहां की कपड़े फाड़ होली के रूप में ।।
लोग होली खेलने के बाद में कपड़ों को फाड़कर कर तारों पर, घरों की छतों और छज्जों,पर लटका देते हैं शायद ही ऐसी होली और कहीं देखने को मिलेगी। दो दिन तक होली खेलने के बाद ।
जब आप और हम शाम के समय ब्रह्मा घाट पर आकर बैठते हैं वहां इतना शांत वातावरण देखकर अपनी चेतना को जागृत कर सकते हैं।
ब्रह्मघाट के चारों तरफ परिक्रमा लगा सकते है । यह जल भी गंगा जल के समान ही पवित्र माना जाता है।
यहां पर भी देश-विदेश से आए पर्यटक अपनी अपनी कला की प्रस्तुति देते रहते हैं। गिटार के साथ गायन,नृत्य संगीत माहौल को खुशनुमा बना देता है। कई बार तो ऐसा महसूस होता है कि जैसे वे विदेशी यहां हमेशा से बसे हुए हैं और हम कहीं दूर बाहर से आए हैं। उन्होंने यह त्यौहार इतनी खूबी से अपना लिया है।
एक -दूसरे के देशों की संस्कृतियों ,विचारों का आदान-प्रदान होने से होली के इस माहौल में आपको बहुत सारी स्मृतियों से भर देता है।
कुछ पल शांति से घाट पर बिताने के बाद। आप पुष्कर के स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए हुए कलाकृतियां और कपड़े भी खरीद सकते हैं।
यहां से जाने के बाद सैलानी बहुत सारी स्मृतियां ले जाते
हैं ।
और फिर अगले साल यहां आने के लिए यह उत्सव उन्हें फिर से मजबूर कर देता है। क्यों कि यहां की होली का रंग उनके तन से तो उतर जाता है परन्तु उनके मन से उतारे नहीं उतरता।
पढ़ने के लिए धन्यवाद।